बिलकिस बानों केस के तीन दोषी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, सरेंडर के लिए मांगी इतनी मोहलत

बिलकिस बानों केस के तीन दोषी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, सरेंडर के लिए मांगी इतनी मोहलत

DELHI: गुजरात के चर्चित बिलकिस बानों केस के तीन दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर गुहार लगाई है। तीनों दोषियों ने निजी कारणों से सुप्रीम कोर्ट से समर्पण की अवधि बढ़ाने की अपील की है।


दरअसल, बीते 8 जनवरी को बिलकिस बानों केस के दोषियों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा था। सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई का फैसला रद्द करते हुए उन्हें सरेंडर करने को कहा था। अगस्त 2022 में गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो गैंगरेप केस में उम्रकैद की सजा पाए सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया था। दोषियों की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि राज्य इस तरह का निर्णय लेने के लिए सक्षम नहीं है।


जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने बिलकिस बानो केस में 11 दोषियों को बरी करने के गुजरात सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था और दोषियों को दो हफ्ते में सरेंडर करने के लिए कहा था। कोर्ट के आदेश के बाद 11 दोषियों में से तीन ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दाखिल कर आत्मसमर्पण की अवधि बढ़ाने की मांग की है। मामले के तीन दोषियों में गोविंद नाई ने 4 सप्ताह, जबकि मितेश भट्ट और रमेश चांदना ने 6 सप्ताह की मोहलत कोर्ट से मांगी है।


दरअसल, साल 2002 में गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद हुए दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप की वारदात हुई थी और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में 21 जनवरी 2008 को CBI की विशेष अदालत ने 11 लोगों को दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी। 15 अगस्त 2022 को गुजरात सरकार गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को माफी देते हुए जेल से रिहा कर दिया था।


गुजरात सरकार के इस फैसले के खिलाफ बिलकिस बानों ने दोषियों की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। दोषियों की समय से पहले रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम सजा में छूट की अवधारणा के खिलाफ नहीं हैं क्योंकि कानून में इसे अच्छी तरह से स्वीकार किया गया है, लेकिन ये स्पष्ट किया जाना चाहिए कि ये दोषी कैसे माफी के योग्य बने। इसके बाद कोर्ट ने सभी 11 दोषियों को कोर्ट में सरेंडर करने का आदेश देते हुए दो हफ्तों का समय दिया था।