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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 29 May 2025 12:44:04 PM IST
बिहार न्यूज - फ़ोटो GOOGLE
Bihar News: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां एक नाबालिग छात्रा के अपहरण केस में जांच अधिकारी (IO) द्वारा लापरवाही बरतने पर विशेष अदालत ने कड़ी नाराजगी जताई है। मिठनपुरा थाना क्षेत्र की रहने वाली एक किशोरी के अपहरण से जुड़ी एफआईआर के बाद पीयर थाना अध्यक्ष पंकज यादव, जो उस वक्त मिठनपुरा थाने में सब-इंस्पेक्टर थे, उन्होंने दो वर्षों से अधिक समय तक केस की फाइनल रिपोर्ट (Final Form) दबाकर रखी है।
विशेष पॉक्सो कोर्ट ने इस गंभीर लापरवाही पर सख्त रुख अपनाते हुए पंकज यादव को मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट में खड़ा रखा और जमकर फटकार लगाई। सुनवाई के बाद ही उन्होंने फाइनल फॉर्म कोर्ट में जमा किया। उल्लेखनीय है कि इस मामले में पहले भी कोर्ट द्वारा पंकज यादव और तत्कालीन थानाध्यक्ष रामएकबाल प्रसाद पर ₹5000-₹5000 का जुर्माना लगाया गया था। इतना ही नहीं, पंकज यादव के लगातार अनुपस्थित रहने के कारण उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी किया गया, जिसकी तामिला कराने की जिम्मेदारी रामएकबाल प्रसाद को दी गई थी।
रामएकबाल प्रसाद, जो वर्तमान में मोतीपुर के अंचल निरीक्षक पद पर कार्यरत हैं, ने अदालत के आदेशानुसार बुधवार को पंकज यादव को विशेष पॉक्सो कोर्ट-1 के न्यायाधीश श्री धीरेंद्र प्रसाद मिश्रा के समक्ष प्रस्तुत किया। कोर्ट में पेश होने के बाद ही पंकज यादव ने वह फाइनल रिपोर्ट दाखिल की, जो वे 18 जनवरी 2023 को ही तैयार कर चुके थे। रिपोर्ट में उन्होंने छात्रा के अपहरण के आरोप को असत्य करार दिया था, लेकिन उसे अदालत में प्रस्तुत नहीं किया गया था।
यह मामला 12 फरवरी 2019 को सामने आया था, जब एक 17 वर्षीय छात्रा ट्यूशन पढ़ने के लिए घर से निकली और फिर वापस नहीं लौटी। छात्रा के पिता ने एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने एक संदिग्ध मोबाइल नंबर और उसके धारक नरेंद्र सिंह को आरोपी बताया था। बाद में पुलिस ने छात्रा को बरामद किया और अदालत में बयान दर्ज कराया, जिसमें किशोरी ने अपहरण से इनकार किया।
इस पूरे मामले ने पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, खासकर ऐसे मामलों में जहां नाबालिग और महिला सुरक्षा की बात हो। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि पॉक्सो जैसे संवेदनशील मामलों में किसी भी प्रकार की देरी या लापरवाही स्वीकार्य नहीं है। अदालत की इस सख्ती को न्यायिक व्यवस्था की गंभीरता और जवाबदेही सुनिश्चित करने वाला कदम माना जा रहा है।