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Patna High Court: 21 लाख की गाड़ी 2 लाख में नीलाम करने पर कोर्ट का सख्त आदेश, अब बिहार सरकार को देना होगा भारी मुआवजा

Patna High Court: पटना हाई कोर्ट ने 21 लाख रुपये मूल्य की गाड़ी को मात्र 2 लाख रुपये में नीलाम करने पर बिहार सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि वह गाड़ी मालिक को 16 लाख रुपये का मुआवजा तुरंत भुगतान करे।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Tue, 02 Sep 2025 08:22:08 AM IST

Patna High Court

पटना हाई कोर्ट - फ़ोटो GOOGLE

Patna High Court: पटना हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में महाराष्ट्र के एक वाहन मालिक को मुआवजा देने का आदेश दिया है, जिनकी गाड़ी से शराब बरामद होने पर बिना किसी आरोप के गाड़ी को जब्त कर नीलाम कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि यह कार्रवाई न केवल अवैध थी बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन भी थी। न्यायालय ने बिहार सरकार को वाहन मालिक को 16 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है।


दरअसल, मामला वर्ष 2022 का है, जब 26 दिसंबर को पातेपुर कांड संख्या 346/22 के तहत एक गाड़ी से 477 लीटर विदेशी शराब बरामद होने के आरोप में उसे जब्त कर लिया गया था। यह गाड़ी महाराष्ट्र निवासी शरद नवनाथ गंगे की थी, जिसे उन्होंने राजस्थान के एक व्यक्ति जोगा राम को किराए पर दिया था। जब्ती के समय गाड़ी की बीमा कीमत लगभग 21 लाख रुपये थी, लेकिन महुआ एसडीओ के 29 सितंबर 2023 के आदेश से गाड़ी को मात्र 2.2 लाख रुपये में नीलाम कर दिया गया।


हैरानी की बात यह रही कि गाड़ी मालिक को न तो कोई नोटिस भेजा गया, और न ही नीलामी की पूर्व सूचना दी गई। यहां तक कि नीलामी की सूचना सिर्फ बिहार के अख़बार में प्रकाशित की गई, जबकि गाड़ी मालिक महाराष्ट्र के निवासी थे। उन्हें इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी गाड़ी जब्त होने के तीन महीने बाद मिली। कोर्ट ने इसे गंभीर लापरवाही मानते हुए कहा कि प्रशासनिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है।


हाई कोर्ट की खंडपीठ, कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी.बी. बजन्थरी और न्यायमूर्ति शशि भूषण प्रसाद सिंह ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि गाड़ी मालिक को कोई आपराधिक आरोप नहीं था, फिर भी न केवल गाड़ी जब्त की गई, बल्कि गुपचुप तरीके से नीलामी भी कर दी गई।


कोर्ट ने आगे यह भी आदेश दिया कि यदि गाड़ी मालिक 5 लाख रुपये संबंधित अधिकारी के पास जमा करते हैं और उसकी रसीद हाई कोर्ट के महानिबंधक कार्यालय में प्रस्तुत करते हैं, तो उन्हें पूरी 21 लाख रुपये की राशि दी जाए। यदि वह राशि जमा नहीं की जाती है, तो उन्हें 16 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाएगा। यह निर्णय न्याय और पारदर्शिता के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक बताया गया।


हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के गृह विभाग सह उत्पाद निषेध विभाग के अपर मुख्य सचिव (ACS) को भी लताड़ लगाई और आदेश दिया कि इस पूरे मामले में संबंधित अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए और 21 लाख रुपये की वसूली सुनिश्चित की जाए।


बिहार सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने भी राज्य सरकार की विशेष अनुमति याचिका (SLP) खारिज कर दी, जिससे हाई कोर्ट का आदेश बरकरार रहा। सुप्रीम कोर्ट की इस मुहर के बाद अब बिहार सरकार को मजबूरन आदेश का पालन करना होगा।


यह फैसला उन मामलों के लिए नज़ीर (precedent) बन सकता है, जहां प्रशासनिक लापरवाही के चलते नागरिकों के अधिकारों का हनन होता है। साथ ही, यह स्पष्ट संदेश भी है कि बिना पर्याप्त कानूनी प्रक्रिया के किसी भी व्यक्ति की संपत्ति को जब्त या नीलाम नहीं किया जा सकता।