1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 04 Dec 2025 11:46:59 AM IST
- फ़ोटो
बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र का चौथा दिन राजनीतिक चर्चा और दलित समाज को लेकर बहस के चलते काफी हलचल भरा रहा। इस दौरान राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विधायक कुमार सर्वजीत ने दलित समाज की स्थिति पर अपनी बात रखी। लेकिन उनकी यह टिप्पणी सत्ता पक्ष के कुछ विधायकों को नागवार गुजरी और सदन में विरोध शुरू हो गया।
सत्र की शुरुआत राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव से हुई। जब कुमार सर्वजीत ने धन्यवाद ज्ञापन के दौरान दलित समाज की स्थिति और उनके विकास की चुनौतियों को उठाया, तो सत्ता पक्ष के विधायकों ने इसका विरोध किया। खासकर जदयू के विधायक रत्नेश सादा ने तुरंत सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि “मैं कुमार सर्वजीत से पूछना चाहता हूं कि क्या आप किसी दूसरे जाति के कोख से पैदा हुए हैं? आप भी दलित समाज से ही हैं, फिर भी इस समाज के बारे में ऐसी बातें क्यों कह रहे हैं?”
कुमार सर्वजीत ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि उनका मकसद केवल वास्तविक स्थिति को सामने लाना है। उन्होंने रत्नेश सादा को चुनौती देते हुए कहा कि वह उनके साथ जाएँ, वह दिखाएंगे कि गया जिले में अभी भी 10 से 15 ऐसे गांव हैं जहां दलित समाज के लोग विकास की गति से वंचित हैं। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा केवल बिहार के कुछ हिस्सों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे राज्य में दलित समाज की सामाजिक और आर्थिक स्थिति सुधार की मांग करती है।
सत्ता पक्ष के अन्य विधायकों ने इस पर फिर प्रतिक्रिया दी। एक विधायक ने कहा कि “आप तो कभी गया गए ही नहीं, हमने जाकर देखा है, कहीं कोई विशेष समस्या नहीं है।” इस पर सदन में हल्की खिंचाई और हलचल देखने को मिली। मामला बढ़ता हुआ देख, स्पीकर ने तुरंत हस्तक्षेप किया और सदन को शांत करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान बहस के लिए उचित समय और माहौल होना चाहिए, लेकिन व्यक्तिगत आलोचना से बचना आवश्यक है।
इस पूरे घटनाक्रम ने स्पष्ट कर दिया कि बिहार विधानसभा में दलित समाज की स्थिति और विकास की गति आज भी एक संवेदनशील मुद्दा है। कुमार सर्वजीत के बयान ने इस मुद्दे को सार्वजनिक रूप से उठाया और सत्ता पक्ष के कुछ विधायकों की प्रतिक्रिया ने राजनीतिक गरमाहट को बढ़ा दिया। इस बहस के दौरान सदन में एक बार फिर यह महसूस हुआ कि बिहार की राजनीति में जातिगत मुद्दे और सामाजिक वर्ग के विकास की संवेदनशीलता सदैव सक्रिय रहती है। स्पीकर की तत्परता और शांति स्थापित करने का प्रयास सदन की कार्यवाही को नियंत्रित करने में कारगर साबित हुआ।
शीतकालीन सत्र के चौथे दिन की यह घटना बिहार में दलित समाज की स्थिति और विकास की दिशा में राजनीतिक सक्रियता को उजागर करती है। यह सदन के लिए भी एक संकेत है कि संवेदनशील सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करते समय संतुलित और संयमित दृष्टिकोण बनाए रखना कितना आवश्यक है।