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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 30 Apr 2025 06:42:39 PM IST
भगवान परशुराम की जयंती - फ़ोटो google
SUPAUL: सुपौल के छातापुर स्थित बलुआ बाजार में भगवान परशुराम की जयंती धूमधाम से मनाई गयी। यह कार्यक्रम दो दिनों तक चलेगा। जिसमें शामिल होने के लिए सैकड़ों ब्राह्मण समाज के लोग आए हुए थे। जयंती समारोह में आए सैकड़ों ब्राह्मणों का संजीव मिश्रा ने तिलक लगाकर स्वागत किया। मिथिला पाग, गमछा और पुष्प वर्षा से भी अभिनंदन किया गया।
बलुआ बाजार में यथासंभव काउंसिल के तत्वावधान में भगवान परशुराम जयंती का ऐतिहासिक आयोजन किया गया। जो सामाजिक चेतना, ब्राह्मण एकता और राजनीतिक संभावनाओं की मिसाल बन गई। सुपौल के छातापुर प्रखंड के प्रतिष्ठित गांव बलुआ बाजार में बुधवार और गुरुवार को यथासंभव काउंसिल द्वारा आयोजित भगवान परशुराम जयंती समारोह न केवल एक धार्मिक उत्सव बनकर रहा, बल्कि यह आयोजन सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना का एक जीवंत मंच बन गया। इस आयोजन में ब्राह्मण समाज की संगठित भागीदारी, स्थानीय प्रतिभाओं की प्रस्तुति और जनसमूह की अभूतपूर्व उपस्थिति ने इसे सुपौल जिले के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय बना दिया।
धार्मिक गरिमा और परंपरा का सम्मान
यह आयोजन बलुआ बाजार के भूतपूर्व मुखिया स्वर्गीय श्याम नारायण मिश्रा जी के आवासीय परिसर में सम्पन्न हुआ, जो अब सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा है। समारोह की शुरुआत वैदिक परंपरा के अनुरूप दीप प्रज्ज्वलन और गणेश वंदना से हुई, जिसमें मुख्य अतिथि के तौर पर यथासंभव काउंसिल के संरक्षक संजीव मिश्रा ने भाग लिया। सैकड़ों ब्राह्मण प्रतिनिधियों का पारंपरिक रूप से तिलक, मिथिला पाग, गमछा और पुष्प वर्षा से स्वागत किया गया। इस सम्मानित आयोजन ने सामाजिक एकता और सनातन संस्कृति की गहराई को दर्शाया।
भगवान परशुराम: एक विचार, एक आंदोलन
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री संजीव मिश्रा ने भगवान परशुराम के जीवन और उनके योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भगवान परशुराम केवल एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व नहीं, बल्कि एक विचारधारा हैं। अन्याय के विरुद्ध संघर्ष, स्वाभिमान की रक्षा, और ज्ञान व पराक्रम का प्रतीक। आज के समाज को उनसे दिशा और दृष्टि प्राप्त करने की आवश्यकता है।उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यथासंभव काउंसिल का उद्देश्य केवल आयोजन कराना नहीं है, बल्कि युवाओं में वैदिक, सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना को जागृत करना भी है।
सांस्कृतिक प्रस्तुति: परंपरा और प्रतिभा का संगम
कार्यक्रम में सांस्कृतिक प्रस्तुति के रूप में सुपौल की बेटी, मैथिली गायिका श्रुति मौसम और उनकी बहन प्रिया झा ने भगवान परशुराम की स्तुति, भजन और लोकगीतों की प्रस्तुति दी। उनके स्वरों की मिठास और भावों की गहराई ने हर श्रोता को मंत्रमुग्ध कर दिया। वहीं गुरुवार को पनोरमा पब्लिक स्कूल के बच्चों द्वारा प्रस्तुत किए गए नाटक, समूह गान, नृत्य और भाषणों ने दर्शकों की भावनाओं को उद्वेलित कर दिया। बच्चों की प्रस्तुतियों ने यह सिद्ध कर दिया कि अगली पीढ़ी में भी सांस्कृतिक चेतना जीवित है।
ब्राह्मण समाज की अद्वितीय एकता: जन समर्थन का संकेत
कार्यक्रम में छातापुर, त्रिवेणीगंज, निर्मली, सुपौल शहर तक के हजारों ब्राह्मण प्रतिनिधि, समाजसेवी, शिक्षाविद्, महिलाएं और युवा उपस्थित रहे। यह आयोजन किसी पार्टी या मंच विशेष का नहीं था, बल्कि ब्राह्मण समाज की सांस्कृतिक चेतना और सामूहिक एकजुटता का प्रतीक बन गया। कार्यक्रम के बाद सामाजिक मंचों और राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी जोर पकड़ने लगी कि संजीव मिश्रा अब केवल समाजसेवी नहीं, बल्कि एक संभावित राजनीतिक नेतृत्वकर्ता के रूप में उभर रहे हैं। पनोरमा पब्लिक स्कूल के प्रति क्षेत्र के लोगों का जुड़ाव, और संजीव मिश्रा की कार्यशैली दोनों मिलकर एक नए समीकरण का निर्माण करते दिख रहे हैं।
राजनीतिक संदेश और भविष्य की संभावनाएं
आयोजन में बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी, खासकर ब्राह्मण समुदाय की संगठित उपस्थिति, आगामी विधानसभा चुनाव 2025 की पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण मानी जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यथासंभव काउंसिल ने इस आयोजन से अपनी सामाजिक पैठ और क्षमता का प्रमाण दिया है। संजीव मिश्रा को जनसरोकारों से जुड़े नेतृत्वकर्ता के रूप में देखा जाने लगा है। ब्राह्मण समाज में एक स्पष्ट विचारधारा बनती दिख रही है कि वह अब अपने स्वाभिमानी नेतृत्व को खुद गढ़ना चाहता है। इन संकेतों से यह भी संभावना बनती है कि आने वाले समय में छातापुर, त्रिवेणीगंज या सुपौल विधानसभा क्षेत्र में संजीव मिश्रा एक प्रमुख दावेदार बन सकते हैं।
बलुआ बाजार में आयोजित भगवान परशुराम जयंती समारोह न केवल धार्मिक आस्था का पर्व बना, बल्कि यह सांस्कृतिक पुनर्जागरण और सामाजिक एकता का संदेशवाहक बनकर सामने आया। आयोजन की भव्यता, जनसहभागिता और भावनात्मक जुड़ाव ने यह सिद्ध कर दिया कि यथासंभव काउंसिल अब एक मजबूत सामाजिक संगठन है, जो आने वाले समय में राजनीतिक सामाजिक बदलाव का वाहक बन सकता है।