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Success Story: सुनने में बाधा, उम्र 40 और 6 बार असफल... फिर भी बनीं IAS, जानिए... निसा उन्नीराजन की प्रेरणादायक कहानी

Success Story: जहां चाह वहां राह! केरल की निसा उन्नीराजन ने 35 की उम्र में UPSC की तैयारी शुरू की और 40 की उम्र में IAS बनकर साबित कर दिया कि उम्र, जिम्मेदारियाँ और शारीरिक चुनौतियाँ कभी मंज़िल की राह नहीं रोक सकतीं।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 01 Aug 2025 09:43:50 AM IST

Success Story

सफलता की कहानी - फ़ोटो GOOGLE

Success Story: जहां चाह वहां राह! केरल की रहने वाली निसा उन्नीराजन की कहानी किसी प्रेरणादायक फिल्म से कम नहीं है। जहां आमतौर पर लोग 20 की उम्र में सिविल सेवा की तैयारी में लग जाते हैं, वहीं निसा ने 35 साल की उम्र में यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा में बैठने का फैसला किया। उन्होंने साबित कर दिया कि जब संकल्प मजबूत हो, तो उम्र, शारीरिक चुनौतियाँ या पारिवारिक जिम्मेदारियाँ कोई मायने नहीं रखतीं।


निसा को सुनने में कठिनाई (Hearing Impairment) है, एक ऐसी चुनौती, जो पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में एक बड़ी रुकावट बन सकती थी। लेकिन निसा ने इसे अपनी कमजोरी बनने नहीं दिया। उन्होंने इसे एक नई शक्ति में बदला। उनकी प्रेरणा बने कोट्टायम के आईएएस अधिकारी रंजीत, जो स्वयं इसी तरह की सुनने की बाधा के बावजूद सिविल सेवा में सफल हुए थे। रंजीत की कहानी ने निसा को विश्वास दिया कि वह भी अपने लक्ष्य को हासिल कर सकती हैं।


निसा की दो बेटियाँ हैं और वे एक मां, पत्नी और बेटी के रूप में अपनी ज़िम्मेदारियाँ बखूबी निभा रही थीं। घर, बच्चे, नौकरी और पढ़ाई – यह सब कुछ एकसाथ संभालना बेहद चुनौतीपूर्ण था। लेकिन उनके पति अरुण, जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, ने हर कदम पर उनका साथ दिया। साथ ही, निसा के सेवानिवृत्त माता-पिता ने घर की जिम्मेदारियों को संभालने में उनकी भरपूर मदद की, जिससे उन्हें पढ़ाई पर फोकस करने का समय मिला।


निसा ने तिरुवनंतपुरम के एक प्रतिष्ठित कोचिंग सेंटर से मार्गदर्शन लिया। इसके साथ ही, उन्होंने यूपीएससी में सफल हुए उम्मीदवारों की कहानियाँ, इंटरव्यू और मोटिवेशनल वीडियो देखकर खुद को प्रेरित किया। उनका आत्म-अनुशासन और खुद को लगातार बेहतर बनाने का जज़्बा ही था, जिसने उन्हें बार-बार उठने की हिम्मत दी।


यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा में निसा को छह बार असफलता का सामना करना पड़ा। लेकिन हर बार उन्होंने अपनी गलतियों से सीखा, अपनी रणनीति को सुधारते हुए फिर से प्रयास किया। आखिरकार, सातवें प्रयास में, निसा ने ऑल इंडिया रैंक 1000 हासिल कर ली। यह सिर्फ एक परीक्षा में सफलता नहीं थी, बल्कि उनकी आत्म-विश्वास, धैर्य और कठोर परिश्रम की जीत थी।


40 साल की उम्र में सिविल सेवा में चयनित होकर निसा ने उन हज़ारों महिलाओं के लिए मिसाल पेश की है, जो पारिवारिक ज़िम्मेदारियों या सामाजिक सीमाओं की वजह से अपने सपनों को पीछे छोड़ देती हैं। अब आईएएस अधिकारी बनने के बाद, निसा न केवल अपनी जिम्मेदारियाँ निभाएंगी, बल्कि समाज में दिव्यांगजनों और महिलाओं के लिए प्रेरणा भी बनेंगी। उनकी योजना है कि वह अपने अनुभवों के आधार पर समावेशी प्रशासन की दिशा में काम करें। निसा उन्नीराजन की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कभी भी देर नहीं होती। अगर इरादे पक्के हों और मेहनत सच्ची हो, तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं।