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Success Story: भारत की पहली दृष्टिहीन महिला IAS अधिकारी बनीं प्रांजल पाटिल, जानिए... सफलता की अनोखी कहानी

Success Story: कहते हैं कि अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी मुश्किल रास्ता रोक नहीं सकती। इस कहावत को साकार किया है दृष्टिहीन महिला IAS अधिकारी! जानिए... सफलता की कहानी.

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 25 May 2025 03:57:05 PM IST

Success Story

सफलता की कहानी - फ़ोटो GOOGLE

Success Story: कहते हैं कि अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी मुश्किल रास्ता रोक नहीं सकती। इस कहावत को साकार किया है महाराष्ट्र के उल्हासनगर में जन्मी प्रांजल पाटिल ने, जो आज देश की पहली दृष्टिहीन महिला IAS अधिकारी हैं। उनकी कहानी सिर्फ एक सफलता नहीं, बल्कि उन लाखों लोगों के लिए उम्मीद की किरण है जो विषम परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। प्रांजल ने यह साबित कर दिया कि अगर लगन और मेहनत हो, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।


प्रांजल पाटिल का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था। बचपन में ही उन्होंने एक बड़ी चुनौती का सामना किया। जन्म से ही उनकी दृष्टि कमजोर थी और मात्र छह वर्ष की आयु में एक दुर्घटना के बाद उन्होंने अपनी दृष्टि पूरी तरह से खो दी। यह वह समय था जब अधिकतर लोग हार मान लेते, लेकिन प्रांजल ने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया, बल्कि अपनी सबसे बड़ी ताकत बना लिया।


उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के कमला मेहता दादर स्कूल फॉर द ब्लाइंड से प्राप्त की। आगे की पढ़ाई उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से पूरी की। उनकी पढ़ाई के प्रति लगन इतनी थी कि उन्होंने प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), दिल्ली से इंटरनेशनल रिलेशन में MA, M.Phil और Ph.D. की उपाधियाँ प्राप्त कीं। पढ़ाई के दौरान उन्होंने ब्रेल, ऑडियो बुक्स और टेक्स्ट-टू-स्पीच सॉफ्टवेयर जैसे टूल्स का उपयोग किया।


जब उन्होंने UPSC जैसी सबसे कठिन मानी जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा देने का निश्चय किया, तो यह फैसला अपने आप में साहसिक था। अधिकांश छात्र जहां कोचिंग संस्थानों का सहारा लेते हैं, वहीं प्रांजल ने कोई कोचिंग नहीं ली। उन्होंने NVDA जैसे सॉफ्टवेयर की मदद से किताबें सुन-सुनकर पढ़ाई की। 2016 में उन्होंने पहली बार UPSC परीक्षा दी और 744वीं रैंक प्राप्त की। हालांकि यह सफलता भी उल्लेखनीय थी, लेकिन उन्होंने संतोष नहीं किया और अगले वर्ष यानी 2017 में दोबारा प्रयास किया। इस बार उन्होंने 124वीं रैंक के साथ न केवल परीक्षा उत्तीर्ण की, बल्कि अपने बचपन के सपने को भी साकार किया।


2018 में, प्रांजल की नियुक्ति केरल के एर्नाकुलम जिले में असिस्टेंट कलेक्टर के रूप में हुई। यह नियुक्ति न केवल उनके लिए ऐतिहासिक क्षण था, बल्कि उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा बन गई जो शारीरिक या सामाजिक चुनौतियों से गुजर रहे हैं। बाद में उनकी पोस्टिंग तिरुवनंतपुरम जिले की सब-कलेक्टर के रूप में हुई, जहां उन्होंने प्रशासनिक दक्षता से कार्य करते हुए लोगों के दिल में जगह बनाई।


प्रांजल पाटिल ने प्रशासनिक सेवा में यह दिखाया कि दृष्टिहीनता कोई बाधा नहीं, बल्कि आत्मबल और संकल्प से हर लक्ष्य पाया जा सकता है। उन्हें कई बार सम्मानित भी किया गया है और वे विभिन्न मंचों पर मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में भी लोगों को प्रेरित कर रही हैं। आज प्रांजल पाटिल की कहानी देशभर के युवाओं, विशेष रूप से दिव्यांगजनों के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने अपने संघर्ष, मेहनत और सफलता से यह साबित कर दिया है कि सपने देखने के लिए आंखें नहीं, बल्कि हौसला चाहिए।