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Bollywood News: डेड बॉडी का रोल करने वाले विनीत सिंह ने आज बनाई अपनी जगह, फिल्म छावा में की धमाकेदार एक्टिंग

विनीत कुमार सिंह भारतीय सिनेमा के उन चुनिंदा अभिनेताओं में से एक हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत, धैर्य और अदम्य इच्छाशक्ति के दम पर सफलता हासिल की है। बनारस में जन्मे विनीत ने डॉक्टर बनने के बावजूद अपने अभिनय के सपने को नहीं छोड़ा।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 01 Mar 2025 07:01:59 AM IST

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Bollywood News: विनीत कुमार सिंह, एक ऐसा नाम जिसने संघर्ष की सही परिभाषा को सार्थक किया है। आज की दुनिया में जब लोग कुछ वर्षों के संघर्ष के बाद हार मान लेते हैं, विनीत का सफर प्रेरणादायक है। साल 2000 के आसपास वे मुंबई आए और 25 वर्षों तक अपने सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष करते रहे।


डॉक्टरी और एक्टिंग का संगम

भारत में डॉक्टरी की पढ़ाई किसी युद्ध से कम नहीं होती, लेकिन विनीत ने यह राह सिर्फ इसलिए चुनी ताकि वे दिन में फिल्मों के लिए ऑडिशन दे सकें और रात में मरीज देख सकें।


सिनेमा में शुरुआती सफर

सिनेमा प्रेमियों ने विनीत को 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' और 'मुक्काबाज' जैसी फिल्मों में देखा होगा। हालांकि, इन फिल्मों में उनके काम को सराहा गया, लेकिन असली पहचान हाल ही में आई फिल्म 'छावा' से मिली। इस फिल्म में उन्होंने छत्रपति संभाजी महाराज के मित्र कवि कलश का किरदार निभाया है, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।


बनारस से मुंबई तक का सफर

विनीत कुमार का जन्म बनारस में हुआ था। उनके पिता डॉ. शिवराम सिंह एक प्रतिष्ठित गणितज्ञ थे और बनारस के यूपी कॉलेज में पढ़ाते थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा इसी माहौल में हुई, लेकिन उनके मन में हमेशा कुछ बड़ा करने की इच्छा थी।


खेल से अभिनय तक का सफर

बचपन में विनीत का रुझान खेलों की ओर था, खासकर बास्केटबॉल में। वे राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रह चुके हैं, लेकिन हाइट की वजह से इस खेल को छोड़ना पड़ा। इसके बाद उनका झुकाव अभिनय की ओर हुआ।


परिवार की असहमति और डॉक्टरी की पढ़ाई

घरवाले उनके मुंबई जाने के खिलाफ थे, इसलिए उन्होंने एक अलग रास्ता चुना। उन्होंने CPMT परीक्षा पास कर डॉक्टरी की पढ़ाई शुरू की और BAMS (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) में दाखिला लिया। उन्होंने हरिद्वार में पढ़ाई की ताकि दिल्ली जाकर NSD (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) के नाटकों को देख सकें और अभिनय की बारीकियां सीख सकें।


मुंबई में संघर्ष के साल

डॉक्टरी की डिग्री पूरी करने के बाद, वे मुंबई पहुंचे और फिल्मों में छोटे-छोटे रोल करने लगे। महेश मांजरेकर की फिल्म 'पिता' (2002) में उन्हें पहला मौका मिला, लेकिन पहचान नहीं मिली। संघर्ष के दौरान उन्होंने 'क्राइम पेट्रोल' जैसे शोज़ में छोटे-मोटे किरदार निभाए, यहां तक कि एक फिल्म में डेडबॉडी तक बने।


अनुराग कश्यप से मुलाकात और सफलता की ओर कदम

2009 में फिल्म फेस्टिवल के दौरान विनीत की मुलाकात अनुराग कश्यप से हुई। अनुराग ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में कास्ट किया। बाद में, विनीत ने 'मुक्काबाज' की कहानी खुद लिखी और इस फिल्म में लीड रोल निभाने का फैसला किया। अनुराग कश्यप को यह कहानी इतनी पसंद आई कि उन्होंने खुद इसे डायरेक्ट किया।


'मुक्काबाज' के लिए की गई कठिन मेहनत

इस फिल्म के लिए विनीत ने न केवल अपना सबकुछ झोंक दिया, बल्कि पटियाला जाकर बॉक्सिंग की ट्रेनिंग भी ली। ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने कई चोटें झेलीं, लेकिन हार नहीं मानी।


'छावा' से मिली असली पहचान

हाल ही में रिलीज हुई फिल्म 'छावा' में उनके किरदार कवि कलश को दर्शकों ने खूब पसंद किया। इस किरदार को निभाने के लिए उन्होंने महाराष्ट्र के तुलापुर जाकर कवि कलश की समाधि स्थल का दौरा किया और उनके जीवन को गहराई से समझा।


विनीत कुमार सिंह की कहानी एक प्रेरणा है, जो यह दिखाती है कि अगर जुनून और समर्पण हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। वे आज जिस मुकाम पर हैं, वह उनकी कड़ी मेहनत और अटूट विश्वास का परिणाम है। उनकी सफलता हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष कर रहा है।