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नीतीश का सुशासन : बिहार के व्यापम घोटाले के मुख्य आरोपी को बनाया शिक्षा मंत्री, नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप पर रामनाथ कोविंद ने की थी कार्रवाई

1st Bihar Published by: Updated Tue, 17 Nov 2020 03:57:41 PM IST

नीतीश का सुशासन : बिहार के व्यापम घोटाले के मुख्य आरोपी को बनाया शिक्षा मंत्री, नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप पर रामनाथ कोविंद ने की थी कार्रवाई

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PATNA: क्राइम, करप्शन और कम्यूनलिज्म से कभी समझौता नहीं करने वाले का एलान करने वाले नीतीश कुमार ने बिहार के सबसे बड़े नौकरी घोटाले के आरोपी को अपना शिक्षा मंत्री बना दिया है. बिहार के नये शिक्षा मंत्री बने मेवालाल चौधरी पर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति रहते नौकरी में भारी घोटाला करने का आरोप है. उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज है. देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बिहार का राज्यपाल रहते मेवालाल चौधरी के खिलाफ जांच करायी थी और उन पर लगे आरोपों को सच पाया था. ये जांच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर हुई थी. मेवालाल चौधरी पर सबौर कृषि विश्वविद्यालय के भवन निर्माण में भी घोटाले का आरोप है.


सबसे बड़ी बात ये है कि मेवालाल चौधरी के इस बड़े घोटाले के खिलाफ सत्तारूढ जेडीयू के नेताओं ने भी आवाज उठायी थी. विधान परिषद में जेडीयू विधान पार्षदों ने मेवालाल चौधरी के खिलाफ हंगामा ख़ड़ा कर दिया था. वहीं बाद में बीजेपी के नेता सुशील कुमार मोदी ने इसे जोर शोर से उठाया था. सुशील कुमार मोदी सबूतों का पुलिंदा लेकर तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोबिंद से मिले थे. इसके बाद जांच हुई और जांच में पाया गया कि मेवालाल चौधरी ने कृषि विश्वविद्यालय का कुलपति रहते बड़ा घोटाला किया. ये घोटाला 161 सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति में हुआ था.


जेडीयू ने भी पार्टी से कर दिया था निलंबित
हालांकि मेवालाल चौधरी सत्ताशीर्ष के बेहद करीबी थे. लिहाजा उनके खिलाफ कार्रवाई होने में बहुत देर हुई. बाद में 2017 में उनके खिलाफ निगरानी विभाग ने एफआईआर दर्ज की. तब तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला गर्म था. मजबूरन जेडीयू को मेवालाल चौधरी के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी. 2017 में मेवालाल चौधरी को जेडीयू ने पार्टी से निलंबित कर दिया था.


FIR दर्ज है, रसूख इतना कि चार्जशीट दाखिल नहीं हुई
मेवालाल चौधरी के खिलाफ पहले सबौर थाने में प्राथमिकी दर्ज हुई थी. सबौर थाने की प्राथमिकी संख्या 35/2017 में मेवालाल चौधरी नौकरी घोटाले के मुख्य अभियुक्त हैं. इसके बाद ये मामला निगरानी को ट्रांसफर कर दिया गया. निगरानी विभाग ने मेवालाल के खिलाफ केस संख्या-4/2017 दर्ज कर रखा है. केस को दर्ज हुए 3 साल से ज्यादा हो गये लेकिन आज तक मेवालाल के खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं की गयी. कहा जाता है कि मेवालाल चौधरी का रसूख इतना बड़ा है कि उनके खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत जुटा पाने में निगरानी विभाग विफल रही.


क्या है सबौर कृषि विश्वविद्यालय का नौकरी घोटाला
बिहार कृषि विश्वविद्यालय में वर्ष 2012 में हुई 161 सहायक प्राध्यापक सह जूनियर साइंटिस्टों की नियुक्ति में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा सामने आया. यूनिवर्सिटी में योग्य अभ्यर्थियों के बजाय अयोग्य अभ्यर्थियों की नियुक्ति कर ली गई. इस घोटाले को बिहार का व्यापम घोटाला कहा गया. नियुक्ति प्रक्रिया में धांधली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सका कि विवि प्रबंधन ने बगैर राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) पास किए डेढ़ दर्जन अभ्यथियों से अधिक को नौकरी दे दी.


दरअसल, बीएयू में साल 2012 में प्राध्यापकों की नियुक्ति की गई थी, जब मेवालाल चौधरी कुलपति थे. बहाली में मेधा और नियमों को ताक पर रखकर नियुक्ति की गई. आरोप लगा कि  जिनका एकेडमिक रिकार्ड बेहतर था, उन्हें पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन एवं साक्षात्कार के लिए आवंटित 10-10 अंकों में 0.1 देकर अयोग्य करार दे दिया गया, जबकि जिन अभ्यर्थियों का एकेडमिक रिकार्ड कमजोर था उन्हें 20 में से 18 नंबर तक देकर अवैध रूप से नियुक्त कर लिया गया.


विवि प्रबंधन की इस मनमानी से आहत असफल अभ्यर्थियों ने आरटीआइ के माध्यम से नियुक्ति की मेधा सूची निकाली तो इसका खुलासा हुआ. इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शिकायत कर न्याय की गुहार लगाई. पीएम मोदी ने मामले को गंभीरता लेते हुए इसकी रिपोर्ट तत्कालीन राज्यपाल सह कुलाधिपति रामनाथ कोविंद से मांगी थी. इसके बाद राज्यपाल ने बीएयू के कुलपति को इस मामले का रिपोर्ट जल्द सौंपने का निर्देश दिया था.


राज्यपाल द्वारा रिपोर्ट मांगे जाने पर कुलपति द्वारा तीन सदस्यों वाली कमेटी गठित की गई थी, जिसमें डीन पीजी डॉ बीसी साहा, कृषि अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ एमके बाधवानी एवं सांख्यिकी के विभागाध्यक्ष डॉ आरएन झा शामिल थे.



जांच में खुलासा हुआ कि स्वायल साइंस विभाग में सामान्य कोटि के उम्मीदवार नेट, पीएचडी एवं गोल्ड मेडलिस्ट रहे पूनम शर्मा, आशीष कुमार श्रीवास्तव एवं राजन कुमार ओझा तथा नेट एवं पीएचडी रहे युगल किशोर, ज्ञानी दत्त शर्मा, संतोष कुमार सिंह एवं सत्येंद्र नाथ सिंह आदि को पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन एवं साक्षात्कार में मिला आउट ऑफ 20 में पांच से भी कम अंक देकर अयोग्य करार दे दिया गया, जबकि जिन अभ्यर्थियों की नियुक्ति की गई है उनमें से कोई भी अभ्यर्थी पीएचडी नहीं था.


रिपोर्ट के अनुसार विभिन्न विषयों एवं कोटि को मिले करीब दो दर्जन ऐसे अभ्यर्थी का चयन कर लिया गया जो नेट भी उत्तीर्ण नहीं है जबकि बिना नेट उत्तीर्ण अभ्यर्थी की शिक्षक पद पर नियुक्ति नहीं हो सकती है. ऐसे अभ्यर्थियों को पावर प्रजेंटेशन एवं साक्षात्कार को मिला कुल 20 अंकों में 20 अंक देकर सहायक प्राध्यापक सह जूनियर साइंटिस्ट पद पर नियोजित कर लिया गया.




ड्राइवर नियुक्ति में धांधली को लेकर भी सुर्खियों में रहे थे मेवालाल
इससे पूर्व ड्राइवर नियुक्ति में धांधली को लेकर भी बिहार कृषि विवि और उसके तत्कालीन कुलपति मेवालाल चौधरी सुर्खियों में रहे थे. तब विवि प्रशासन ने ड्राइवर पद पर बहाली के लिए फर्जी एमवीइ को साथ लेकर साक्षात्कार के कार्य को अंजाम देने का प्रयास किया था, जिसका पर्दाफाश होने पर तत्काल इंटरव्यू पर रोक लगा दी गई थी और फर्जी एमवीआई फरार हो गए थे. इस मामले में अभ्यर्थियों ने न्याय के लिए उच्च न्यायालय की भी शरण ली थी.