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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Tue, 31 Jan 2023 08:55:54 PM IST
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PATNA: जेडीयू में हिस्सेदारी मांग रहे उपेंद्र कुशवाहा ने आज इस सवाल का जवाब दिया कि आखिरकार उन्हें कौन सा हक चाहिये. उपेंद्र कुशवाहा ने आज प्रेस कांफ्रेंस की थी. पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आखिरकार उन्हें कौन सा हिस्सा चाहिये जिसे वह नीतीश कुमार से मांग रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने जवाब दिया-मुझे वैसा ही हिस्सा चाहिये, जैसा 12 फरवरी 1994 को गांधी मैदान में रैली कर नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव से मांगा था।
क्या थी 1994 वाली रैली?
पहले ये जानिये कि 12 फरवरी 1994 की जिस रैली का जिक्र उपेंद्र कुशवाहा ने किया वह कौन सी रैली थी. 12 फरवरी 1994 को पटना के गांधी मैदान में कुर्मी चेतना रैली हुई थी. इस रैली से नीतीश कुमार लालू विरोधी चेहरा बन कर उभरे थे. उससे पहले वे लालू प्रसाद यादव के खास सहयोगी माने जाते रहे थे. इस रैली के मंच से नीतीश कुमार ने एलान किया था-लालू प्रसाद यादव हमारे वोट की बदौलत सत्ता में आये हैं लेकिन उन्होंने हमारा हक नहीं दिया. हमें अपना हक चाहिये।
गांधी मैदान की वह रैली एक जाति विशेष की रैली थी. उस रैली की मंच से अगर नीतीश कुमार अपना हक मांग रहे थे तो जाहिर तौर पर अपनी जाति के लिए हक मांग रहे थे. इस रैली का असर ये हुआ कि पिछडी जाति में शामिल कुर्मी जाति से आने वाले नीतीश कुमार लालू विरोधी प्रमुख चेहरा बन कर उभरे. बिहार की राजनीति उस वक्त अगड़ी-पिछड़ी जाति में बंट चुकी थी।
लालू प्रसाद यादव पिछड़ी जाति के वोटरों को बड़े पैमाने पर अपने खेमे में ले आये थे. लालू से खफा अगडी जाति के लोगों को लगा कि नीतीश कुमार लालू को परास्त कर सकते हैं तो उनका समर्थन भी नीतीश कुमार को मिलने लगा. इस रैली के तकरीबन 8 महीने बाद नीतीश कुमार जार्ज फर्नांडीज की अगुआई में जनता दल से अलग हो गये. उस समय तक बिहार में जनता दल की ही सरकार थी औऱ लालू यादव उसके मुख्यमंत्री. लालू यादव ने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल की स्थापना तो तीन साल बाद की थी।
कुशवाहा का हिस्सा मांग रहे हैं उपेंद्र
1994 की कुर्मी चेतना रैली के मंच से ही लव-कुश के समीकरण की चर्चा हुई. लव यानि कुर्मी और कुश यानि कुशवाहा. नीतीश कुमार ने 1994 से लेकर अब तक इसी लव-कुश समीकरण को आधार बनाकर आगे की सियासत की. लेकिन अब उपेंद्र कुशवाहा ‘कुश’ का हिस्सा मांग रहे हैं. वे खुल कर तो ये बात नहीं बोल रहे हैं लेकिन जो बोल रहे हैं उसका मतलब यही है. वे ये बता रहे हैं कि बिहार में अगर नीतीश कुमार 17 सालों से राज कर रहे हैं तो उसमें कुशवाहा वोटरों का बड़ा योगदान रहा है. लेकिन कुशवाहा समाज को उसका हिस्सा नहीं मिला।
अभी इशारों में बात कर रहे उपेंद्र कुशवाहा आने वाले दिनों में ये बात खुल कर बोलेंगे. वे अपनी जाति के वोटरों को मैसेज देना चाह रहे हैं कि बिहार में नीतीश कुमार की सरकार के लिए वोट तो कुशवाहा देते रहे लेकिन मौज लव करते रहे. वे मंत्रिमंडल से लेकर शासन-प्रशासन में कुशवाहा समाज को हिस्सा नहीं मिलने की बात उठायेंगे. उपेंद्र कुशवाहा ये बतायेंगे कि नीतीश कुमार के राज में किस तबके के लोगों की मौज रही।
कुशवाहा राजनीति के तहत ही उपेंद्र कुशवाहा ने जगदेव प्रसाद की जयंती मनाने का फैसला लिया है. 2 फरवरी को उपेंद्र कुशवाहा के समर्थक पूरे राज्य में जगदेव जयंती मनायेंगे. जगदेव प्रसाद मगध क्षेत्र में कुशवाहा समाज के सबसे बड़े नेता के तौर पर माने जाते रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा उनकी जयंती के दिन से ही जेडीयू नेतृत्व के खिलाफ औऱ ज्यादा तल्ख होंगे. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि नीतीश कुमार और उनके सलाहकार इस रणनीति को नहीं समझ रहे हैं।
तभी अपने इतिहास में पहली दफे जेडीयू ने जगदेव प्रसाद की जयंती मनाने का फैसला लिया है. तीन दिन पहले जेडीयू ने आनन फानन में ये एलान किया कि वह प्रखंड से लेकर जिला औऱ राज्य मुख्यालय में जगदेव प्रसाद जयंती का आयोजन करेगी. मकसद सिर्फ इतना है कि उपेंद्र कुशवाहा की पॉलिटिक्स को विफल किया जा सके. बता दें कि उपेंद्र कुशवाहा ने काफी पहले से 2 फरवरी को गैर राजनीतिक संगठन महात्मा फूले समता परिषद के बैनर तले जगदेव प्रसाद की जयंती मनाने का एलान कर रखा था।
बढ़ सकती है नीतीश की मुसीबत!
अगर उपेंद्र कुशवाहा अपनी रणनीति में सफल हो जाते हैं तो नीतीश कुमार की मुसीबत काफी ज्यादा बढ़ सकती है. नीतीश कुमार से पहले से वोटरों का बड़ा तबका खफा है. अब अगर उनका आधार वोट भी खिसक जाये तो फिर उनकी राजनीति पर खतरा मंडरायेगा. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार औऱ उनके सलाहकार इस खतरे से कैसे निपटते हैं.