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1st Bihar Published by: Updated Wed, 27 Jan 2021 08:32:28 PM IST
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PATNA : बिहार बीजेपी के प्रभारी भूपेंद्र यादव ने 20 दिन पहले आरजेडी में जिस बड़ी टूट का दावा किया था, क्या वह टूट 27 जनवरी को हो गयी. बीजेपी ने आज बडे धूमधड़ाके के साथ आरजेडी के कई नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया. दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी में आज शामिल होने वाले तमाम नेताओं को राजद ने पहले ही किनारे लगा रखा था. लेकिन बीजेपी गद्गद है. दरअसल बीजेपी को लग रहा है कि इन नेताओं को शामि करा कर वह लालू प्रसाद यादव के यादव वोट में सेंधमारी करने में सफल होगी.
इतना खुश क्यों है बीजेपी
दरअसल बीजेपी ने आज आरजेडी के चार नेताओं के साथ साथ लोजपा, कांग्रेस और एनसीपी के एक-एक नेताओं को अपनी पार्टी की सदस्यता दिलायी. इसके लिए बड़े समारोह का आयोजन किया गया था. बीजेपी के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव तीन दिनों से पटना में कैंप कर रहे थे. बिहार में पार्टी के तमाम बड़े नेताओं की मौजूदगी में आज मिलन समारोह हुआ और दावा कर दिया गया कि आरजेडी को बडी चोट दे दी गयी है. लेकिन हकीकत कुछ और ही है.
कौन-कौन नेता हुए शामिल
बीजेपी ने दावा किया कि आरजेडी के चार प्रमुख नेता आज लालू-तेजस्वी का साथ छोड़ कर उसके खेमे में चले आये. इन नेताओं में पूर्व सांसद सीताराम यादव, पूर्व विधान पार्षद दिलीप कुमार यादव, पूर्व प्रत्याशी संतोष मेहता और पूर्व प्रदेश पदाधिकारी रामजी मांझी शामिल हैं. बीजेपी इन चारों नेताओं को राजद का प्रमुख चेहरा बता रही है लेकिन हकीकत कुछ अलग है. बीजेपी में शामिल हुए नेताओं को राजद ने पहले ही किनारे लगा रखा था.
राजद छोड़ कर बीजेपी में शामिल हुए पूर्व मंत्री और पूर्व सांसद सीताराम यादव किसी दौर में लालू प्रसाद यादव के करीबी हुआ करते थे. लेकिन पिछले 5-6 साल में वे पार्टी में पूरी तरह से अलग थलग पड़े थे. 2019 में हुए पिछले लोकसभा चुनाव में सीताराम यादव सीतामढ़ी सीट से टिकट के दावेदार थे लेकिन राजद ने वहां से अर्जुन राय को टिकट दे दिया था. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी सीताराम यादव और उनके परिजन राजद के टिकट के दावेदार थे. लेकिन तेजस्वी यादव ने उनका कोई नोटिस ही नहीं लिया था.
राजद से एमएलसी रह चुके दिलीप कुमार यादव भी पार्टी में सक्रिय नहीं थे. पिछले विधानसभा चुनाव में वे भी टिकट के दावेदार थे लेकिन राजद ने कोई नोटिस ही नहीं लिया. बीजेपी में शामिल हुए राजद नेता संतोष मेहता की भी ऐसी ही कहानी है. 2015 के विधानसभा चुनाव में वे पटना साहिब विधानसभा सीट से आरजेडी के उम्मीदवार थे. संतोष मेहता बेहद कम वोट से चुनाव हारे थे लेकिन 2020 में राजद ने उनकी दावेदारी पर कोई चर्चा तक नहीं की. राजद ने पटना साहिब सीट तालमेल में कांग्रेस को सौंप दी. कांग्रेस ने भागलपुर से उम्मीदवार लाकर पटना साहिब में खड़ा कर दिया. संतोष मेहता इस बात से भी ज्यादा परेशान थे कि पार्टी चुनाव बाद भी उनका कोई नोटिस नहीं ले रही है.
बीजेपी में शामिल हुए एक और आरजेडी नेता रामजी मांझी को राजद का पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष बताया जा रहा है. लेकिन सियासी गलियारे में रामजी मांझी को पहचानने वाले लोग बहुत ढूढने पर मिल रहे हैं. लेकिन बीजेपी प्रसन्न है. खुद भूपेंद्र यादव ने दावा किया कि बीजेपी ने राजद में बड़ी सेंध लगा दी है.
यादव पॉलिटिक्स कर रही है बीजेपी
दरअसल बीजेपी यादव पॉलिटिक्स कर रही है. बीजेपी ने आज राजद के सीताराम यादव, दिलीप कुमार यादव के साथ साथ कांग्रेस की पूर्व नेत्री अनिता यादव को भी पार्टी में शामिल कराया. बीजेपी के एक नेता ने बताया कि भूपेंद्र यादव को लग रहा है कि वे राजद के यादव वोट बैंक में सेंधमारी कर सकते हैं. लिहाजा राजद के यादव नेताओं को चुन चुन कर तलाशा जा रहा है. ये दीगर बात है कि कोई कद्दावर यादव नेता नहीं मिल रहा है. लेकिन फिर भी जो आ रहे हैं उनसे बीजेपी को बड़ी उम्मीदें हैं.
वैसे इन नेताओं को पार्टी में शामिल कराने के लिए बीजेपी ने आज जो समारोह आयोजित किया उसमें भी यादव पॉलिटिक्स की झलक मिली. भूपेंद्र यादव के ठीक बगल में बीजेपी कोटे से मंत्री बने रामसूरत राय को बिठाया गया था. रामसूरत राय पहली दफे मंत्री बने हैं, पार्टी की राज्य स्तरीय पॉलिटिक्स में कभी सक्रिय नहीं रहे लेकिन आज उन्हें खास तौर पर इस मिलन समारोह में बुलाया गया था.
वैसे भी भूपेंद्र यादव को बिहार बीजेपी का सर्वेसर्वा बनाये जाने के बाद बीजेपी के नेता नित्यानंद राय को खूब प्रोमोट किया गया है. पहले प्रदेश अध्यक्ष बनाये गये और फिर केंद्र में मंत्री. बिहार में संगठन से जुडे हर मामले में नित्यानंद राय की दखल देती जाती है. बीजेपी के जानकार बताते हैं कि भूपेंद्र यादव उन्हें बिहार की सियासत में यादव चेहरे के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं.
बिहार में यादव वोटर कभी बीजेपी के वोट बैंक नहीं माने गये. हालांकि कई यादव नेता बीजेपी के अहम पदों पर रहे लेकिन यादवों का जुड़ाव बीजेपी से नहीं हो पाया. अब भूपेंद्र यादव इस मिथक को तोड़ने की रणनीति में लगे हैं. ये देखना दिलचस्प होगा कि इसका नतीजा क्या निकलता है.