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Parliament vs Judiciary: अगर कानून बनाना सुप्रीम कोर्ट का काम है, तो संसद भवन को ताला लगा देना चाहिए ...वक्फ अधिनियम पर भाजपा सांसद का तीखा हमला!

Parliament vs Judiciary: वक्फ अधिनियम को लेकर भारत में संवैधानिक, सामाजिक और राजनीतिक बहस तेज हो गई है। सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता पर सवाल उठाते हुए राजनीतिक हस्तियों ने न्यायपालिका और विधायिका के अधिकार क्षेत्रों को लेकर चिंता जताई है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 19 Apr 2025 02:33:07 PM IST

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प्रतीकात्मक तस्वीर - फ़ोटो Google

Parliament vs Judiciary: वक्फ अधिनियम को लेकर देश में चल रही संवैधानिक और सामाजिक बहस अब सियासी रंग ले चुकी है। झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर सवाल उठाते हुए तीखी टिप्पणी की है।


उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर लिखा कि अगर कानून सुप्रीम कोर्ट ही बनाएगा तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए। यह बयान वक्फ अधिनियम में संशोधन और सुप्रीम कोर्ट की हालिया सक्रियता के संदर्भ में देखा जा रहा है।इससे पहले केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी न्यायपालिका की भूमिका को लेकर चिंता जता चुके हैं। कानून मंत्री ने कहा था कि संविधान में शक्तियों का स्पष्ट विभाजन है, और सुप्रीम कोर्ट को विधायी मामलों में हस्तक्षेप से बचना चाहिए।


 वहीं उपराष्ट्रपति ने अनुच्छेद (Article 142) का हवाला देते हुए सवाल उठाया कि क्या न्यायपालिका राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पद को भी निर्देश दे सकती है। यह विवाद तब और गहरा गया जब सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने में देरी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्यपाल को किसी भी विधेयक पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना अनिवार्य है, और देरी होने पर उसे स्वीकृत माना जाएगा। इस फैसले ने न्यायपालिका बनाम विधायिका की बहस को नई गति मिल गयी  है।  


वक्फ अधिनियम की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं, जिनमें आरोप है कि यह कानून वक्फ बोर्ड को निजी संपत्तियों पर अनुचित दावा करने की शक्ति देता है। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है और कहा है कि केंद्र सरकार के जवाब तक किसी संपत्ति की वक्फ स्थिति में परिवर्तन नहीं किया जाएगा। भारतीय संविधान विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका| इन तीनों स्तंभों के बीच संतुलन पर आधारित है। लेकिन जब कोई एक स्तंभ अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाता है, तो टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है।


मौजूदा विवाद इसी टकराव का संकेत दे रहा है, जहां न्यायपालिका के निर्णय विधायिका की सीमाओं को छूने लगे हैं। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का बयान सिर्फ राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं बल्कि एक गहरी संवैधानिक बहस की ओर इशारा करता है। वक्फ अधिनियम पर चल रही सुनवाई और तमिलनाडु के विधेयकों पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने लोकतंत्र के इन स्तंभों के बीच संतुलन को लेकर नया विमर्श खड़ा कर दिया है। आने वाले समय में इस बहस की दिशा सरकार की प्रतिक्रिया और सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय से तय होगी।