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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 10 Jul 2025 05:39:15 PM IST
मध्याह्न भोजन पर सवाल - फ़ोटो SOCIAL MEDIA
BHOJPUR: बिहार के भोजपुर जिले में मिड डे मील (मध्याह्न भोजन) की गुणवत्ता अक्सर सवाल उठते रहते हैं। इस बार भी एक बार बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। पीरो प्रखंड के मध्य विद्यालय खननीकलां में मिड डे मील में उबली हुई मरी छिपकली पाए जाने के बाद 50 बच्चे गंभीर रूप से बीमार हो गए। इनमें से 8 बच्चों की हालत बेहद नाजुक बताई जा रही है।इन सभी बच्चों को आनन-फानन में पीरो के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया है।
क्या हुआ था स्कूल में?
गुरुवार को मध्याह्न भोजन के तहत बच्चों को चावल और दाल तड़का परोसा गया था। भोजन करने के कुछ ही देर बाद एक छात्रा की तबीयत बिगड़ गई और वह मुंह से झाग छोड़ने लगी। यह देख ग्रामीणों और अन्य बच्चों में हड़कंप मच गया। कुछ ही मिनटों में कई बच्चों को उल्टी-दस्त और चक्कर की शिकायत होने लगी। तब स्कूल प्रशासन की सूचना पर ब्लॉक शिक्षा पदाधिकारी (BEO) मनोज सिंह तुरंत मौके पर पहुंचे और बच्चों को निजी वाहन व एंबुलेंस के माध्यम से अस्पताल भिजवाया।
भात में मिली मरी छिपकली
बाद में जब भोजन के बर्तनों की जांच की गई तो एक बड़े बर्तन में नीचे मरी हुई छिपकली उबली हुई अवस्था में पाई गई, जिससे आशंका है कि वह भोजन पकने के दौरान ही उसमें गिर गई थी। इस भयावह लापरवाही के कारण बच्चों की जान खतरे में पड़ गई। बीमार बच्चों में प्रमुख रूप से कंचन कुमारी, अंजली कुमारी, काजल कुमारी, आयुष कुमार, राहुल कुमार, प्रीति कुमारी और धनवंती कुमारी शामिल हैं।
मिड डे मील की आपूर्ति NGO के जिम्मे
विद्यालय के प्रधानाध्यापक गुप्तेश्वर राम ने बताया कि मिड डे मील की आपूर्ति स्थानीय NGO "सुप्रभात सोशल वेल्फेयर सोसाइटी" द्वारा की जाती है। यह संस्था रोजाना भोजन की व्यवस्था करती है, लेकिन इस बार खाना परोसने से पहले भोजन की गुणवत्ता की जांच नहीं की गई। घटना की जानकारी मिलते ही जिला शिक्षा पदाधिकारी (DEO) मानवेन्द्र कुमार राय भी अस्पताल पहुंचे और बीमार बच्चों का हालचाल लिया। उन्होंने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का भरोसा दिलाया।जांच के आदेश दे दिए गए हैं और संबंधित NGO की भूमिका की गंभीरता से जांच की जा रही है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि बच्चों की हालत अब स्थिर है और सभी का इलाज जारी है। यह घटना एक बार फिर मिड डे मील योजना की सुरक्षा, निगरानी और गुणवत्ता नियंत्रण व्यवस्था पर सवाल उठाती है। बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाओं में ऐसी लापरवाही न केवल निंदनीय है, बल्कि आपराधिक कृत्य भी है।