1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 14 Dec 2025 08:32:51 AM IST
- फ़ोटो
Patna High Court : पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पुर्णेंदु सिंह की अदालत ने तिरहुत प्रमंडल मुजफ्फरपुर के तत्कालीन सहायक निबंधन महानिरीक्षक (एआईजी) प्रशांत कुमार के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया है। यह मामला बिहार में भ्रष्टाचार जांच के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। विशेष निगरानी इकाई (एसवीयू) ने उच्च न्यायालय के इस आदेश पर असंतोष व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने का निर्णय लिया है।
जानकारी के अनुसार, यह पिछले दस दिनों में दूसरी बड़ी घटना है, जिसमें उच्च न्यायालय ने भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द किया है। इससे पहले, बिहार प्रशासनिक सेवा की अधिकारी श्वेता मिश्रा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को भी 5 दिसंबर 2025 को हाईकोर्ट ने रद्द किया था। इन मामलों ने बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही जांच और जांच एजेंसियों के कामकाज पर एक नई बहस छेड़ दी है।
एसवीयू से मिली जानकारी के मुताबिक, एआईजी प्रशांत कुमार के खिलाफ प्राथमिकी नवंबर 2022 में दर्ज की गई थी। जांच के दौरान उनके पास आय से अधिक 2.03 करोड़ रुपए की संपत्ति होने की जानकारी मिली थी। इसके आलोक में एसवीयू ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में अनुसंधान और जांच शुरू की थी। जांच में उनके द्वारा अर्जित की गई चल एवं अचल संपत्ति के स्रोत को समझने का कार्य जारी था।
हालांकि, 8 दिसंबर 2025 को उच्च न्यायालय ने प्राथमिकी को रद्द कर दिया। एसवीयू ने इसे असंतोषजनक कदम बताया है और कहा कि जांच अभी तार्किक और निर्णायक स्थिति में थी। एजेंसी का मानना है कि प्राथमिकी रद्द किए जाने से जांच में बाधा आ सकती है और मामले की पूरी सच्चाई सामने आने में देर हो सकती है। इसी वजह से एसवीयू ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने का निर्णय लिया है।
एआईजी प्रशांत कुमार और श्वेता मिश्रा के मामले ने यह स्पष्ट किया है कि बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही में अदालतें और जांच एजेंसियां दोनों ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। यह मामला न केवल सरकारी अधिकारियों के आचरण की जांच के लिए मिसाल बनेगा, बल्कि अन्य अधिकारियों के लिए भी चेतावनी स्वरूप देखा जा सकता है। एसवीयू का कहना है कि वे उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करेंगे। उनका उद्देश्य जांच को पूरी तरह से निष्पक्ष और स्वतंत्र तरीके से पूरा करना है। वहीं, कोर्ट का यह आदेश जांच प्रक्रिया और कानूनी प्रक्रिया के महत्व को भी रेखांकित करता है।
बिहार में भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाली एजेंसियों और न्यायालयों के बीच यह संतुलन बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसे मामलों में न्यायिक प्रक्रिया के प्रति आम जनता की विश्वास बढ़ता है और सरकारी कार्य प्रणाली में पारदर्शिता आती है। एआईजी प्रशांत कुमार की प्राथमिकी रद्द होने के बाद भी जांच एजेंसियां अपने काम को जारी रखेंगी और संपत्ति के स्रोत और अन्य जांचीय पहलुओं की पुष्टि करेंगी। इस घटना ने बिहार में भ्रष्टाचार जांच के महत्व और न्यायिक प्रक्रिया की जटिलताओं को उजागर किया है। अब यह देखना बाकी है कि एसवीयू द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की जाने वाली एसएलपी का परिणाम क्या होता है और इसके बाद भ्रष्टाचार मामलों की जांच और न्यायिक कार्रवाई पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।