Bihar News: पोखर से बरामद हुआ शिक्षक का शव, विवाद के बाद से थे लापता ₹1 लाख करोड़ की रोजगार योजना आज से लागू, लाल किले से PM MODI का बड़ा ऐलान गांधी मैदान से CM नीतीश ने की कई बड़ी घोषणाएं...नौकरी के लिए परीक्षा देने वालों के लिए खुशखबरी, परदेश से घर आने वालों के लिए बड़ी घोषणा, और भी बहुत कुछ जानें... Asia Cup 2025: भारत के स्टार ओपनर को चयनकर्ताओं का झटका, बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद नहीं मिलेगी टीम में जगह Bihar News: गांधी मैदान से CM नीतीश का ऐलान- बताई अपनी प्राथमिकता, पूर्व की सरकार पर भी साधा निशाना Bihar Weather: 15 अगस्त को बिहार के इन जिलों में होगी बारिश, मौसम विभाग ने जारी किया अलर्ट बाढ़ पीड़ितों के लिए भोजपुर के बड़हरा में भोजन वितरण और सामुदायिक किचन का पांचवां दिन Bihar News: बिहार के इन 46 प्रखंडों में खुलेंगे नए प्रदूषण जांच केंद्र, बिहार सरकार दे रही इतनी सब्सिडी Bihar News: बिहार के इन 46 प्रखंडों में खुलेंगे नए प्रदूषण जांच केंद्र, बिहार सरकार दे रही इतनी सब्सिडी Bihar Police News: बिहार के इस जिले के 24 थानों में नये थानाध्यक्षों की तैनाती, SSP के आदेश पर बड़ा फेरबदल
1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 09 Feb 2025 04:48:54 PM IST
- फ़ोटो SELF
Bihar News: "आचार्य शत्रुघ्न बाबू सिद्धांत के लिए प्रतिबद्ध थे। वे मूल्यों के संरक्षण के लिए समर्पित थे। उनके बौद्धिक प्रेरक होते थे। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मूल्यवान् स्तंभ थे।" ये बातें आज रविवार को पटना के अरविंद महिला कॉलेज सभागार में ऐतिहासिक उपन्यासकार आचार्य शत्रुघ्न प्रसाद के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के अवसर पर बिहार विधान परिषद् के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने कहीं। यह कार्यक्रम आचार्य शत्रुघ्न प्रसाद शोध संस्थान और श्री अरविंद महिला कॉलेज, पटना के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित किया गया था। बिहार विधान परिषद् के सभापति ने आगे कहा कि शत्रुघ्न प्रसाद सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के समर्थक थे।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे साहित्यकार रणेंद्र कुमार ने अपने वक्तव्य में सभागार को संबोधित करते हुए कहा कि शत्रुघ्न प्रसाद जी ने अपने परिवार के विरुद्ध जाकर पटना में रहकर, ट्यूशन आदि करके धनार्जन कर हिंदी विषय में एम.ए.पास किया फिर पीएच.डी. की और आगे चलकर प्रोफेसर बने। आगे उन्होंने बारह ऐतिहासिक उपन्यास भी लिखे। अध्यापन-लेखन के साथ उन्होंने बिहारशरीफ में पुस्तकालय आंदोलन भी चलाया। उन्होंने लोगों को पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। मंच को उपन्यासकार डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद की धर्मपत्नी उर्मिला देवी ने अपना सानिध्य प्रदान किया।
विशिष्ट अतिथि के रूप में बिहार विधान परिषद् में सत्तारूढ़ दल के उप नेता प्रो. राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ने कहा कि आचार्य शत्रुघ्न प्रसाद ने अपने सभी उपन्यासों को उस मिट्टी में रहकर और वहाँ के लोगों के साथ जीकर लिखा। उन्होंने अपने जीवनकाल में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की पत्रिका का नियमित रूप से संपादन का कार्य भी किया था, लेकिन उसमें कहीं भी उनका नाम नहीं था। यह उनके त्याग की प्रवृत्ति को दिखाता है। मुख्य वक्ता के रूप में बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य प्रो. अरुण कुमार भगत ने अपने वक्तव्य में कहा कि आचार्य जी ऐतिहासिक उपन्यासकार, कुशल प्राध्यापक एवं ध्येयनिष्ठ स्वयंसेवक थे। उन्होंने साहित्य की प्राय: सभी विधाओं में लेखन किया है। इसलिए वे ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में सर्वाधिक चर्चित रहे। उनके उपन्यासों में भारत की अस्मिता और परंपरा का साक्षात्कार होता है। उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ. ओंकार पासवान ने और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. अनिता ने किया।प्रारंभ में श्री अरविंद महिला काॅलेज की प्राचार्या प्रो. साधना ठाकुर ने मंचस्थ अतिथियों का स्वागत किया।
उद्घाटन सत्र में ही 'ऐतिहासिक उपन्यासकार आचार्य शत्रुघ्न प्रसाद : दृष्टि और मूल्यांकन' नामक पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया, जिसके प्रधान संपादक प्रो. अरुण कुमार भगत और संपादक डॉ. अमित कुमार हैं। इसमें देशभर के 31 लेखकों के लेख संकलित हैं। संगोष्ठी में शत्रुघ्न प्रसाद के उपन्यासों पर शोधकार्य करनेवाले देश के विविध विश्वविद्यालयों में शोधकार्य करनेवाले सात शोधप्रज्ञों को भी सम्मानित किया गया, जिनमें बोधगया से डॉ. ओंकार पासवान, उत्तरप्रदेश से डॉ. विजय प्रसाद निषाद, राजस्थान से डॉ. महेंद्र कुमार, उत्तरप्रदेश से अनिल कुमार प्रजापति, राजस्थान से डॉ. रघुवीर सिंह, मिजोरम से पवित्रा प्रधान और दिल्ली से डॉ. अजय अनुराग शामिल हैं।
समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं पटना के सांसद रविशंकर प्रसाद उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि आचार्य शत्रुघ्न प्रसाद केवल कलम के धनी नहीं थे, बल्कि वह विचारधारा के प्रति भी समर्पित थे। उन्होंने साहित्य, समाज, सर्जना और सनातन के मर्म को समझा। राष्ट्रप्रेम, समरसता और राष्ट्रवाद उनकी कृतियों का मूल मंत्र है। मुख्य वक्ता के रूप में पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. मंगला रानी ने कहा उनकी सबसे बड़ी शक्ति राष्ट्र प्रेम की भावना है और यही उनके सभी उपन्यासों में अभिव्यक्त होता है। वक्ता के रूप में पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो. बी. के. मंगलम् ने अपने उद्बोधन में कहा कि उनके सभी उपन्यास माँ, माटी, मातृभूमि और मातृभाषा के आस-पास केंद्रित हैं। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. आनंद प्रकाश गुप्ता ने कहा कि शत्रुघ्न प्रसाद मानवीय मूल्यों के संरक्षक लेखक थे। उनके व्यक्तित्व में भारतीयता का वास था। वहीं, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विषय के प्राध्यापक डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने कहा कि आचार्य शत्रुघ्न प्रसाद का लेखन देश के युवाओं के लिए समर्पित है। उन्होंने विशेष रूप से 'श्रावस्ती का विजयपर्व' उपन्यास के कथ्य-वैशिष्ट्य को रेखांकित करते हुए मातृभूमि की रक्षा हेतु राजा सुहेलदेव के युद्धकौशल और प्रजा वत्सलता के भाव का उल्लेख किया। इस सत्र में दिल्ली से पधारे डॉ. अजय अनुराग और मिजोरम से पधारीं डॉ. पवित्रा प्रधान ने भी अपने विचार रखे। समापन सत्र का संचालन पटना विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका डॉ. आशा कुमारी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन आचार्य शत्रुघ्न प्रसाद शोध संस्थान के महासचिव डॉ. अरुण कुमार ने किया। इस संगोष्ठी में पटना समेत बिहार के अन्य कॉलेजों के कई प्राध्यापक, शोधार्थी और छात्र-छात्राएँ मौजूद थीं