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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 21 Sep 2025 10:59:54 AM IST
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Bihar Political News : बिहार में विधानसभा चुनाव की गहमागहमी धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंचने लगी है। अगले कुछ दिनों में चुनाव आयोग विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है। राजनीतिक दलों की गतिविधियां तेज हो चुकी हैं और सियासी बयानबाजी का दौर भी गर्म होता जा रहा है। ऐसे माहौल में एक नई चर्चा राजनीतिक गलियारों में जोर पकड़ चुकी है। चर्चा इस बात की है कि सरकार के अलग-अलग विभागों को अनौपचारिक रूप से विशेष हिदायत दी गई है कि वे फिलहाल अपने बयानों और सूचनाओं को लेकर बेहद सतर्क रहें।
जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे सत्ताधारी दल और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज होता जा रहा है। सत्ता में बैठे मंत्री और नेता विपक्षी दलों के निशाने पर हैं। ऐसे में उनके कामकाज और विभागीय नीतियों पर सवाल उठाए जा रहे हैं। चुनावी माहौल में छोटी-सी चूक या बयान का गलत अर्थ निकालकर विपक्षी दल उसे बड़ा मुद्दा बना सकते हैं। यही वजह है कि सरकार के अंदरखाने अब विभागों को साफ संदेश भेजा गया है कि वे अतिरिक्त सावधानी बरतें।
विभागीय सूत्रों के अनुसार, सभी विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों को अनौपचारिक तौर पर निर्देश दिया गया है कि वे मीडिया से बातचीत करते समय बेहद सतर्क रहें। बिना सोचे-समझे किसी भी तरह का बयान न दें। यदि जरूरी हो तभी कोई सूचना सार्वजनिक की जाए और हर शब्द को बारीकी से परखा जाए। यह भी कहा गया है कि जल्दबाजी में या हड़बड़ी में ऐसी कोई भी सूचना न जारी करें, जिससे विपक्ष को नया मुद्दा मिल जाए।
यह आदेश पूरी तरह से चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। दरअसल, कई बार प्रशासनिक फैसलों या नीतिगत घोषणाओं को विपक्ष चुनावी हथियार बना लेता है। ऐसे में मंत्री और पूरा विभाग विवादों में घिर जाता है। इससे न केवल सरकार की छवि प्रभावित होती है बल्कि चुनावी माहौल में विपक्ष को जनता के बीच प्रचार का मौका भी मिल जाता है।
बिहार में चुनाव आयोग अगले महीने कभी भी तारीखों का ऐलान कर सकता है। तारीखों के ऐलान के साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी। आचार संहिता लगते ही सरकारी विभागों की घोषणाओं और गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी। ऐसे में विभाग पहले से ही सावधानी बरत रहे हैं ताकि उन पर किसी तरह की कार्रवाई न हो। सूत्रों के मुताबिक, कई विभागों ने तो फिलहाल प्रेस रिलीज जारी करना भी लगभग बंद कर दिया है। यहां तक कि जिन कार्यक्रमों की पूर्व-घोषणा की गई थी, उन्हें भी चुपचाप स्थगित कर दिया गया है। वजह यह है कि चुनाव आयोग किसी भी सरकारी गतिविधि को चुनावी लाभ के नजरिए से देख सकता है।
इस पूरे मामले को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा जोरों पर है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार विभागीय तंत्र को अपने राजनीतिक हित में इस्तेमाल कर रही है। जबकि सत्ता पक्ष का कहना है कि यह पूरी तरह प्रशासनिक एहतियात है। सत्ताधारी दल का मानना है कि विपक्ष अक्सर छोटे मुद्दों को बड़ा बनाकर प्रचार करता है। ऐसे में विभागों को पहले ही सतर्क किया गया है ताकि किसी तरह की गलती से बचा जा सके। राज्य के कई विभागों के अधिकारी मानते हैं कि चुनावी माहौल में जरा-सी लापरवाही भी भारी पड़ सकती है। यही वजह है कि फिलहाल वे ‘सतर्कता मोड’ में हैं। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा – “हमें साफ कहा गया है कि जब तक बेहद जरूरी न हो, तब तक मीडिया में कुछ भी न बोलें। हर शब्द सोच-समझकर ही इस्तेमाल करें, क्योंकि एक बयान से पूरा विभाग विवाद में आ सकता है।”
चुनावी मौसम में विपक्ष को मुद्दा मिलने का मतलब है कि पूरे राज्यभर में उसे प्रचारित किया जाएगा। यही वजह है कि सत्ता पक्ष और सरकार चाहती है कि विपक्ष को कोई नया ‘हथियार’ न मिले। चुनाव से पहले यदि किसी विभाग की गलती उजागर होती है तो इसका सीधा असर सत्ताधारी दल के प्रत्याशियों पर पड़ेगा। यही कारण है कि सरकार ने पहले ही विभागों को सख्ती से नियंत्रित कर लिया है।
बिहार में विधानसभा चुनाव की आहट साफ सुनाई दे रही है। चुनाव आयोग का ऐलान कुछ ही दिनों में होने वाला है। ऐसे समय में सरकार और उसके विभाग किसी भी विवाद से बचना चाहते हैं। यही कारण है कि सभी विभागों को अनौपचारिक आदेश देकर सावधानी बरतने को कहा गया है। फिलहाल, विभागों के अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं और हर शब्द तौलकर ही मीडिया से संवाद कर रहे हैं। चुनावी मौसम में यह सतर्कता सरकार की रणनीति का हिस्सा है, ताकि विपक्ष को कोई नया मुद्दा न मिले और चुनावी जंग में बढ़त बनाए रखी जा सके।