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Role of DM & SP in Election: आज से बिहार में लागू हो जाएगा आदर्श आचार सहिंता; जानिए कितना होगा DM और SP के पास पावर

Role of DM & SP in election: बिहार विधानसभा चुनाव होने में महज तारीखों के ऐलान का फसला रह गया है, जिसका ऐलान आज शाम 4 बजे चुनाव आयोग प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगा। इसी दौरान यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि आखिर चुनाव कितने चरणों में होंगे।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 06 Oct 2025 02:10:14 PM IST

Role of DM & SP in Election

बिहार विधानसभा चुनाव - फ़ोटो GOOGLE

Role of DM & SP in Election: बिहार विधानसभा चुनाव होने में महज तारीखों के ऐलान का फसला रह गया है, जिसका ऐलान आज शाम 4 बजे चुनाव आयोग प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगा और बिहार विधानसभा चुनाव के तारीखों का ऐलान कर शंखनाद हो जाएगा। इसी दौरान यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि आखिर चुनाव कितने चरणों में होंगे। तारीखों के एलान के साथ ही पूरे राज्य में आचार संहिता लागू हो जाएगी। आचार संहिता के लागू होते ही जिला प्रशासन, विशेषकर डीएम और एसपी की जिम्मेदारी और भूमिका बेहद अहम हो जाती है।


दरअसल, आचार संहिता लागू होते ही डीएम (जिला पदाधिकारी) सीधे चुनाव आयोग के नियंत्रण में आ जाते हैं। इस दौरान डीएम को जिले का मुख्य निर्वाचन अधिकारी मान लिया जाता है। उन्हें यह अधिकार प्राप्त होता है कि वे किसी भी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी की ड्यूटी चुनाव कार्य में लगा सकते हैं। साथ ही, डीएम को यह शक्ति होती है कि वे आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले किसी भी राजनीतिक दल, संगठन या व्यक्ति पर तुरंत कार्रवाई करें। 


साथ ही, अवैध पोस्टर हटवाना, बिना अनुमति की रैली रोकना और चुनाव प्रचार से जुड़ी सामग्रियों की जब्ती करना इन्हीं के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसके अलावा, डीएम को यह भी शक्ति होती है कि वे किसी अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ चुनाव आयोग को रिपोर्ट भेजकर उसके ट्रांसफर या ड्यूटी बदलने की सिफारिश करें, यदि उस पर पक्षपात का आरोप लगे।


वहीं, जिले की कानून-व्यवस्था बनाए रखने की पूरी जिम्मेदारी एसपी (पुलिस अधीक्षक) पर होती है। आचार संहिता के दौरान एसपी पुलिस बल की तैनाती, फ्लैग मार्च, पेट्रोलिंग और संवेदनशील बूथों की सुरक्षा व्यवस्था तय करते हैं। साथ ही, एसपी को यह अधिकार होता है कि वे किसी भी इलाके में धारा 144 लागू करें ताकि कोई राजनीतिक दल या व्यक्ति चुनावी माहौल को बिगाड़ने की कोशिश न कर सके। पुलिस प्रशासन की निगरानी में शांति और निष्पक्षता बनाए रखना इस दौरान सबसे बड़ी चुनौती होती है।


किसी भी विवाद या शिकायत की स्थिति में डीएम को तुरंत जांच करने और चुनाव आयोग को रिपोर्ट भेजने का निर्देश होता है। वहीं, एसपी को यह सुनिश्चित करना होता है कि मतदाताओं में भय या दबाव का माहौल न बने। चुनाव प्रक्रिया के दौरान सुरक्षा व्यवस्था इतनी कड़ी होती है कि बूथ कैप्चरिंग जैसी घटनाओं की कोई गुंजाइश न रहे।


आचार संहिता लागू होने के बाद चुनाव आयोग यह भी सुनिश्चित करता है कि किसी भी तरह से सरकारी योजनाओं, घोषणाओं या संसाधनों का इस्तेमाल वोट पाने के लिए न हो। प्रचार वाहनों, खर्चों और नेताओं के कार्यक्रमों पर सख्त निगरानी रखी जाती है। आयोग द्वारा बनाए गए ऑब्जर्वर भी जिलों में तैनात किए जाते हैं, जो चुनावी गतिविधियों पर नजर रखते हैं।


कुल मिलाकर, आचार संहिता लागू होते ही डीएम और एसपी के पास प्रशासनिक नियंत्रण, कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी और चुनाव की निष्पक्षता बनाए रखने की पूरी ताकत आ जाती है। यही कारण है कि चुनावी माहौल में उनकी भूमिका न केवल संवेदनशील होती है, बल्कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए निर्णायक भी मानी जाती है।