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नीतीश सरकार के सामने बड़ी चुनौती... बिहार में भूमि लगान उगाही का लक्ष्य फिर अधूरा

बिहार सरकार भूमि लगान उगाही के निर्धारित लक्ष्यों को लगातार हासिल करने में नाकाम हो रही है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में भी यह स्थिति बनी हुई है, जहां 600 करोड़ रुपये के लक्ष्य के मुकाबले अब तक सिर्फ 435.78 करोड़ रुपये ही वसूले जा सके हैं।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 13 Mar 2025 07:30:34 PM IST

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Bihar bhumi news:  बिहार सरकार को भूमि लगान (Bihar Bhumi Lagan) की लगान को लेकर इस वर्ष भी बड़ा झटका लगने वाला है। वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए तय किए गए 600 करोड़ रुपये के लक्ष्य के मुकाबले 31 जनवरी तक सिर्फ 435.78 करोड़ रुपये ही वसूले जा सके हैं, जो कुल लक्ष्य का मात्र 66.14 प्रतिशत है।

लगातार पिछड़ रही है बसूली  प्रक्रिया

राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री संजय सरावगी ने विधानसभा में जानकारी देते हुए कहा  कि पिछले कई वर्षों से सरकार भूमि लगान बसूली के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रही है। हालांकि, मौजूदा वित्तीय वर्ष में अब तक की गई वसूली 2023-24 में हासिल किए गए 410.05 करोड़ रुपये से ज्यादा है, लेकिन यह अब भी निर्धारित लक्ष्य से काफी पीछे है।

पिछले सात वर्षों में कभी भी 90 प्रतिशत से अधिक उगाही नहीं हो सकी है 

आपको बता दे कि 2017-18 में 526 करोड़ रुपये वसूले गए थे, जो 600 करोड़ रुपये के लक्ष्य का 87.81 प्रतिशत था।इस सफलता से प्रेरित होकर 2018-19 में लक्ष्य 1,000 करोड़ रुपये कर दिया गया, लेकिन वसूली सिर्फ 476 करोड़ रुपये (47.68%) तक ही पहुंच सकी।वहीं 2019-20 में विभाग ने 1,100 करोड़ रुपये का लक्ष्य तय किया, लेकिन महज 208 करोड़ (18.97%) की ही वसूली हो पाई।2020-21 में लक्ष्य को घटाकर 500 करोड़ रुपये कर दिया गया, लेकिन फिर भी सिर्फ 253 करोड़ (50.66%) ही वसूले गए।2021-22 में 500 करोड़ के लक्ष्य के मुकाबले 284 करोड़ (56.08%) और 2022-23 में 300 करोड़ (60.16%) की ही उगाही हो सकी।2023-24 में 550 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन इसे भी पूरा नहीं किया जा सका।

सरकार के सामने बड़ी चुनौती है 

सरकार हर साल बसूली का लक्ष्य बढ़ाती रही है , हालाँकि  हकीकत में वसूली में भारी गिरावट दर्ज की गई। विशेषज्ञों का मानना है कि लक्ष्य निर्धारित करने की प्रक्रिया में अधिक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए सरकार ने 600 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा था, लेकिन मौजूदा आंकड़ों को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि यह भी अधूरा रह जाएगा। ऐसे में यह देखना होगा कि सरकार आने वाले समय में इस स्थिति को बेहतर करने  के लिए क्या कदम उठाती है।