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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 24 Aug 2025 07:41:09 AM IST
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Bihar SIR: बिहार में सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के बाद हजारों लोग वोटर लिस्ट में अपना नाम दोबारा जुड़वाने के प्रयास में लगे हुए हैं। यह वे लोग हैं जिनके नाम SIR (Special Intensive Revision) के दौरान मतदाता सूची से हटा दिए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी को राहत देते हुए 1 सितंबर 2025 तक अपना नाम फिर से जुड़वाने का अवसर दिया है, लेकिन जमीनी हालात इससे बिल्कुल उलट हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं, लेकिन अधिकांश बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) अभी तक आवेदन लेने से इनकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक उन्हें चुनाव आयोग से लिखित आदेश नहीं मिलता, वे किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं कर सकते। यही कारण है कि राज्य के कई जिलों जैसे आरा, भोजपुर, बेतिया, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण में मतदाता भारी परेशानी का सामना कर रहे हैं।
कई मतदाता ऐसे हैं जिनका नाम पिछले दो विधानसभा या लोकसभा चुनावों में वोटर लिस्ट में था, लेकिन इस बार सूची से उनका नाम गायब है। इन लोगों का कहना है कि उन्हें बिना किसी सूचना या सुनवाई के सूची से हटा दिया गया, जबकि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को हलफनामे में बताया था कि नाम काटने से पहले नोटिस जारी किए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, जिनका नाम हटा दिया गया है, वे 11 अधिकृत दस्तावेजों में से किसी एक को आधार बनाकर नाम जुड़वाने के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसके साथ ही ऑनलाइन माध्यम से भी यह प्रक्रिया की जा सकती है। लेकिन ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी और डिजिटल साक्षरता की दिक्कतें इस प्रक्रिया को और जटिल बना रही हैं।
वहीं, BLO का कहना है कि वह आधार कार्ड को दस्तावेज के रूप में तब तक स्वीकार नहीं करेंगे, जब तक चुनाव आयोग की तरफ से उन्हें स्पष्ट रूप से इसकी अनुमति नहीं मिलती। BLOs को यह भी आशंका है कि बिना लिखित आदेश पर अगर वे नाम जोड़ते हैं, तो बाद में उन पर कार्रवाई की जा सकती है।
दूसरी ओर, राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंट (BLA) भी इस प्रक्रिया में सहयोग नहीं कर रहे हैं। कई BLO ने बताया कि BLAs से अपेक्षित मदद नहीं मिल रही, जिसके चलते आवेदन जमा कराने की प्रक्रिया और धीमी हो गई है। कई बीएलओ यह भी कह रहे हैं कि 1 सप्ताह का समय बहुत कम है, और इस समय सीमा को बढ़ाने की जरूरत है, ताकि वंचित मतदाता समय पर फॉर्म भर सकें।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि 65 लाख हटाए गए वोटर्स की सूची को सार्वजनिक किया जाए, जिसे चुनाव आयोग ने 56 घंटे के भीतर जारी भी कर दिया था। यह सूची वेबसाइट, पंचायत भवन और ब्लॉक कार्यालयों में चस्पा की जा रही है, लेकिन इस जानकारी का प्रसार अब भी सीमित है।
इस पूरी स्थिति ने जमीनी स्तर पर भारी असमंजस और अफरा-तफरी का माहौल बना दिया है। लाखों मतदाता ऐसे हैं जो अब भी यह नहीं जानते कि उनका नाम वोटर लिस्ट में है या नहीं, और अगर नहीं है, तो कैसे और कहां आवेदन करना है। सुप्रीम कोर्ट ने आगामी सुनवाई की तिथि 8 सितंबर 2025 तय की है। तब तक यह देखना होगा कि चुनाव आयोग और राज्य प्रशासन स्थिति को कैसे संभालते हैं और लोकतंत्र के इस मूल अधिकार को सुरक्षित रखते हैं।