1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 18 Aug 2025 11:34:05 AM IST
बिहार न्यूज - फ़ोटो GOOGLE
Bihar News: गंगा नदी में लगातार बढ़ रही विदेशी मछलियों की आबादी, खासकर नील तिलापिया, अफ्रीकी कैटफिश और कॉमन कार्प जैसी आक्रामक प्रजातियाँ, देसी मछलियों के लिए गंभीर खतरा बनती जा रही हैं। ये गैर-देशी मछलियाँ पिछली बार बाढ़ के दौरान बहकर गंगा में आई थीं और उन्होंने बड़ी संख्या में देसी मछलियों को खा लिया था। अब एक बार फिर गंगा में आई बाढ़ के कारण इन प्रवासी मछलियों का प्रकोप बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। भागलपुर से साहिबगंज तक के डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में इन मछलियों का ठहराव और प्रसार तय माना जा रहा है।
मत्स्य विभाग के अधिकारियों और स्थानीय मछुआरों की मानें तो इन विदेशी प्रजातियों के कारण न केवल गंगा की पारंपरिक जैवविविधता खतरे में है, बल्कि स्थानीय मछुआरों की आजीविका पर भी असर पड़ रहा है। अफ्रीकी कैटफिश और कॉमन कार्प जैसी मछलियाँ बहुत तेजी से बढ़ती हैं और ऑक्सीजन, भोजन, और प्रजनन स्थल के लिए देसी मछलियों से प्रतिस्पर्धा करती हैं। ये मछलियाँ देसी मछलियों के अंडों और छोटे बच्चों को भी खा जाती हैं, जिससे उनका प्राकृतिक प्रजनन चक्र बुरी तरह प्रभावित होता है।
कॉमन कार्प जैसी प्रजातियाँ तलछट को भी नुकसान पहुंचाती हैं जिससे पानी की गुणवत्ता में गिरावट आती है और देसी प्रजातियों के आवासीय स्थान समाप्त हो जाते हैं। इन विदेशी प्रजातियों के तेजी से फैलने के पीछे एक प्रमुख कारण बाढ़ से बहकर आने वाला जल, जिसमें न सिर्फ ये मछलियाँ बल्कि भारी मात्रा में औद्योगिक कचरा, प्लास्टिक, और रसायन भी आते हैं। इससे पानी का तापमान, ऑक्सीजन स्तर और पीएच वैल्यू तक बदल जाता है, जो देसी मछलियों की जीवन शैली के लिए अनुकूल नहीं है।
वातावरणविदों और मत्स्य वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही इन प्रवासी प्रजातियों पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो गंगा की पारंपरिक मछलियाँ जैसे रोहू, कतला, मृगल और पंगास जैसी देसी प्रजातियाँ धीरे-धीरे विलुप्त हो सकती हैं। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन, तापमान में वृद्धि और नदी के जलमार्गों में बदलाव भी इन आक्रामक प्रजातियों के लिए अनुकूल परिस्थितियां बना रहे हैं। अब आवश्यकता है कि केंद्र और राज्य सरकार मिलकर एक रणनीतिक योजना बनाएं जिसमें बायोलॉजिकल कंट्रोल, वैज्ञानिक मछली पालन, बाढ़ नियंत्रण और प्रदूषण प्रबंधन शामिल हो, ताकि गंगा की जैवविविधता को बचाया जा सके।