1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 29 Nov 2025 02:10:37 PM IST
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Bihar prohibition law : पटना हाईकोर्ट ने शराबबंदी कानून से जुड़े मामलों में स्पष्ट निर्देश जारी करते हुए गाड़ी मालिकों के हित में बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने चोरी हुई गाड़ी से एक माह दस दिन बाद बरामद हुई विदेशी शराब के मामले में गाड़ी मालिक को राहत दी और आदेश दिया कि राज्य सरकार तीन दिनों के भीतर गाड़ी को मालिक को लौटाए। साथ ही मुकदमे के खर्च के रूप में दस हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश भी दिया। इस आदेश में दोषी अधिकारियों के खिलाफ राशि की वसूली की पूरी छूट भी कोर्ट ने दी है।
इस मामले में अली अशरफ सिद्दीकी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद और न्यायमूर्ति सौरेन्द्र पांडेय की खंडपीठ ने यह निर्णय दिया। कोर्ट ने कहा कि जब गाड़ी चोरी होने की आधिकारिक रिपोर्ट (FIR) मौजूद है और मालिक की संलिप्तता का कोई प्रमाण नहीं है, तो गाड़ी मालिक पर कार्रवाई करना कानून के विपरीत है।
आवेदक के अधिवक्ता सतीश चंद्र मिश्रा ने कोर्ट को बताया कि गाड़ी 6 मई 2024 को चोरी हुई थी और इसके एक माह दस दिनों बाद शराब के साथ बरामद हुई। इसके बावजूद सीवान के जिला पंचायती राज अधिकारी ने गाड़ी नीलामी प्रक्रिया शुरू करने और दंड राशि जमा करने का आदेश जारी किया। अपीलीय अधिकारी ने भी इस आदेश को सही ठहराते हुए आवेदक की अपील खारिज कर दी। पटना हाईकोर्ट ने इन दोनों आदेशों को कानून के विपरीत करार देते हुए रद्द कर दिया और गाड़ी मालिक के पक्ष में फैसला सुनाया।
इसके अलावा, हाईकोर्ट ने शराब तस्करी के मामलों में मोटरसाइकिल या वाहन के जब्ती के दुरुपयोग पर भी कड़ा रुख अपनाया। न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा की एकलपीठ ने करनाल कुमार की याचिका पर यह निर्णय दिया। मामले में सामने आया कि गोलू कुमार ने विवाद के कारण आवेदक की मोटरसाइकिल में शराब रखवा दी और झूठा मामला दर्ज कराया। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि आवेदक की मोटरसाइकिल की शराब तस्करी में कोई संलिप्तता नहीं थी। बावजूद इसके, ट्रायल कोर्ट ने बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम की धारा 60 के हवाले से वाहन छोड़ने से मना किया।
पटना हाईकोर्ट ने कहा कि बिहार में 2016 से लागू पूर्ण शराबबंदी कानून सख्ती से लागू है, लेकिन इसके तहत पुलिस और मद्य निषेध विभाग कभी-कभी कानून की आड़ में मनमानी कर देते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि वाहन मालिक की संलिप्तता साबित नहीं होती है, तो वाहन को जब्त करना अनुचित है और ऐसे मामलों में मालिक को राहत दी जानी चाहिए।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि कानून का पालन करते हुए गाड़ी या वाहन की जब्ती में संतुलन बनाए रखना जरूरी है। केवल कानून की कठोरता के आधार पर गैर-जिम्मेदारियों को गाड़ी मालिक पर थोपना न्यायसंगत नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि दोषी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा खर्च की राशि वसूलने की अनुमति दी जाए, जिससे भविष्य में प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा मनमाने फैसलों से बचाव संभव हो।
इस फैसले को बिहार में शराबबंदी कानून के तहत उत्पन्न विवादों में मील का पत्थर माना जा रहा है। यह स्पष्ट संदेश देता है कि कानून का उपयोग केवल निष्पक्ष रूप से किया जाना चाहिए और निर्दोष वाहन मालिकों को कानून की कठोरता के कारण परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। कोर्ट के इस आदेश से भविष्य में शराबबंदी कानून के मामलों में प्रशासनिक अधिकारियों को सावधानी बरतने की चेतावनी भी मिलती है।