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क्लास से गायब रहने लालू की बेटी को भी पड़ी थी डांट: ऐसे गौरवशाली PMCH के शताब्दी समारोह का राष्ट्रपति करेंगी उद्घाटन, जानिये 10 रोचक कहानियां

टना मेडिकल कॉलेज अस्पताल मंगलवार को 100 साल का हो जायेगा. मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्म इसके शताब्दी समारोह का उद्घाटन करेंगी. कभी दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में शामिल PMCH की हम ऐसी कहानियां आपको बता रहे हैं जिसे जानकर हैरान रह जाइ

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Tue, 25 Feb 2025 06:51:51 AM IST

pmch history

pmch history, - फ़ोटो google

PATNA: बिहार का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल और मेडिकल कॉलेज पीएमसीएच यानी पटना मेडिकल कालेज अस्पताल (Patna Medical College and Hospital) मंगलवार को 100 साल का हो गया. 25 फरवरी 1925 में प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज के  नाम से इसकी स्थापना हुई थी। लंबे समय तक ये भारत का ही नहीं बल्कि दुनिया के चुनिंदा चिकित्सा संस्थानों में से एक था. यहां के डाक्टरों को पूरी दुनिया मान्यता देती थी और वहां नौकरी और उच्च अध्ययन के लिए उन्हें परीक्षा तक  नहीं देनी पड़ती थी. 


100 साल के हो चुके पीएमसीएच के शताब्दी समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू शामिल होने आ रहीं हैं. 25 बेड और 30 मेडिकल छात्रों से शुरू हुआ ये अस्पताल जल्द ही 5500 बेड के साथ दुनिया के दूसरे सबसे बड़े अस्पताल के तौर पर जाना जायेगा. बीएन कॉलेजिएट परिसर में शुरू किये इस संस्थान ने 100 वर्षों में कई गौरवपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं. 


ये वही PMCH है जिसमें इलाज कराने के लिए महात्मा गांधी, सीमांत गांधी के नाम से मशहूर खान अब्दुल गफ्फार खां पहुंचे थे. इस हॉस्पिटल का रुआब ऐसा था कि राष्ट्रपति से लेकर बड़े-बड़े VIP और नेता-विधायक इलाज करवाने दिल्ली-मुंबई न जाकर PMCH आते थे. वो दौर था जब इलाज के लिए आये आम से लेकर खास तक के साथ एक ही तरह का ट्रीटमेंट होता था. यहां किसी की पैरवी नहीं चलती थी और बिना अपॉइंटमेंट के आए मंत्री तक को डॉक्टर से मिलने के लिए इंतजार करना पड़ता था. फर्स्ट बिहार की स्पेशल रिपोर्ट में हम लेकर आये हैं PMCH के गौरवशाली इतिहास की 10 रोचक कहानियां. 


प्रिंस ऑफ वेल्स के हाथों हुआ था उद्घाटन

 वैसे तो इस अस्पताल का औपचारिक उद्घाटन 25 फरवरी 1925 को हुई थी, लेकिन औपचारिक उद्घाटन से 51 साल पहले यानि 1874 से यहां मरीजों का इलाज शुरू हो चुका था. सन 1874 में अशोक राजपथ पर गंगा नदी किनारे बीएन कॉलेजिएट परिसर में इस अस्पताल की स्थापना टेंपल मेडिकल स्कूल के रूप में हुई थी. उस समय 30 छात्रों का पहला बैच होता था और पूरे मेडिकल कोर्स की फीस थी मात्र दो रूपये. 


1925 में ब्रिटेन के राजकुमार यानि प्रिंस ऑफ वेल्स एक शाही दौरे पर पटना पहुंचे थे. प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हो चुका था और उसमें भारी संख्या में सैनिक घायल हुए थे. भारत पर राज कर रही ब्रिटिश हुकुमत को लगा कि यहां मेडिकल सुविधा का विस्तार किया जाना चाहिये. 1925 में प्रिंस ऑफ वेल्स ने टेंपल मेडिकल स्कूल को मेडिकल कॉलेज का दर्जा देने का एलान किया. उनके सम्मान में टेंपल स्कूल का नाम बदलकर प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज कर दिया गया और 25 फरवरी 1925 को इसका औपचारिक उद्घाटन किया गया. तब बिहार में मेडिकल की पढाई पढ़ने के लायक छात्र-छात्रायें नहीं थे. ऐसे में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के 35 मेडिकल छात्रों के पहले बैच को प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज, पटना में स्थानांतरित किया गया था.


नदी के सहारे पहुंचते थे छात्र-मरीज

1925 के उस दौर पर ना तो सड़कें थीं और ना ही रेल सुविधा. लिहाजा गंगा नदी परिवहन का मुख्य साधन थी.  इसी कारण इस मेडिकल कॉलेज को गंगा नदी के तट पर बसाया गया था. 19वीं सदी के आखिरी समय पटना में प्लेग और हैजा का प्रकोप काफी बढ़ा जिसके कारण इस अस्पताल को दरभंगा स्थानांतरित कर दिया गया. लेकिन कुछ सालों बाद ही इसे वापस पटना लाया गया.


अखंड भारत का छठा पुराना मेडिकल कॉलेज

ब्रिटिश राज में भारत में पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल था. उस दौर में PMCH कॉलेज भारत के सबसे पुराने मेडिकल संस्थानों में शामिल था. ये ब्रिटिश भारत का छठा सबसे पुराना मेडिकल कॉलेज है. पीएमसीएच को ही देश के पहले कैंसर संस्थान के रूप में मान्यता मिली थी. नोबेल पुरस्कार विजेता मैडम क्यूरी ने जब रेडिएशन से बीमारी के इलाज की खोज की थी तो दुनिया की पहली छह रेडिएशन मशीनों में से एक यहीं लगी थी.


असाध्य रोगों का इलाज खोजा

PMCH के पूर्ववर्ती छात्र बताते हैं कि इस कॉलेज की पहचान सिर्फ पढ़ाई और इलाज के लिए नहीं बल्कि असाध्य रोगों की चिकित्सा के लिए दवा तैयार करने के लिए भी थी. पीएमसीएच की सबसे बड़ी खोज बोन टीबी, कालाजार की दवा और इलाज पद्धति है. पूरी दुनिया में आज भी बोन टीबी और कूबड़ेपन का इलाज यहां के हड्डी रोग विभाग के अध्यक्ष रहे डॉ. बी मुखोपाध्याय द्वारा की गई खोज के आधार पर किया जाता है. पीएमसीएच में ही डॉ. सीपी ठाकुर ने कालाजार बीमारी की दवा की खोज की  थी. 


कर्पूरी ठाकुर ने बदला था नाम

पीएमसीएच शताब्दी समारोह आयोजन समिति के अध्यक्ष और यहां के पूर्व छात्र पद्मश्री डॉ गोपाल प्रसाद सिन्हा ने बताते हैं कि उस दौर में गंगा नदी की धारा PMCH की सीढ़ियों को छूते हुए निकलती थी.  इसकी स्थापना भले 1925 में हुई हो, लेकिन इसमें पढ़ाई 1875 में ही शुरू हो गई थी. तब इसमें पढ़ाई छोटे कोर्स की होती थी, जिसे LMP कहा जाता था. अभी इस मेडिकल कॉलेज में हथुआ वार्ड है, उसमें ही  स्थापना के बाद सारा डिपार्टमेंट चलता था. जब बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कर्पूरी ठाकुर बैठे तो उन्होंने प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज का नाम बदलकर पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल रख दिया था.


अब पढ़िये पीएमसीएच से जुड़ी 10 रोचक कहानियां


1.लालू ने मीसा का एडमिशन तो करा लिया लेकिन बेटी को डांटना पड़ा था

पीएमसीएच के कई पूर्ववर्ती छात्र बताते हैं कि इस मेडिकल कॉलेज का रूतबा 1990 के बाद लगातार कम हुआ. ये वो समय था जब लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. उन्हें अपनी बेटी मीसा भारती को डॉक्टर बनाना था. लिहाजा पहले मीसा भारती को अब के झारखंड(तब बिहार) के एक मेडिकल कॉलेज में दाखिला दिलाया गया. फिर पीएमसीएच पटना में ट्रांसफर कर दिया गया. 


1980 बैच के स्टूडेंट रहे डॉ सत्येंद्र नारायण सिंह ने मीडिया को बताया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती PMCH से पढ़ी हैं, मगर वह क्लास बहुत कम आती थी. एक बार लालू यादव ने डॉक्टरों को शिष्टाचार मुलाकात के लिए बुलाया तो मैंने इसकी शिकायत उनसे कर दी. मैंने लालू जी को भोजपुरी में कहा- मीसा क्लास नइखे करत.


डॉ सत्येंद्र नारायण सिंह ने लालू यादव को बताया कि मैंने 40 क्लास ली है और मीसा सिर्फ 4 क्लास में उपस्थित थी. इस बात पर लालू यादव थोड़ा परेशान हुए और मुझे घर के अंदर जाकर मीसा को समझाने को कहा. जब मैं अंदर गया तो वहां राबड़ी देवी भी थीं. मैंने मीसा को समझाया कि जैसे तुम्हारे पिता का नाम पॉलिटिक्स में है, वैसा ही तुम्हारा नाम मेडिकल क्षेत्र में होना चाहिए. लेकिन इसके लिए तुम्हें पढ़ना होगा. मेरी बात सुनकर राबड़ी देवी ने भी उसे डांटा. इसके बाद मीसा भारती रोज क्लास में आने लगी.


2. लड़कियां खुद नाव चलाकर पिकनिक मनाने जाती थीं

पीएमसीएच में 1960 बैच के स्टूडेंट रहे डॉ गोपाल प्रसाद सिन्हा ने अपने कॉलेज के दिनों का हाल बताया. उन्होंने बताया- PMCH में टीएन बनर्जी घाट है, वहां एक जेट्टी थी, जहां 4 नावें लगी रहती थी. उसकी देखभाल के लिए एक मल्लाह को दरबान रखा गय़ा था. हम छात्रों में इतना उमंग होता था कि खाली वक्त में हम खुद ही नाव चलाकर गंगा पार करते थे. लड़कों की कौन कहे, लड़कियां भी क्लास के बाद खुद नाव चलाती थी. वे अपनी सहेलियों को गंगा उस पार ले जाकर बालू पर पिकनिक मनाती थीं. 


3. फेल स्टूडेंट को लार्ड कब बग्गी की सवारी कराते थे

पीएमसीएच के पूर्व छात्र डॉ सत्येंद्र नारायण सिंह ने बताया कि उनके दौर में संस्थान में जो स्टूडेंट फेल होते थे, उन्हें लार्ड कहा जाता था. जो कई दफे फेल हुए,  उन्हें सुपर लॉर्ड की उपाधि दी जाती थी. रिजल्ट आने के बाद बग्गी से लॉर्ड की सवारी निकाली जाती थी. बग्गी के आगे जूनियर छात्र मुगालिया सलाम करते चलते थे.

फेल होने वाले छात्र यानि लार्ड और सुपर लार्ड के लिए लिए स्पेशल बग्गी तैयार की जाती थी. उस बग्गी को पूरे कैंपस में घुमाया जाता था. ऐसे सारे लॉर्ड ओल्ड हॉस्टल में रहते थे. छात्र संघ के चुनाव के दिन सारे लॉर्ड जुलूस की शक्ल में वोट देने निकलते थे. उनके जुलूस में बैंड बाजा, हाथी, घोड़े और ऊंट भी रहते थे.


4. महात्मा गांधी आये थे पोती का इलाज कराने

महात्मा गांधी अपने भाई की पोती मनु की सर्जरी कराने पीएमसीएच में हीं आए थे. वहीं, सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान को जब घुटनों में दर्द हुआ तो वह दिल्ली-मुंबई ना जाकर सीधे PMCH पहुंच गये थे. उनका इलाज डॉक्टर बी. मुखोपाध्याय ने किया. सीमांत गांधी के आने की खबर पर कैंपस में पूरी हलचल हो गई थी. लोकनायक जयप्रकाश नारायण का फुल ट्रीटमेंट PMCH में डॉ सीपी ठाकुर की देखरेख में हुआ था. देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद का इलाज भी पीएमसीएच के डॉक्टर दुखनराम ने किया था. 


5. 60 के दशक में हुआ जाति का बोलबाला

पीएमसीएच मेडिकल की पढ़ाई और इलाज का बड़ा केंद्र था लेकिन 1960 के दशक में यहां जातिवाद ने पैर पसारना शुरू कर दिया था. ऐसा भी वाकया हुआ कि एक बार एक प्रोफेसर ने बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स को जाति के कारण फेल कर दिया था। इससे संस्थान की बड़ी बदनामी हुई थी. हालत ये हुई थी कि पास कर गये स्टूडेंट की डिग्री भी डीरिकग्नाइज हो गई थीं.

1966 बैच के स्टूडेंट डॉ अजय कुमार ने बताया कि पीएमसीएच में पहले जाति कोई मसला नहीं था. लेकिन 1960 के बाद जाति को लेकर गोलबंदी शुरू हो गई थी. तब कुछ टीचर्स अपनी पसंदीदा जाति के गिने-चुने जाति स्टूडेंट को पास और बाकीको फेल कर देते थे. हालांकि पहले कोई जातिवाद नहीं था, सिर्फ एनुअल इलेक्शन में ही जातिवाद की कुछ झलक दिखती थी और जातियों के गठबंधन से चुनाव जीतने का बंदोबस्त किया जाता था.


6. पहली प्रदर्शनी का उद्घाटन करने आई थी इंदिरा गांधी

इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री नहीं बनी थीं, उसी वक्त पीएमसीएच पहुंची थी. दरअसल, PMCH में एक एग्जीबिशन सोसाइटी थी, जिसमें अलग-अलग तरह की प्रदर्शनी लगाई थी. तब इसे देखने के लिए एक रूपये का टिकट लेना होता था. 8 दिनों की इस प्रदर्शनी में मेडिकल से ही जुड़ी चीजें दिखाई जाती थी. 

पद्मश्री डॉ गोपाल प्रसाद सिन्हा ने बताया कि PMCH में जब ऐसी पहली प्रदर्शनी लगी तो उसका करने के लिए इंदिरा गांधी आयी थी. तब वे प्रधानमंत्री नहीं बनी थीं औऱ देश की सूचना और प्रसारण मंत्री थीं. इंदिरा गांधी बड़े-बड़े कार्यक्रमों में ही शामिल होती थीं, लेकिन पीएमसीएच का नाम ऐसा था कि इस प्रदर्शनी का उद्घाटन करने वह दिल्ली से बिहार आई थीं. 


7.पिस्तौल लेकर पहुंच गये  नेताजी 

ये वाकया 2005 का है. पीएमसीएच के 1996 बैच छात्र रहे डॉ राकेश कुमार शर्मा ने बताया कि अस्पताल में एक बच्चा एडमिट था. वह रिकवर कर चुका था  और डॉक्टर उसे डिस्चार्ज करने की प्लानिंग कर रहे थे. इसी दौरान लाल गाड़ी में सवार होकर एक नेताजी पहुंच गये. अस्पताल में आते ही उन्होंने इमरजेंसी ड्यूटी के डॉक्टर से कहा कि बच्चे को तुरंत डिस्चार्ज करिये. मैं भी इमरजेंसी ड्यूटी में था. वहां मौजूद डॉक्टर्स ने नेताजी को कहा कि बच्चा जिस यूनिट में एडमिट है, उस यूनिट के डॉक्टर ही डिस्चार्ज कर सकते हैं. हमलोग इसे डिस्चार्ज नहीं कर सकते हैं.

डॉक्टरों के समझाने पर भी नेताजी अड़े रहे और और गाली-गलौज पर उतर आये. इसी दौरान नेताजी के साथ आये एक आदमी ने पिस्टल निकाल लिया. उसने कहा कि अगर बच्चे को जल्दी डिस्चार्ज नहीं किया जायेगा को वह हमलोगो को गोली मार देगा. पिस्टल देखकर हमलोग सहम गये थे.  उस समय ऊपर के सेमिनार हॉल में पीजी की क्लास चल रही थी. शोर शराबा सुनकर स्टूडेंट्स को इस बारे में पता चला. फिर वे नीचे पहुंचे और वहां इकट्ठा हो गए. उनमें से किसी ने थाने को घटना की जानकारी दी. थोड़ी देर में पुलिस की टीम पहुंची तो तो हमारी हिम्मत भी बढ़ गई.

8. बिना अपॉइंटमेंट पहुंचे मंत्री को डॉक्टर ने कराया इंतजार

PMCH का रूतबा ऐसा था कि देश भर के बड़े-बड़े नेता, मंत्री यहां इलाज कराने आते थे. एक बार दफे उस समय के मंत्री वीरचंद पटेल बिना अपॉइंटमेंट लिए ही PMCH आ गए. उस समय डॉक्टर वार्ड में राउंड लेकर भर्ती मरीजों का हाल जान रहे थे. उन्हें खबर किया गया कि मंत्री जी आए हैं. लेकिन डॉक्टर ने बिना हिचके कहा कि मंत्री जी को इंतजार करने कहिये. पहले मैं पूरे वार्ड में राउंड लगा लूंगा तब मंत्री जी को देखने जाऊंगा


9.दिवlली के 10 दिन पहले से होता था जुआ

1966 बैच के स्टूडेंट रहे डॉ अजय कुमार बताते हैं कि PMCH के छात्र पढ़ाई करने के साथ मस्ती भी जमकर करते थे. दिवाली के समय तो 10 दिन पहले से जुआ शुरू हो जाता था. कुछ स्टूडेंट ऐसे थे जो 10 दिनों तक क्लास में नजर ही नहीं आते थे.  हॉस्टल के कुछ स्टूडेंट रात भर जुआ खेलते थे और दिन में सोते थे. शिफ्ट में जुआ खेला जाता था. कोई खेल छोड़ कर सोने जाता था तो उसकी जगह दूसरा जाकर बैठ जाता था और खेल आगे बढ़ता रहता था. हालांकि उस समय दिवाली की छुट्टी सिर्फ एक या दो दिनों की होती थी. हम सारे छात्र हॉस्टल में ही अपनी दीवाली मनाते थे.


10. भारत रत्न से सम्मानित हुए हैं पीएमसीएच के छात्र

डॉ. विधान चंद्र राय पीएमसीएच के ही छात्र थे. बाद में बंगाल के मुख्यमंत्री बने थे. 1961 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया. इसके साथ ही पीएमसीएच के लगभग एक दर्जन विद्यार्थियों को पद्म सम्मान मिल चुका है. पद्मश्री सम्मान पाने वाले छात्रों की लिस्ट में डॉ. एसएन आर्या, डॉ. एके पांडेय, डॉ. सीपी ठाकुर, डॉ. दुखन राम, डॉ. गोपाल प्रसाद सिन्हा, डॉ. विजय प्रकाश, डॉ. एलएनएस प्रसाद, डॉ. एसपी राम, डॉ. डीके सिंह, डॉ. आरके चौधरी शामिल हैं.