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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 17 Sep 2025 10:04:14 AM IST
बिहार न्यूज - फ़ोटो GOOGLE
Bihar News: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो चुकी है। सभी प्रमुख राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने और एक-दूसरे पर निशाना साधने में लगे हुए हैं। इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बिहार में एनडीए की सरकार बनाने के लिए ज़ोरशोर से प्रयास कर रहे हैं। राज्य के विकास को लेकर लगातार बड़ी घोषणाएं और परियोजनाओं का शिलान्यास व उद्घाटन किया जा रहा है।
हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्णिया में आयोजित एक कार्यक्रम में बिहार के लिए मखाना विकास बोर्ड (Makhana Development Board) की अधिसूचना जारी किए जाने की घोषणा की। इस पहल को बिहार के मखाना किसानों और उद्यमियों के लिए एक बड़ी सौगात माना जा रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि "बिहारी सुपरफूड मखाना" अब देश ही नहीं, विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुका है, और इसका श्रेय बिहार के मेहनती किसानों को भी जाता है।
देश में मखाना उत्पादन का 85 प्रतिशत हिस्सा बिहार से आता है। राज्य के 16 ज़िलों मधुबनी, दरभंगा, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, खगड़िया, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, चंपारण आदि में मखाना की खेती होती है। करीब 50-60 हजार किसान और मजदूर मखाना उत्पादन से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं, जिनमें से अकेले मधुबनी जिले में ही 10 हजार से अधिक किसान इस कार्य से जुड़े हैं।
राज्य में हर साल लगभग 40-45 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मखाना की खेती होती है, जिससे लगभग 70 हजार टन बीज और लगभग 3 लाख क्विंटल लावा (फूला हुआ मखाना) का उत्पादन होता है। मखाना उद्योग में सालाना 12% की दर से वृद्धि हो रही है। वर्तमान में इसका कुल कारोबार 7,000-8,000 करोड़ तक पहुंच गया है, और यह अनुमान है कि अगले 10 वर्षों में यह आंकड़ा 50,000 करोड़ को पार कर सकता है।
राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार के अनुसार, मखाना उद्योग से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से करीब ढाई लाख लोग जुड़े हैं। मखाना को 2022 में ‘मिथिला मखाना’ नाम से जीआई टैग भी मिल चुका है, जो इसके अंतरराष्ट्रीय मान्यता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
इस समय बिहार से सबसे अधिक मखाना अमेरिका को निर्यात किया जाता है, जहां इसकी कीमत 10,000 से 15,000 प्रति किलो तक है। इसके अलावा नेपाल, कनाडा, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और खाड़ी देशों में भी मखाना की भारी मांग है। फिलहाल मखाना का निर्यात 45 देशों में हो रहा है और यह संख्या जल्द 100 देशों तक पहुंचने की संभावना है।
हालांकि बिहार मखाना उत्पादन में अग्रणी है, लेकिन किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। तालाब, पोखर, आहर-पइन जैसे जल निकायों के लगातार खत्म होते जाने से मखाना की खेती के लिए आवश्यक जल स्रोत संकट में हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में अब तक 70,000 से अधिक तालाब और जलाशय खत्म हो चुके हैं, जो खेती के लिए गंभीर खतरा है।
मखाना अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक, का कहना है कि भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है, और वर्षा जल के संरक्षण की सख्त जरूरत है। उन्होंने तालाबों के संरक्षण, हार्वेस्टिंग टेक्नोलॉजी और आधुनिक पॉपिंग मशीनों के इस्तेमाल पर बल दिया।
बिहार में मखाना किसान और उद्यमियों के बीच एक बड़ी आर्थिक खाई है। किसानों को मुनाफा कम मिलता है, जबकि व्यापारी और प्रोसेसिंग यूनिट्स ज्यादा लाभ कमाते हैं। इस असंतुलन को मखाना विकास बोर्ड के ज़रिए दूर करने की उम्मीद जताई जा रही है। बोर्ड के गठन से मखाना की प्रसंस्करण, मूल्यवर्द्धन, ब्रांडिंग, मार्केटिंग और निर्यात की व्यवस्था बेहतर होगी। बिहार सरकार पर भी सवाल उठ रहे हैं कि उसने इतने वर्षों तक मखाना उद्योग को राज्यस्तर पर क्यों नहीं बढ़ावा दिया। अब जब केंद्र सरकार ने मखाना बोर्ड का गठन कर एक नई दिशा दिखाई है, राज्य सरकार से अपेक्षा की जा रही है कि वह किसानों को सीधी सब्सिडी, उपकरण, प्रशिक्षण और आसान ऋण जैसी सुविधाएं प्रदान करे।
बिहार का मखाना सिर्फ एक कृषि उत्पाद नहीं, बल्कि राज्य की आर्थिक आत्मनिर्भरता और वैश्विक पहचान का प्रतीक बनता जा रहा है। मखाना विकास बोर्ड का गठन इस दिशा में एक बड़ा कदम है, लेकिन यह तभी सफल होगा जब किसान और मजदूरों को इसका वास्तविक लाभ मिले और सरकारें मिलकर बुनियादी संरचना को सशक्त करें।