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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 03 Aug 2025 02:51:04 PM IST
बिहार न्यूज - फ़ोटो GOOGLE
Bihar News: साल 1981 की मशहूर फिल्म प्यासा सावन का एक गाना... "तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है, अंधेरों से भी मिल रही रोशनी है..." आज भी लोगों की जुबान पर है। यह गाना सिर्फ एक रूमानी गीत नहीं, बल्कि जीवन साथी के साथ निभाई जाने वाली निष्ठा का प्रतीक भी बन चुका है। इसी निष्ठा की मिसाल इन दिनों सुपौल जिले के स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत एक दंपती अधिकारी द्वारा पेश की गई है। लेकिन यह मिसाल जितनी भावनात्मक है, उतनी ही चर्चा का विषय भी बन चुकी है, क्योंकि मामला अब भावनाओं से आगे बढ़कर शैक्षणिक प्रमाण पत्रों की वैधता और विभागीय जांच तक पहुंच चुका है।
सुपौल के सदर अस्पताल में तैनात जिला कार्यक्रम प्रबंधक (DPM) मिन्नतुल्लाह पर फर्जी शैक्षणिक प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी हासिल करने का आरोप लगा है। मिली जानकारी के अनुसार, उन्होंने मेघालय के चंद्र मोहन झा (CMJ) विश्वविद्यालय से मैनेजमेंट की डिग्री प्राप्त की थी। यह विश्वविद्यालय वर्ष 2014 में कुप्रबंधन, अनियमितताओं और मान्यता संबंधी खामियों के चलते बंद कर दिया गया था। वर्ष 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्य सरकार के इस निर्णय को वैध ठहराया। यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) ने इस विश्वविद्यालय को "फर्जी" घोषित करते हुए इससे जारी डिग्रियों को अमान्य माना है।
फर्जी डिग्री के आरोपों के बीच जिला स्वास्थ्य समिति ने मिन्नतुल्लाह को सभी शैक्षणिक प्रमाण पत्रों की मूल प्रतियां प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। इस निर्देश के एक दिन बाद ही, 1 अगस्त को मिन्नतुल्लाह अवकाश पर चले गए। 2 अगस्त को, उन्होंने सिविल सर्जन सह सदस्य सचिव, जिला स्वास्थ्य समिति सुपौल को ईमेल के माध्यम से स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा भेज दिया।
इसी दिन, उनकी पत्नी निखत जहां प्रवीण, जो कि निर्मली अनुमंडलीय अस्पताल में अस्पताल प्रबंधक के पद पर कार्यरत थीं, ने भी इस्तीफा दे दिया। उन्होंने भी अपने पति की देखभाल की आवश्यकता बताते हुए त्याग पत्र सौंपा। सबसे अधिक गौर करने वाली बात यह है कि 31 जुलाई को निखत जहां से भी उनके सभी शैक्षणिक दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा गया था। इसके बाद कयास लगाए जाने लगे थे कि वे भी अपने पति के साथ इस्तीफा दे सकती हैं, जो अब सच साबित हुआ।
हालांकि, पति-पत्नी का एक-दूसरे के लिए त्याग सराहनीय प्रतीत होता है, लेकिन दोनों का एक साथ इस्तीफा देना, वह भी शैक्षणिक प्रमाण पत्रों की जांच के दौरान, इसे भावनात्मक नहीं बल्कि रणनीतिक कदम माना जा रहा है। शहर में इस बात को लेकर जोरदार चर्चा है कि क्या यह कदम जांच से बचाव के उद्देश्य से उठाया गया है।
सूत्रों के अनुसार, जिला स्वास्थ्य समिति अब निखत जहां प्रवीण के शैक्षणिक प्रमाण पत्रों की भी विस्तृत जांच की तैयारी कर रही है। यदि उनके प्रमाण पत्र भी फर्जी पाए जाते हैं, तो उनके विरुद्ध भी अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है। इसके अतिरिक्त, यह मामला अब राज्य स्वास्थ्य विभाग और शिक्षा विभाग के संज्ञान में भी लाया जा सकता है, जिससे व्यापक जांच की संभावना बन रही है।
यह मामला केवल व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि लोक सेवा प्रणाली में पारदर्शिता, योग्यता और ईमानदारी के महत्व को भी रेखांकित करता है। यदि सार्वजनिक सेवाओं में कार्यरत अधिकारी फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर पद प्राप्त करते हैं, तो यह न केवल सेवा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि जनता के विश्वास को भी ठेस पहुंचाता है।
इस प्रकरण ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि सार्वजनिक जीवन में भावनाएं और दायित्व एक सीमित सीमा तक साथ चल सकते हैं, लेकिन जब मामला सत्यनिष्ठा और जवाबदेही का हो, तो हर अधिकारी को जांच का सामना करना ही पड़ता है। अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन इस मामले में आगे क्या रुख अपनाता है।