1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 22 Nov 2025 01:33:26 PM IST
आम मरीजों के लिए दवाओं के महंगे - फ़ोटो GOOGLE
Drug Prices Impact: देश में हाल ही में GST रेट कम किया गया है। उसके बाद अब केंद्र सरकार ने फार्मा सेक्टर में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल यानी फार्मास्यूटिकल इनपुट पर मिनिमम इंपोर्ट प्राइस (MIP) तय करने का बड़ा फैसला लिया है। यह कदम दवाओं की कीमतों पर सीधा असर डाल सकता है। कई आवश्यक कच्चे माल पर MIP लगाने से API (Active Pharmaceutical Ingredient) और दवा उत्पादन की लागत बढ़ जाएगी, जिसके बाद कंपनियां बढ़ी हुई लागत का बोझ उपभोक्ताओं पर डाल सकती हैं। इससे आम मरीजों के लिए दवाओं के महंगे होने की आशंका बढ़ गई है।
ईटी की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार का उद्देश्य चीन जैसे देशों से बड़ी मात्रा में होने वाले आयात को नियंत्रित करना और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना है। चीन से सस्ता कच्चा माल आने के कारण भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धा क्षमता प्रभावित हो रही थी। इसी को देखते हुए पेनिसिलिन-G, 6APA और एमोक्सिसिलिन जैसे महत्वपूर्ण तत्वों के लिए MIP तय करने पर विचार चल रहा है। हालांकि मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन कच्चे माल पर MIP लगने से छोटे और मझोले स्तर के दवा निर्माताओं यानी MSME सेक्टर पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस फैसले से पूरे देश में मौजूद 10,000 से अधिक MSME यूनिट्स प्रभावित हो सकती हैं, और उत्पादन लागत बढ़ने के कारण कई छोटे उद्योगों को बंद होने की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। उद्योग संगठन का अनुमान है कि इससे करीब 2 लाख लोगों की नौकरियां जा सकती हैं, जो फार्मा क्लस्टर्स में बड़ा आर्थिक झटका सिद्ध होगा। इससे पहले सितंबर 2024 में सरकार ने ATS-8 आयात के लिए 30 सितंबर 2026 तक 111 डॉलर प्रति किलोग्राम की न्यूनतम कीमत तय की थी। इसके एक महीने बाद सल्फाडायजीन के लिए 1,174 रुपये प्रति किलोग्राम का MIP घोषित किया गया था।
सरकार के इस कदम को आत्मनिर्भर भारत की दिशा में महत्वपूर्ण मानते हैं। भारत फार्मा कैपिटल होने के बावजूद कच्चे माल के लिए लंबे समय से चीन पर निर्भर रहा है। इस निर्भरता को कम करने के लिए 2020 में सरकार ने PLI (Production Linked Incentive) स्कीम शुरू की थी, जिसका उद्देश्य घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना और API की उपलब्धता बढ़ाना था।
लेकिन इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि PLI स्कीम 6APA और एमोक्सिसिलिन जैसे कच्चे माल की कीमत नियंत्रित करने के लिए नहीं बनाई गई थी। यदि अब MIP के जरिए बाजार में हस्तक्षेप बढ़ता है, तो इससे यह संदेश जा सकता है कि PLI लेने वाली कंपनियां प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा चाहती हैं। इससे फार्मा सेक्टर में असमानता और छोटे निर्माताओं पर दबाव बढ़ सकता है। कुल मिलाकर, सरकार का उद्देश्य घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना है, लेकिन इस नीति का व्यापक असर आने वाले महीनों में तब पता चलेगा जब बाजार में दवाओं की कीमत और MSME सेक्टर की स्थिति स्पष्ट होगी।