IAS Removal Process: कैसे पद से हटाए जाते है IAS अधिकारी, संतोष वर्मा मामले से जानिए पूरी डिटेल

IAS Removal Process: मध्य प्रदेश में पोस्टेड आईएएस अधिकारी संतोष वर्मा अपने विवादित बयानों के कारण सुर्खियों में हैं। वह अखिल भारतीय सेवा ‘AJJAKS’ के प्रांतीय अध्यक्ष भी हैं। आईएएस संतोष वर्मा ने कहा कि आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए, जब...।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 17 Dec 2025 03:55:18 PM IST

IAS Removal Process

आईएएस अधिकारी हटाने की प्रक्रिया - फ़ोटो GOOGLE

IAS Removal Process: मध्य प्रदेश में पोस्टेड आईएएस अधिकारी संतोष वर्मा अपने विवादित बयानों के कारण सुर्खियों में हैं। वह अखिल भारतीय सेवा (अनुसूचित जाति और जनजाति अधिकारी और कर्मचारी संघ) ‘AJJAKS’ के प्रांतीय अध्यक्ष भी हैं। हाल ही में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने आरक्षण के संदर्भ में ब्राह्मण समाज की बेटियों को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। आईएएस संतोष वर्मा ने कहा कि आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए, जब तक कोई ब्राह्मण अपनी बेटी की शादी उनके बेटे से नहीं कर देता। उनके इस बयान से आहत लोगों ने उनके खिलाफ नौकरी से बर्खास्तगी की मांग की है।


उनके विवादित बयान पर ब्राह्मण संगठनों, राजनीतिक और सामाजिक तबकों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए और FIR दर्ज करने की मांग की गई। राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) ने इस बयान को सामाजिक समरसता को ठेस पहुंचाने वाला और IAS (आचरण) नियमों का उल्लंघन मानते हुए उन्हें ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी किया। इसके अलावा, संतोष वर्मा पिछले कुछ समय से फर्जी दस्तावेजों और अन्य आपराधिक मामलों को लेकर भी चर्चा में रहे हैं।


आईएएस अधिकारी को नौकरी से हटाने की प्रक्रिया

आईएएस अधिकारी को हटाना एक जटिल और कानूनी रूप से नियंत्रित प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311 और अखिल भारतीय सेवाओं (अनुशासन और अपील) नियम, 1969 के तहत होती है। अनुच्छेद 311 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी उच्च अधिकारी को बिना ठोस कारण और निष्पक्ष जांच के नौकरी से न हटाया जाए। आईएएस अधिकारी राष्ट्रपति के नाम पर नियुक्त होते हैं और उनका पद काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।


प्रक्रिया का विवरण

आरोप पत्र और कारण बताओ नोटिस

अनुशासनात्मक प्राधिकरण अधिकारी को आरोपों का विवरण और ‘कारण बताओ नोटिस’ सौंपता है। अधिकारी को इस नोटिस में निर्दिष्ट समय (आमतौर पर 10-15 दिन) में अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है।


विभागीय जांच

अगर अधिकारी का जवाब असंतोषजनक होता है, तो जांच अधिकारी (IO) नियुक्त किया जाता है। IO निष्पक्ष सुनवाई करता है, गवाहों और सबूतों की जांच करता है। अधिकारी को बचाव के लिए सहायक रखने का अधिकार होता है। जांच रिपोर्ट तैयार कर अनुशासनात्मक प्राधिकरण को दी जाती है।


UPSC से सलाह और अंतिम निर्णय

जांच रिपोर्ट में आरोप सिद्ध होने पर केंद्र सरकार यूपीएससी से सलाह लेती है। इसके बाद अधिकारी को अंतिम नोटिस दिया जाता है, जिसमें वह अपना अंतिम पक्ष रख सकता है। अंतिम निर्णय राष्ट्रपति के नाम पर जारी होता है।


विशेष परिस्थितियों में बिना जांच हटाना

अनुच्छेद 311(2) में कुछ विशेष परिस्थितियों का उल्लेख है, जिनमें अधिकारी को जांच से पहले हटाया जा सकता है, जैसे: देश की सुरक्षा को खतरा, दोष सिद्ध होने पर तुरंत कार्रवाई आवश्यक, या किसी गंभीर अनुशासनात्मक उल्लंघन की स्थिति।


न्यायिक समीक्षा और अपील का अधिकार

आईएएस अधिकारी के पास बर्खास्तगी के बाद भी अपील का विकल्प होता है। वे केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT), उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायिक समीक्षा के लिए अपील कर सकते हैं।


आईएएस संतोष वर्मा के मामले का महत्व

संतोष वर्मा के संदर्भ में यह देखा जा रहा है कि उनके खिलाफ कार्रवाई संविधान और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए ही होगी। किसी भी प्रक्रियात्मक चूक के कारण उन्हें न्यायालय से राहत मिल सकती है। यह सुरक्षा आईएएस पद की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए है, ताकि उच्च अधिकारियों को बिना ठोस कारण नौकरी से नहीं हटाया जा सके।


इस मामले ने एक बार फिर दिखा दिया कि आईएएस अधिकारियों के खिलाफ विवादास्पद बयानों और कदाचार की स्थिति में भी कानून और संविधान का पालन अनिवार्य है। अधिकारी की जवाबदेही तो सुनिश्चित होती है, लेकिन प्रक्रिया का पालन न्यायसंगत और निष्पक्ष होना आवश्यक है।