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Bihar Assembly Election 2025 : बिहार में इन सीटों पर भूमिहार बनाम भूमिहार की लड़ाई,कौन करेगा किला फतह और किसका पलड़ा होगा भारी ?

Bihar Assembly Election 2025 : बिहार चुनाव 2025 में भूमिहार वोटरों की भूमिका अहम हो गई है। कई सीटों पर भूमिहार बनाम भूमिहार का सीधा मुकाबला है, जिससे सियासी दलों में खींचतान तेज़ है। बीजेपी और महागठबंधन दोनों ही इस प्रभावशाली वोट बैंक को लुभाने में ज

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 03 Nov 2025 10:17:31 AM IST

Bihar Assembly Election 2025 : बिहार में इन सीटों पर भूमिहार बनाम भूमिहार की लड़ाई,कौन करेगा किला फतह और किसका पलड़ा होगा भारी ?

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Bihar Assembly Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, चुनावी मैदान में जातीय समीकरण और भी रोचक होते जा रहे हैं। इस बार खासकर अगड़ी जातियों में शामिल भूमिहार समुदाय की राजनीतिक स्थिति सुर्खियों में है। परंपरागत तौर पर बीजेपी के साथ खड़ा रहने वाला यह समुदाय अब बनी-बनाई रेखाओं को तोड़ता नजर आ रहा है। कई सीटों पर भूमिहार बनाम भूमिहार की सीधी टक्कर से चुनाव का तापमान और बढ़ गया है।


बीजेपी ने इस चुनाव में लगभग 32 भूमिहार उम्मीदवारों को टिकट देकर अपने वोट बैंक को साधे रखने की कोशिश की है, जबकि महागठबंधन ने भी करीब 15 भूमिहार प्रत्याशी मैदान में उतार कर दांव खेला है। इस कारण मोकामा, केसुआ, बरबीघा, बेगूसराय, मटिहानी, बिक्रम, और लखीसराय जैसी सीटों पर भूमिहार समुदाय का झुकाव चुनावी हवा की दिशा तय कर सकता है।


पटना के बिक्रम विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी प्रत्याशी सिद्धार्थ सौरभ और कांग्रेस उम्मीदवार अनिल कुमार के बीच सीधी टक्कर है, दोनों ही भूमिहार जाति से हैं। सिद्धार्थ सौरभ पहले कांग्रेस में थे, लेकिन उन्होंने दल बदलकर बीजेपी का दामन थाम लिया। वहीं अनिल कुमार, जो तीन बार के विधायक रह चुके हैं, बीजेपी से टिकट न मिलने पर कांग्रेस में शामिल हो गए। अनिल कुमार 2020 में निर्दलीय चुनाव लड़कर 52,000 वोट हासिल कर चुके हैं, जिससे उनका स्थानीय आधार स्पष्ट होता है।


बीजेपी और एनडीए उम्मीदवार अपने प्रचार में विकास को मुद्दा बना रहे हैं। सिद्धार्थ सौरभ ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रदेश में भारी विकास हुआ है चाहे सड़कें हों, स्वास्थ्य केंद्र हों या रोज़गार निर्माण। जाति नहीं, विकास पर वोट मांगा जा रहा है।” चिराग पासवान भी इस मोर्चे पर बीजेपी का समर्थन करते दिखे और कहा, “हमारा नारा ‘बिहार फ़र्स्ट, बिहारी फ़र्स्ट’ है। जाति से ऊपर उठकर हमें पूरे बिहार के विकास पर ध्यान देना है।”


वहीं महागठबंधन इस बार पूरी ताकत से भूमिहार वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रहा है। राज्यसभा सांसद और कांग्रेस के नेता अखिलेश प्रसाद सिंह का दावा है कि इस चुनाव में महागठबंधन भूमिहार बहुल सीटों पर मजबूत स्थिति में है। उनके मुताबिक, “इस बार महागठबंधन ने भूमिहारों को अधिक सम्मान दिया है। तेजस्वी यादव ने भी कई भूमिहार उम्मीदवारों को टिकट दिया है।”


ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो बिहार की राजनीति में भूमिहारों की भूमिका अहम रही है। बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिन्हा भूमिहार थे। 2020 में करीब 51% भूमिहारों ने एनडीए को और 19% ने महागठबंधन को वोट दिया था। लेकिन अब समीकरण बदलते दिख रहे हैं।


राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, भूमिहारों की संख्या भले ही बिहार में 2.9% है, लेकिन इनका प्रभाव ज़मीन से जुड़ा है। बिक्रम, पाली, बेगूसराय, जहानाबाद, मोकामा, और नवादा जैसे इलाकों में यह समुदाय निर्णायक भूमिका निभाता है। इसी कारण हर दल का फोकस इस चुनाव में इन्हीं वोटरों पर है। स्थानीय मतदाता चंदन जैसे लोग कहते हैं, “हर बार भूमिहार वोट बीजेपी के साथ गया है, लेकिन अब महागठबंधन ने भी भूमिहारों को साधा है। इस बार स्थितियां बदल सकती हैं।”


सियासी शतरंज की इस बिसात पर भूमिहारों की चाल किसके हक़ में जाएगी बीजेपी या महागठबंधन यह चुनावी नतीजे ही बताएंगे। लेकिन इतना तय है कि बिहार की सत्ता की चाबी एक बार फिर इस समुदाय के हाथ में है।