BIHAR ELECTION: वाल्मीकि नगर में मनोज तिवारी ने किया रोड शो, NDA प्रत्याशी रिंकू सिंह के लिए मांगे वोट Bihar Election 2025: ‘बिहार में बनेगी महागठबंधन की सरकार’, फर्स्ट फेज की वोटिंग खत्म होने के बाद मुकेश सहनी का दावा Bihar Election 2025: ‘बिहार में बनेगी महागठबंधन की सरकार’, फर्स्ट फेज की वोटिंग खत्म होने के बाद मुकेश सहनी का दावा Bihar Election 2025: पहले चरण की वोटिंग खत्म होने के बाद आरजेडी ने पार्टी नेताओं से की खास अपील, कौन सी बात का सता रहा डर? Bihar Election 2025: पहले चरण की वोटिंग खत्म होने के बाद आरजेडी ने पार्टी नेताओं से की खास अपील, कौन सी बात का सता रहा डर? Bihar Election 2025: पहले चरण की वोटिंग खत्म होने के बाद चिराग पासवान का बड़ा दावा, क्या बोले लोजपा (रामविलास) चीफ? Bihar Election 2025: पहले चरण की वोटिंग खत्म होने के बाद चिराग पासवान का बड़ा दावा, क्या बोले लोजपा (रामविलास) चीफ? Bihar Election 2025: ‘बिहार में नई ताकत बनकर उभरेगा जनशक्ति जनता दल’, तेज प्रताप यादव ने महुआ में अपनी जीत का किया दावा Bihar Election 2025: ‘बिहार में नई ताकत बनकर उभरेगा जनशक्ति जनता दल’, तेज प्रताप यादव ने महुआ में अपनी जीत का किया दावा Bihar Election 2025 : बिहार में रिकॉर्डतोड़ वोटिंग किसकी डुबोएगी नैय्या ? इससे पहले इस साल हुआ था बंपर वोटिंग, किसकी बनी थी सरकार
1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 06 Nov 2025 06:25:28 PM IST
- फ़ोटो
Bihar Election 2025 : बिहार में इस बार वोटिंग का नया रिकॉर्ड बन गया है। चुनाव आयोग के शुरुआती आंकड़ों के अनुसार शाम 5 बजे तक ही 60 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हो चुका था, जबकि कई इलाकों में अभी भी लंबी कतारें देखी जा रही थीं। अनुमान है कि अंतिम आंकड़ा 65 प्रतिशत के पार जा सकता है — जो अब तक के बिहार विधानसभा चुनाव इतिहास में सबसे ज्यादा होगा। सवाल यह है कि इतनी बड़ी वोटिंग किसके पक्ष में जाएगी — नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव?
65% वोटिंग का मतलब क्या?
इतना अधिक मतदान सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में बड़ा संकेत है। परंपरागत रूप से माना जाता है कि जब वोटिंग ज्यादा होती है, तो जनता सत्ता के खिलाफ वोट करती है, यानी एंटी-इनकंबेंसी मूड में होती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह पैटर्न कई राज्यों में उलट गया है — अब ज्यादा वोटिंग का मतलब जरूरी नहीं कि सत्ता बदल जाए, बल्कि कई बार यह सत्ताधारी दल के समर्थन में भी होती है।
बिहार में इस बार जो माहौल बना, उसमें मतदाताओं की भागीदारी खुद एक संदेश दे रही है। नीतीश कुमार लगभग दो दशक से सत्ता में हैं, और इस बार महागठबंधन और एनडीए दोनों के सामने यह चुनाव ‘प्रतिष्ठा का सवाल’ बन गया है।
पिछली बार क्या हुआ था?
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 56.9 प्रतिशत मतदान हुआ था। तब कोरोना का असर था, बावजूद इसके महिलाओं ने रिकॉर्ड वोटिंग की थी। नतीजा यह हुआ कि एनडीए ने मामूली अंतर से सरकार बनाई और नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री बने। उससे पहले 2015 में 56.8 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जिसमें महागठबंधन ने शानदार जीत दर्ज की थी।
अगर हम थोड़ा पीछे जाएं, तो साल 2000 के चुनाव में 62.6 प्रतिशत वोटिंग हुई थी — यह उस समय बिहार के इतिहास का सबसे बड़ा आंकड़ा था। तब आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बहुमत से कुछ सीटें पीछे रह गई थी। राबड़ी देवी ने फिर भी सरकार बनाई और 2005 तक सत्ता में रहीं। यानी ज्यादा वोटिंग का मतलब हमेशा सत्ता परिवर्तन नहीं रहा, बल्कि यह राजनीतिक अस्थिरता का संकेत भी देता रहा है।
क्या 2025 का चुनाव ‘रिकॉर्ड’ के साथ नया संदेश देगा?
अगर इस बार मतदान 65 प्रतिशत पार कर जाता है, तो यह 1951 के बाद से अब तक का सबसे ऊंचा आंकड़ा होगा। चुनाव आयोग के डेटा बताते हैं कि बिहार में अब तक सिर्फ चार बार ही मतदान प्रतिशत घटा है, बाकी हर बार यह बढ़ा है। यह दिखाता है कि बिहार का मतदाता लगातार ज्यादा सक्रिय हो रहा है, खासकर पिछले दो दशकों में।
2010 का चुनाव इसका टर्निंग पॉइंट था। उस वक्त नीतीश सरकार ने सड़क, बिजली, कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा पर काम किया, जिसके बाद महिलाओं की भागीदारी में भारी उछाल आया। तब पहली बार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की वोटिंग दर ज्यादा हुई थी — और यह ट्रेंड 2020 तक जारी रहा।
महिलाओं और युवाओं की बढ़ती भागीदारी
बिहार में 2005 के बाद से महिलाओं की भागीदारी राजनीति की धारा बदलने वाला कारक बनी है। 2010 से 2020 तक हर चुनाव में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोट डाले हैं। 2025 में भी यही रुझान दिख रहा है। कई जिलों में महिला वोटिंग दर 70 प्रतिशत से ऊपर रही है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि महिला मतदाता अब किसी जाति या पार्टी विशेष से बंधी नहीं, बल्कि विकास, शिक्षा, रोजगार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर वोट करती हैं। यही वजह है कि उनका झुकाव तय करेगा कि अगली सरकार किसकी होगी।
वोटिंग बढ़ी, लेकिन किसके लिए?
ज्यादा वोटिंग का अर्थ यह नहीं कि लोग गुस्से में हैं। दरअसल, बिहार में अब राजनीतिक चेतना का स्तर काफी ऊपर आ चुका है। ग्रामीण इलाकों तक सड़कों का जाल, बेहतर कानून व्यवस्था और मतदान प्रक्रिया में भरोसा बढ़ने से अब लोग बूथ तक आसानी से पहुंचते हैं। इसलिए 65 प्रतिशत वोटिंग को केवल ‘सत्ता विरोधी लहर’ मानना गलत होगा। यह लोकतंत्र के प्रति बढ़ते भरोसे की निशानी है।
इतिहास क्या कहता है?
1951 से अब तक बिहार में 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। इनमें से 11 बार मतदान प्रतिशत बढ़ा है। दिलचस्प बात यह है कि इन 11 में से 5 बार सत्ता में मौजूद दल की वापसी हुई, जबकि 6 बार सत्ता परिवर्तन हुआ। यानी सिर्फ मतदान के आधार पर यह तय नहीं किया जा सकता कि किसे फायदा होगा, लेकिन इतना जरूर है कि ज्यादा वोटिंग ने हमेशा मुकाबले को कांटे का बना दिया है।
नतीजा क्या संकेत दे रहा?
2025 का चुनाव बिहार की राजनीति में कई मायनों में ऐतिहासिक है। एक तरफ नीतीश कुमार के 20 साल के शासन का मूल्यांकन है, तो दूसरी ओर तेजस्वी यादव के नेतृत्व में एक नई पीढ़ी की उम्मीदें हैं।65 प्रतिशत से अधिक वोटिंग इस बात का प्रमाण है कि जनता इस बार बेहद सजग और निर्णायक भूमिका में है। अब यह देखने वाली बात होगी कि यह रिकॉर्ड तोड़ मतदान स्थिरता लाता है या बदलाव की हवा को तेज कर देता है।
बिहार में रिकॉर्ड वोटिंग लोकतंत्र की गहराती जड़ों का संकेत है। यह तय तौर पर बताना अभी जल्दबाजी होगी कि इसका फायदा किसे मिलेगा — नीतीश कुमार को या तेजस्वी यादव को — लेकिन इतना तय है कि जनता अब पहले से कहीं ज्यादा जागरूक और निर्णायक है। 2025 का यह मतदान बिहार की राजनीति की नई दिशा तय करेगा।