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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 15 May 2025 02:56:25 PM IST
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू - फ़ोटो Google
President Draupadi Murmu : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए ऐतिहासिक फैसले पर गंभीर आपत्ति जताते हुए इसे संविधान की मूल भावना और संघीय ढांचे के विरुद्ध करार दिया है। इस फैसले में कोर्ट ने राज्यपालों और राष्ट्रपति को विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित की थी।
राष्ट्रपति ने मांगी सुप्रीम कोर्ट से राय
राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सर्वोच्च न्यायालय से 14 संवैधानिक प्रश्नों पर राय मांगी है। उन्होंने कहा कि यह मामला संवैधानिक संतुलन और अधिकारों की सीमा से जुड़ा है, और इस पर गहन विचार आवश्यक है। केंद्र सरकार और राष्ट्रपति कार्यालय का मानना है कि समीक्षा याचिका उसी पीठ के सामने जाएगी जिसने मूल फैसला सुनाया था, जिससे सकारात्मक नतीजे की संभावना कम है।
‘मंजूरी प्राप्त’ की अवधारणा को बताया असंवैधानिक
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यदि किसी विधेयक पर राज्यपाल या राष्ट्रपति तीन महीने में कोई निर्णय नहीं लेते, तो उसे ‘मंजूरी प्राप्त’ माना जाएगा। इस पर राष्ट्रपति मुर्मू ने कड़ा एतराज जताते हुए कहा कि यह अवधारणा संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 का उल्लंघन है, जहां किसी प्रकार की समय-सीमा का उल्लेख नहीं किया गया है। उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति या राज्यपाल के विवेकाधीन अधिकारों में हस्तक्षेप करना न्यायपालिका की सीमाओं से बाहर जाने जैसा है।”
अनुच्छेद 142 और 32 पर उठाए सवाल
राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 142 के प्रयोग पर भी चिंता जताई, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट को ‘पूर्ण न्याय’ करने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि जहां संविधान में पहले से स्पष्ट व्यवस्था है, वहां इस अनुच्छेद का प्रयोग संवैधानिक असंतुलन उत्पन्न कर सकता है।
साथ ही, राष्ट्रपति ने यह भी पूछा कि राज्य सरकारें केंद्र और राज्य के बीच विवादों के लिए निर्धारित अनुच्छेद 131 के बजाय अनुच्छेद 32 का सहारा क्यों ले रही हैं, जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा से संबंधित है। उन्होंने इसे संविधान की व्यवस्था के दुरुपयोग की संभावना बताया।
संवैधानिक बहस तेज
राष्ट्रपति मुर्मू की यह प्रतिक्रिया न केवल एक संवैधानिक बहस को जन्म दे रही है, बल्कि कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के अधिकार-क्षेत्र पर नए सिरे से विचार की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है।आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 143 के तहत मांगी गई राय इस विवाद को नई दिशा दे सकती है।