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पुणे में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम से हाहाकार! 1 की मौत, 100 से ज्यादा लोग बीमार

Pune GBS Cases: महाराष्ट्र के पुणे में गुइलेन बैरे सिंड्रोम यानी (जीबीएस) के बढ़ते मामले से हाहाकार मचा है। इस बीमारी से एक मौत की खबर सामने आ रही है। वहीं जीबीएस से 100 से ज्यादा लोग संक्रमित हैं।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 27 Jan 2025 10:40:58 AM IST

Pune GBS Cases

पुणे में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम से हाहाकार - फ़ोटो google

Pune GBS Cases: महाराष्ट्र के पुणे में गुइलेन बैरे सिंड्रोम यानी (जीबीएस) से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ते जा रही है। जीबीएस के बढ़ रहे मामले प्रशासन की चिंता बढ़ा रहे हैं। हाल ही में इस बीमारी से एक मौत की भी खबर आ रही है। आशंका है कि यह मौत जीबीएस की वजह से ही हुई है। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में गुइलेन बैरे सिंड्रोम से पहली मौत होने की आशंका है। वहीं राज्य में जीबीएस संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है और अकेले पुणे में ही 100 से ज्यादा मरीज हो गए हैं। जिनमें से 19 मरीज बच्चे हैं।


पुणे में GBS के 16 मरीज वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। GBS के लक्षण वाले 19 मरीज 9 साल से कम उम्र के हैं। साथ ही 50-80 साल की उम्र वाले 23 मरीज हैं। पुणे क्लस्टर में 9 जनवरी को अस्पताल में भर्ती मरीज GBS पॉजिटिव आया था, ये पहला केस था। इसके बाद अस्पताल के अन्य मरीजों का टेस्ट लिया गया, जिसमें से कुछ के बॉयोलॉजिकल सैंपल में कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया का पता चला। ये बैक्टीरिया GBS के लगभग एक तिहाई मामलों का कारण बनता है और बहुत सीवियर इन्फेक्शन के लिए भी जिम्मेदार है। अब पुणे में 28 नए केस के साथ एक्टिव केस 101 हो गए हैं।


गुइलेन बैरे सिंड्रोम यानी जीबीएस एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर की इम्यूनिटी गलती से अपने ही पेरिफेरेल नसों पर हमला कर देती है। इससे मांसपेशियों में कमजोरी, सुन्न हो जाना और पैरालाइसिस हो सकता है। आमतौर पर शुरुआती इलाज से ही इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है और 2-3 हफ्ते के अंदर रिकवरी भी देखने को मिलती है। इस बीमारी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विश्व स्तर पर इससे प्रभावित लोगों में से करीब 7.5% लोगों की मौत हो जाती है। गुइलेन बैरे सिंड्रोम एक रेयर बीमारी है,  हर साल एक लाख लोगों में एक या दो लोगों में ये बीमारी देखने को मिलती है। आपको बता दें कि अमेरिका के राष्ट्रपति रहे फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट की मौत भी इसी बीमारी के कारण हुई थी।