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Chanakya Niti: ये 6 दुख तोड़ देते हैं इंसान को अंदर से, क्या आप भी इनसे गुजर रहे हैं?

Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य की नीतियाँ आज भी जीवन की सच्चाइयों को उजागर करती हैं। चाणक्य नीति में बताया गया है कि कुछ दुख ऐसे होते हैं जो व्यक्ति को अंदर से खा जाते हैं और उसे पूरी तरह तोड़ देते हैं।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 25 Apr 2025 07:49:35 AM IST

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आचार्य चाणक्य द्वारा रचित चाणक्य नीति में मानव जीवन से जुड़ी कई गूढ़ बातें कही गई हैं| - फ़ोटो Google

Chanakya Niti:

आचार्य चाणक्य द्वारा रचित चाणक्य नीति में मानव जीवन से जुड़ी कई गूढ़ बातें कही गई हैं, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। सुख और दुख जीवन के अभिन्न अंग हैं, लेकिन कुछ दुख ऐसे होते हैं जो व्यक्ति को न केवल मानसिक रूप से कमजोर कर देते हैं बल्कि उसे अंदर से खोखला बना देते हैं। चाणक्य नीति के दूसरे अध्याय में एक श्लोक के माध्यम से छह ऐसे दुखों का वर्णन किया गया है, जो व्यक्ति के शरीर और मन को बिना अग्नि के ही जला देते हैं।


इनमें पहला दुख उस समय का है जब कोई व्यक्ति अपनी पत्नी या अत्यंत प्रियजन से अलग हो जाता है। यह वियोग इतना गहरा होता है कि बाहर से सामान्य दिखने वाला इंसान भीतर से टूट जाता है। ऐसे दुख को कोई और समझ भी नहीं सकता।


दूसरा दुख है अपनों के द्वारा अपमानित होना। चाणक्य के अनुसार जब कोई व्यक्ति अपने ही परिवार या प्रियजनों द्वारा अपमानित होता है तो उसका आत्मसम्मान चूर-चूर हो जाता है। यह पीड़ा लंबे समय तक बनी रहती है और व्यक्ति को भीतर से खोखला कर देती है।


तीसरा बड़ा दुख है कर्ज का बोझ। जब कोई व्यक्ति किसी कारणवश ऋण लेता है और उसे समय पर चुका नहीं पाता, तो यह आर्थिक दबाव धीरे-धीरे मानसिक तनाव में बदल जाता है। यह चिंता व्यक्ति के जीवन को अस्थिर कर देती है।


चौथा दुख तब होता है जब कोई सज्जन व्यक्ति दुष्ट और बेईमान लोगों की संगति में फंस जाता है। ऐसे वातावरण में वह स्वयं को तिरस्कृत और असहज महसूस करता है। सही सोच रखने वाला व्यक्ति जब गलत लोगों के साथ होता है, तो उसकी मानसिक शांति भंग हो जाती है।


पांचवां दुख चाणक्य ने उस स्थिति को बताया है जब व्यक्ति को बेईमान और गलत आचरण वाले लोगों के साथ कार्य करना पड़ता है। ऐसे लोग न केवल कार्यस्थल का माहौल खराब करते हैं, बल्कि ईमानदार व्यक्ति को मानसिक रूप से थका देते हैं।


छठा और अंतिम दुख है गरीबी। चाणक्य ने गरीबी को सबसे बड़ा अभिशाप माना है। गरीबी के कारण व्यक्ति को समाज में उपेक्षा, तिरस्कार और संघर्ष का सामना करना पड़ता है। यह केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक रूप से भी व्यक्ति को तोड़ देती है।


चाणक्य नीति हमें यह सिखाती है कि इन दुखों को केवल समझना ही नहीं, बल्कि उनसे निपटने के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करना भी जरूरी है। अगर व्यक्ति इन परिस्थितियों में धैर्य और समझदारी से काम ले, तो वह इन दुखों से उबर कर जीवन में सफलता की ओर बढ़ सकता है।