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ऐसा तो अंग्रेजों के जमाने में भी नहीं होता था: हाईकोर्ट का बिहार पुलिस-प्रशासन पर सख्त टिप्पणी, पुलिसिया गुंडागर्दी जानकर दंग हो जायेंगे आप

1st Bihar Published by: Updated Sat, 17 Dec 2022 07:28:41 AM IST

ऐसा तो अंग्रेजों के जमाने में भी नहीं होता था: हाईकोर्ट का बिहार पुलिस-प्रशासन पर सख्त टिप्पणी, पुलिसिया गुंडागर्दी जानकर दंग हो जायेंगे आप

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PATNA: बिहार पुलिस और प्रशासन की गुंडागर्दी की ये मिसाल आपको स्तब्ध और हैरान कर दे सकती है. बिहार के एक जिले में पुलिस की मनमानी के खिलाफ एक राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं पर एसडीएम ने सरासर झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ा कर एफआईआर में आरोपी बनाये गये युवक को गिरफ्तार कर लिया. उसे पुलिस कस्टडी में जमकर पीटा गया. बात जब जिले के कोर्ट में पहुंची तो वहां के सीजेएम 5 सालों से रिपोर्ट मांगते रहे. उन्हें कोई रिपोर्ट नहीं दी गयी. पुलिस और प्रशासन ने कोर्ट का कोई नोटिस ही नहीं लिया. 



ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि पटना हाईकोर्ट में ये सारी बातें साबित हो गयी. पटना हाईकोर्ट में जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद की बेंच ने कहा- ये साफ दिख रहा है कि पुलिस ने एक ऐसे व्यक्ति को झूठे मुकदमे में फंसाया जो पुलिस के जुल्म के खिलाफ आवाज उठा रहा था. पुलिस ने ये सोंच कर सब किया कि तुम नेता बन रहे हो इसलिए तुमको भी सबक सिखाते हैं. अब हालत ये है कि कोई व्यक्ति पुलिस के खिलाफ आवाज नहीं उठायेगा. हाईकोर्ट ने कहा कि जिले के एसपी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जानकारी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए 1997 में ही दिशा निर्देश दे रखे हैं लेकिन एसपी को इसकी खबर ही नहीं है. ऐसे एसपी से जिला चलवाया जा रहा है. 



हाईकोर्ट ने बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि पुलिस की आदत हो गयी है कि जब किसी फंसाना हो तो सांप्रदायिक सद्भाव और तनाव का मामला दर्ज कर ले. लोगों को कस्टडी में बर्बर तरीके से पीटे और फिर ये लिख दे कि गिरफ्तारी के दौरान वह भागने लगा और उसे चोट  लग गयी. कोर्ट ने कहा- यहां जेल में कोई कैदी मर जाता है तो प्रशासन कहता है कि उसे सूई दे रहे थे. इसी दौरान वह छटपटाया और गिर गया और उससे मर गया. हाईकोर्ट ने इस मामले में बेहद सख्त फैसले लेते हुए कड़ी कार्रवाई करने का आदेश दिया है. 


पूरा मामला समझिये

मामला 2016 का है. बिहार में तब भी नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की सरकार थी. गोपालगंज के भाजपा कार्यकर्ता दीपक द्विवेदी ने वहां के सदर एसडीएम को आवेदन दिया कि वे अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ पुलिस की करतूतों के खिलाफ धरना प्रदर्शन करना चाहते हैं. उस आवेदन में स्पष्ट लिखा था कि गोपालगंज पुलिस लोगों को गलत मुकदमे में फंसा रही है इसके खिलाफ आंदोलन किया जायेगा. तत्कालीन एसडीएम मृत्युंजय कुमार ने दीपक द्विवेदी को 13 अक्टूबर 2016 को गोपालगंज के अंबेडकर चौक पर धरना-प्रदर्शन करने की मंजूरी दे दी. धरना-प्रदर्शन के दौरान विधि व्यवस्था बनाये रखने के लिए एक मजिस्ट्रेट प्रतीक कुमार और पुलिस के जवानों को भी वहां तैनात कर दिया गया. 13 अक्टूबर 2016 को धरना प्रदर्शन हुआ. वहां तैनात मजिस्ट्रेट के साथ साथ पुलिस बल धरना-प्रदर्शन संपन्न करा कर चले गये. कहीं कोई समस्या नहीं हुई.


एसडीएम ने सरासर झूठ बोलकर एफआईआर दर्ज करा दी

असली खेल एक दिन बाद यानि 14 अक्टूबर 2016 से शुरू हुआ. दीपक द्विवेदी को धरना-प्रदर्शन की इजाजत देने वाले एसडीएम मृत्युंजय कुमार ने दीपक के खिलाफ सरासर फर्जी एफआईआर दर्ज करा दी. पुलिस में दर्ज कराये गये एफआईआर में एसडीएम ने लिखा की दीपक द्विवेदी ने बगैर इजाजत के धरना-प्रदर्शन किया. उसके धरना-प्रदर्शन से सांप्रदायिक माहौल बिगड़ गया. धरना-प्रदर्शन की खुद इजाजत देने वाले एसडीएम ने एफआईआर में चार दफे लिखा कि बगैर इजाजत के धरना प्रदर्शन किया गया. धरना प्रदर्शन के दौरान तैनात मजिस्ट्रेट ने कोई रिपोर्ट नहीं लिखवायी. न पुलिस ने उनसे पूछताछ की. 


6 महीने बाद पुलिस ने दिखायी बहादुरी

एसडीएम के एफआईआर दर्ज कराने के बाद पुलिस के पास बहादुरी दिखाने का मौका आया. एफआईआर के 6 महीने बाद कई थानों की पुलिस ने एक शादी समारोह में धावा बोला और दीपक द्विवेदी को गिरफ्तार कर लिया. उसके बाद पुलिस ने दीपक द्विवेदी की कस्टडी में जमकर पिटाई की. उसे जमकर पीटने के बाद पुलिस ने जेल भेज दिया. 


5 साल तक सीजेएम को पुलिस ने ठेंगा दिखाया

गोपालगंज की पुलिस भाजपा नेता दीपक द्विवेदी को जब जेल भेज रही थी तो उसे सीजेएम के पास पेश किया गया. वहां दीपक ने शिकायत की कि उसे बर्बर तरीके से पीटा गया है. सीजेएम ने दीपक की मेडिकल जांच करा कर रिपोर्ट देने को कहा. 2016 से लेकर 2022 तक गोपालगंज के सीजेएम पुलिस औऱ स्वास्थ्य विभाग से दीपक द्विवेदी की इंजूरी रिपोर्ट मांगते रहे. कई नोटिस भेजा गया. लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया. 


एसपी को कानून की जानकारी नहीं

पुलिसिया जुल्म के खिलाफ दीपक द्विवेदी ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. गुरूवार को जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद की बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई. कोर्ट में गोपालगंज के एसपी आनंद कुमार और सिविल सर्जन वीरेंद्र प्रसाद पेश हुए. कोर्ट ने एसपी से पूछा कि किस कानून के तहत दीपक द्विवेदी को गिरफ्तार किया गया. क्या एसपी को सुप्रीम कोर्ट के उन आदेशों की जानकारी है, जिनमें किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए दिशा-निर्देश दिये गये हैं. एसपी कोर्ट को कोई जवाब नहीं दे पाये. नाराज कोर्ट ने एसपी को उसी वक्त सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पढ़ने को कहा. एसपी आनंद कुमार सरकारी वकील के चेंबर में जाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पढ़ कर आये और तब कोर्ट में फिर से इस मामले की सुनवाई शुरू हुई. 


इसके बाद कोर्ट ने पूछा कि फर्जी एफआईआर दर्ज क्यों हुई और पुलिस ने तथ्यों के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ा कर गिरफ्तारी और टार्चर कैसे किया. एसपी ने कोर्ट में स्वीकार किया कि एसडीएम ने गलत मुकदमा दर्ज किया था. कोर्ट में एसपी ने ये भी स्वीकारा कि अभियुक्त पर जो आरोप लगे हैं उसमें अधिकतम सजा 3 साल की है. ऐसे में उनकी गिरफ्तारी भी नहीं होनी चाहिये थी. एसपी ने स्वीकार किया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया गया. 


दिलचस्प बात ये भी है कि जब पीड़ित व्यक्ति ने हाईकोर्ट में मामला दायर किया तो उसके बाद गोपालगंज पुलिस ने आनन फानन में उसके खिलाफ दर्ज केस में चार्जशीट दायर कर दिया. कोर्ट ने एसपी से तीखे सवाल पूछे. एफआईआर में अभियुक्त बनाये गये व्यक्ति को 6 महीने बाद क्यों अरेस्ट किया गया. अगर वह अपराध कर रहा था जो गंभीर था तो उसे घटनास्थल पर ही क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया. वहां तो मजिस्ट्रेट और पुलिस दोनों तैनात थी. अगर सांप्रदायिक तनाव भड़क रहा था को तत्काल गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई. उसी दिन केस क्यों नहीं दर्ज हुआ. 24 घंटे के बाद ये एफआईआर क्यों दर्ज किया गया. 


ऐसा तो अंग्रेजों के राज में भी नहीं हो रहा था

नाराज हाईकोर्ट ने कहा कि बिहार के पुलिस अफसर सुप्रीम कोर्ट का आदेश नहीं समझते. वे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का मजाक उड़ा रहे हैं. अभियुक्त को गिरफ्तार कर बर्बर तरीके से पिटाई की गयी. सीजेएम ने उसके शरीर पर कई जख्म पाये. सीजेएम के बार बार नोटिस भेजने पर भी 6 साल तक कोई इंजूरी रिपोर्ट नहीं दी गयी. ये तो अंग्रेजों के जमाने में भी नहीं हो रहा था. वहां भी एक न्याय प्रणाली के तहत कम से कम इनजरी रिपोर्ट तो मिल जाता.


कोर्ट ने गोपालगंज के सिविल सर्जन को भी तलब किया था. सिविल सर्जन भी इंजूरी रिपोर्ट नहीं देने पर कोई ठोस जवाब नहीं दे पा रहे थे. मामले के हाईकोर्ट में आने के बाद यानि घटना के 6 साल बाद गोपालगंज सदर अस्पताल ने इंजूरी रिपोर्ट दी. हाईकोर्ट ने सदर अस्पताल के रजिस्टर में कई ग़डबड़ी पकड़ी. वैसे 6 साल बाद दी गयी मेडिकल रिपोर्ट में इसका जिक्र है कि पीडित के शरीर पर ठोस और भोथरे हथियार से पीटे जाने के निशान हैं. 


गोपालगंज के तत्कालीन एसपी ने हाईकोर्ट को भी धत्ता बताया

इस मामले की अहम बात ये है कि गोपालगंज के तत्कालीन एसपी रवि रंजन ने हाईकोर्ट के आदेश को भी धत्ता बता दिया. हाईकोर्ट ने कई बार नोटिस जारी कर उन्हें पेश होने को कहा लेकिन तत्कालीन एसपी हाजिर नहीं हुए. उधर जब हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई चल रही थी तो गोपालगंज पुलिस ने पीडित व्यक्ति के खिलाफ चार्जशीट दायर कर दिया.


कोर्ट ने दिये कई अहम निर्देश

इस केस में पुलिस और प्रशासन की तमाम कारस्तानी को कोर्ट रूम में ही गोपालगंज के एसपी ने स्वीकार कर लिया. इसके बाद कोर्ट ने कई अहम फैसले दिये. हाईकोर्ट ने कहा है कि पुलिस ने जो चार्जशीट दायर किया है उस पर लोअर कोर्ट कोई एक्शन नहीं लेगी. इस मामले की स्वतंत्र औऱ निष्पक्ष जांच होगी. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या वह इस केस में सामने आये तथ्यों के आधार पर दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी. कोर्ट ने कहा है कि इस केस में जो तथ्य आय़े हैं उससे साफ हो गया है कि पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना की है. तो क्या संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ गलत गिरफ्तारी औऱ टार्चर के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के लिए कार्रवाई नहीं होनी चाहिये. कोर्ट ने ये भी कहा है कि क्या इस केस में पीडित व्यक्ति को मुआवजा नहीं देना चाहिये और उसे संबंधित पुलिस पदाधिकारियों से नहीं वसूला जाना चाहिये. हाईकोर्ट की बेंच ने कहा है कि ऐसे तमाम बिंदुओं पर वह 21 दिसंबर अपना आदेश सुनायेगी.