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1st Bihar Published by: Updated Sun, 27 Feb 2022 06:27:30 PM IST
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DELHI: सुप्रीम कोर्ट ने लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति यानि ST में शामिल करने के बिहार सरकार के आदेश को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा है- लोहार और लोहरा जाति एक नहीं है. जस्टिस के एम जोसेफ औऱ जस्टिस ऋषिकेश रॉय की खंडपीठ ने कहा-लोहरा जाति में लोहार को भी शामिल करना पूरी तरह से गैरकानूनी और मनमानी है।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि शुरू से ही लोहार जाति अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं था. उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया था. कोर्ट ने कहा कि संविधान की धारा 342 के तहत अनुसूचित जनजाति में शामिल जातियों की सूची में राज्य सरकार जैसी किसी अक्षम संस्था फेरबदल नहीं कर सकती है. कोर्ट ने ये भी साफ किया कि लोहरा जाति के लोगों को अनुसूचित जनजाति का लाभ मिलता रहेगा।
हम आपको बता दें कि सुनील कुमार राय समेत कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बिहार सरकार के फैसले को चुनौती दी थी. याचिका में कहा गया था कि लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का बिहार सरकार का आदेश गलत है. याचिका दायर करने वालों ने कोर्ट से मांग की थी कि लोहार जाति के लोगों को अनुसूचित जनजाति का सर्टिफिकेट जारी करने वालों के खिलाफ अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत कार्रवाई करना चाहिये. जवाब में बिहार सरकार ने कहा कि उसने 2016 में ही ये आदेश जारी किया था. किसी आदेश के जारी होने के पांच साल बाद तक ही उसे चुनौती दी जा सकती है. वह समय सीमा पार कर चुकी है इसलिए सुप्रीम कोर्ट को ये याचिका स्वीकार नहीं करना चाहिये।
कोर्ट ने बिहार सरकार की इस दलील को मानने से इंकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विनय प्रकाश बनाम राज्य सरकार के मामले में 1997 में, नित्यानंद शर्मा बनाम राज्य सरकार के मामले में 1996 में और प्रभात कुमार शर्मा बनाम यूपीएससी के मामले में 2006 में कोर्ट ये साफ कर दिया था कि लोहार जाति अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं है औऱ वह अन्य पिछड़ी जाति में शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हम इस स्थिति से बहुत दुखी हैं. ये एक ऐसा मामला है जिस पर सुप्रीम कोर्ट तीन दफे फैसला सुना चूकी है. कोर्ट पहले ही स्पष्ट तौर पर कह चुकी है लोहार जाति अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं है और वह अन्य पिछड़ी जाति का हिस्सा है. संविधान में मिले अधिकार के तहत राज्य कई बातों का फैसला ले सकता है. लेकिन अगर कोई ऐसा फैसला लेना हो जिससे नागरिकों के अधिकार पर असर पड़े तो फैसला लेने से पहले उस पर गहन राय विचार किया जाना चाहिये।
फैसला लेने से पहले कम से कम इतना तो देखा जाना चाहिये कि उससे देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तीन दफे पहले ही फैसला सुनाया था. हम बिहार सरकार के इस रवैये को बिल्कुल ही स्वीकार नहीं कर सकते. कोर्ट ने लोहार जाति को अनुसूचित जाति मानने से इंकार करते हुए राज्य सरकार को कहा है कि वह याचिका दायर करने वालों को 5 लाख रूपये दे।
हम आपकों बता दें कि 8 अगस्त 2016 को बिहार सरकार ने आदेश जारी किया था कि लोहार जाति के लोगों को अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र जारी किया जायेगा. राज्य सरकार ने अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल लोहरा जाति को ही लोहार जाति माना था. राज्य सरकार ने कहा था कि न सिर्फ बिहार की नौकरियों औऱ दूसरे सरकारी सेवा के लिए बल्कि केंद्र सरकार की सेवाओं में नियुक्ति या चयन के लिए लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का प्रमाणपत्र दिया जाये.