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लॉकडाउन में निखर गई प्रकृति, बस अब हम नहीं पहुंचाएं नुकसान

1st Bihar Published by: Updated Fri, 05 Jun 2020 11:59:09 AM IST

लॉकडाउन में निखर गई प्रकृति, बस अब हम नहीं पहुंचाएं नुकसान

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DESK: हर साल 5 जून को 'विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है. जगह जगह आयोजन किए जाते है. कार्यक्रम में नेता आते हैं भाषणबाजी करके चले जाते हैं. तमाम तरह के नियम-कानून के पालन करने की बात कही जाती है. पर नतीजा कुछ नहीं निकलता. इस साल भी इस दिन प्रकृति को लेकर बहुत-कुछ सोचा-विचारा जाता लेकिन इस बार का पर्यावरण दिवस बहुत मायने में खास है. कोरोना वायरस के कारण सम्पूर्ण विश्व में तालाबंदी का दौर चल रहा है जिस वजह से औद्योगिक और मानवीय गतिविधियां न के बराबर हो रही थी. सडकों पर लगने वाले गाड़ियों का रेला नदारत था. सभी अपने अपने घरों में कैद थे, पर इस दौरान प्रकृति का अलग ही नजारा देखने को मिला जो शायद हम ने कभी नहीं देखा था.    


कोविड-19 महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन की वजह से विश्व में हवा की गुणवत्ता में बहुत सुधार देखा गया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे उपायों का इस्तेमाल गंभीर वायु प्रदूषण से निपटने के लिए आपातकालीन उपाय के रूप में किया जा सकता है. लॉकडाउन में कल-कारखाने बंद होने के कारण हवा की गुणवत्ता सुधरी, ध्वनि प्रदूषण कम हुआ है, जल की गुणवत्ता में सुधर देखा गया. नदियों के साफ़ सफाई के लिए करोडों का खर्च किया गया पर नतीजा कुछ नहीं निकला पर जैसे ही लॉकडाउन में मानव गतिविधियों पर रोक लगा प्रकृति अपने आप निर्मल होती चली गयी. देशव्यापी लॉकडाउन लगाने के वक्त शायद किसी ने इस बारे में सोचा भी नहीं था.  

     

भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरु के वायुमंडलीय और महासागरीय विज्ञान केंद्र के प्रोफेसर एस के सतीश कहते हैं, ''विशेषकर शहरी क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता में बड़ा सुधार हुआ है, जो गंभीर या खराब श्रेणी से अब संतोषजनक या अच्छी स्थिति में पहुंच गई है. कई जगह से लोगो ने ट्विटर पर प्रकृति की सुन्दर तस्वीरों को भी साझा किया था. लोगो ने अपने घर की छतों पर से 300 किलोमीटर दूर स्थित हिमालय की तस्वीरें साझा की. जो आसमान में धुंध और प्रदुषण के कारण दिखाई देना बंद हो गई थी वो फिर से दिखने लगी. अब देश को धीरे-धीरे अनलॉक किया जा रहा है ऐसे में हमें अब इसका ख्याल रखना होगा की हम फिर से पहले वाली स्थिति में प्रकृति को न पंहुचा दें. इस बात को हमें मान लेना चाहिए की प्रकृति और पर्यावरण को हमारी जरुरत नहीं है बल्कि हमें उनकी जरुरत है.