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1st Bihar Published by: Updated Fri, 21 Feb 2020 06:30:16 AM IST
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Desk: आज देश में महाशिवरात्रि का त्योहार पूरे उत्साह से मनाया जा रहा है. महाशिवरात्रि के अवसर पर शहर के मंदिरों और शिवालयों को बेहद आकर्षक ढंग से सजाया गया है. सुबह से ही मंदिरों और शिवालयों में भक्तों की भारी भीड़ लगी है. लोग महाशिवरात्री के मौके पर विशेष पूजा अर्चना कर रहे हैं.
इस बार की शिवरात्रि अद्भुत संयोग के कारण भक्तों के लिए विशेष है. आज के दिन 9 बज कर 14 मिनट से अगले दिन 6 बजकर 54 मिनट तक सर्वार्थ सीधी योग है. इस समय भगवान शिव की पूजा करना विशेष फलदाई है.
ऐसे करें पूजा
देवों के देव महादेव तो लोटे भर जल से भी प्रसन्न हो जाते है. पर यदि आप विधिवत पूजा करना चाहते हैं तो पंचामृत, पुष्प, अक्षत, अष्टगंध, चन्दन, भांग-धतुरा, तिल, गन्ने का रस, शमी के पत्ते, बेलपत्र, इत्र, जनेऊ, सूखे मेवे चढ़ाएं. पूजा में बेलपत्र की संख्या 5, 7, 11, 21, 51 या 108 रखें. आज महाशिवरात्रि का व्रत रखने वाले लोग 22 फरवरी सुबह 06 बजकर 54 मिनट के बाद कभी भी पारण कर सकते हैं.
महाशिवरात्रि से जुड़ी कथाएं
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे. इसी दिन पहली बार शिवलिंग की भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने पूजा की थी. मान्यता है कि इस घटना के चलते महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग की विशेष पूजा की जाती है.
वहीं दूसरी कथा ये भी है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. इसी वजह से भक्त मां पार्वती और शिव का विवाह कराते है. शहर में जगह-जगह भगवान शिव और माता पार्वती की झाकियां निकाली जाएगी.
समुद्र मंथन से भी एक कथा जुड़ी हुई है. समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत के लिए देवतओं और दानवों के बीच युद्ध चल रहा था तब अमृत निकलने से पहले कालकूट नाम का विष निकला था जिसे शिव ने अपने कंठ में ग्रहण कर लिया था. विषपान से उनका कंठ नीला हो गया और उनके शरीर का ताप बढ़ने लगा. तब सभी देवताओं ने उन पर जल चढ़ाया. तभी से भगवन शिव को जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है. इस घटना के बाद से उनका नाम नीलकंठ पड़ा.