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1st Bihar Published by: Updated Tue, 31 Mar 2020 08:08:14 AM IST
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DESK : नवरात्रि के सातवें दिन नवदुर्गा के रौद्र रूपा मां कालरात्रि की पूजा होती है. भयंकर रौद्र रूपधारण करने के बावजूद हमेशा शुभ फल प्रदान करने की वजह से मां का दूसरा नाम शुभंकरी भी हैं. देवी कालरात्रि को काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यु, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है. इस दिन विधि-वत पूजा अर्चना करने वाले भक्त का मन सहस्रार चक्र में स्थित रहता है, और उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है .
मां कालरात्रि का स्वरुप
मां दुर्गा की सातवीं शक्ति का रंग अंधकार की भांति गहरा काला है. उनके गले में चपला की तरह चमकने वाली माला है. मां कालरात्रि के स्वरूप को सस्त्रों में महात्म्य कहा गया है. माता कालरात्रि के तीन नेत्र हैं. इनका स्वरूप काल को भी भयभीत करने वाला है. इनके बाल खुले हुए हैं और ये गर्दभ की सवारी करती हैं. मां ने एक हाथ में कटा हुआ सिर लिए है जिससे रक्त टपकता रहता है. देवी कालरात्रि दुष्टों का विनाश करती हैं. दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं. ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं और इनकी पूजा से अग्नि, जल, जंतु, शत्रु, तथा रात्रि भय आदि कभी नहीं होते. मां हमारी मेधाशक्ति का विकास करके प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होने, हमारी वासना व तृष्णा को नियंत्रित करने और शांति व समृद्धि प्रदान करने वाली हैं.
पूजन विधि
अन्य दिनों की तरह ही सुबह जल्दी स्नान कर के प्रातः कल देवी की पूजा करनी चाहिए. परंतु कुछ लोग रात्रि में विशेष विधि विधान के साथ देवी की पूजा करते है. इस दिन कहीं कहीं तांत्रिक विधि से पूजा होती है. सप्तमी की रात्रि को ‘सिद्धियों’ की रात भी कही जाती है. सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें. इसके पश्चात माता कालरात्रि को अक्षत्, सिंदूर, धूप, गंध,पुष्प आदि चढ़ाएं. पूजा के बाद दुर्गा पाठ करें और आरती गाएं.
मां कालरात्रि के मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः।
या
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिताI
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:'।I
दोनों में से किसी भी मंत्र का 108 बार जप करें.
मां कालरात्रि की कथा
दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था. इससे चिंतित होकर सभी देवतागण भगवान शिव जी के पास गए. शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा. शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया, परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए. इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया. इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही मां कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया. इस तरह मां दुर्गा ने सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया.