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पटना हाईकोर्ट का अहम फैसला: SC के लिए आरक्षित सीट पर ST नहीं लड़ सकते चुनाव, रिट याचिका हुई खारिज

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 07 Jul 2023 07:14:36 AM IST

पटना हाईकोर्ट का अहम फैसला:  SC के लिए आरक्षित सीट पर ST नहीं लड़ सकते चुनाव,  रिट याचिका हुई खारिज

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PATNA : अनुसूचित जनजाति वर्ग के सदस्य अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट पर चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। यानी सीधे शब्दों में कहें तो एससी समुदाय के लिए आरक्षित सीट पर  एसटी समुदाय के लोग चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। यह फैसला पटना हाई कोर्ट के तरफ से सुनाया गया। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जिस समुदाय के लिए जो सीट आरक्षित है सिर्फ उसी वर्ग के सदस्य वहां चुनाव लड़ सकते हैं।


दरअसल, पटना हाईकोर्ट में पश्चिमी चंपारण के कोल्हूया चौतरवा ग्राम पंचायत के मुखिया पलक भारती की ओर से याचिका दायर किया गया था। इसी याचिका पर फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति राजीव राय की एकलपीठ ने यह कहा कि - जिस समुदाय के लिए जो सीट आरक्षित है सिर्फ उसी वर्ग के समुदाय वहां चुनाव लड़ सकते हैं।


कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि जिस समुदाय के लिए सीट आरक्षित है उसी समुदाय का व्यक्ति उस सीट पर चुनाव लड़ सकता है। इससे पहले एसटी समुदाय के पलक ने एससी के लिए आरक्षित सीट पर चुनाव लड़ा था और वहां से जीतकर मुखिया बन गई थी। जिसके बाद नंदकिशोर राम ने राज्य निर्वाचन आयोग में इसकी शिकायत दर्ज कर इसे चुनौती दी और उनकी शिकायत पर आयोग ने जांच के बाद शिकायत को सही पाया और चुनाव को अवैध करार दिया। उनकी शिकायत पर आयोग ने डीएम को जांच के लिए भेज दिया।डीएम ने एसडीओ को जांच कर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया। इसके बाद ग्राम पंचायत के मुखिया पलक भारती ने रिट दायर कर हाई कोर्ट से मदद की गुहार लगाई थी। लेकिन पटना हाई कोर्ट  ने भी इस रिट याचिका को खारिज करते हुए। स्पष्ट रूप से कहा कि जिस समुदाय के लिए जो सीट आरक्षित है उसी समुदाय का व्यक्ति वहां से चुनाव लड़ सकता है।


बताया जा रहा है कि,  नंदकिशोर राम के तरफ से राज्य निर्वाचन आयोग में दायर शिकायत को लेकर डीएम ने इस मामले एसडीओ को जांच कर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया जिसके बाद इनके निर्देश पर गौनाहा के सीओ ने जांच कर अपना रिपोर्ट दिया। रिपोर्ट में कहा गया कि मुखिया के पिता अनुसूचित जनजाति वर्ग से आते हैं।  पिता की जाति ही संतान की जाति होती है। सीओ के रिपोर्ट के आधार पर डीएम ने अपना रिपोर्ट राज्य निर्वाचन आयोग को भेज दिया। जिसके बाद आवेदिका की ओर से कोर्ट को बताया गया कि आवेदिका के पिता की शादी होने के बाद अनुसूचित जनजाति समाज शादी को मंजूर नहीं किया। जिसके बाद वह अपनी मां के साथ अनुसूचित जाति कॉलोनी में ही रहने लगी। यही नहीं सभी शैक्षणिक प्रमाणपत्र अनुसूचित जाति का हैं। इतना ही नहीं उसकी शादी भी अनुसूचित जाति के सदस्य से हुई। उनका कहना था कि आवेदिका अनुसूचित जाति से आती हैं।


 वहीं चुनाव आयोग के अधिवक्ता संजीव निकेश का कहना था कि जाति विवाद को लेकर कास्ट स्क्रूटनी कमेटी का गठन किया गया है। उनका कहना था कि आवेदिका को चाहिए कि कमेटी के समक्ष अपने जाति को लेकर अपना पक्ष प्रस्तुत करे। उन्होंने अर्जी खारिज करने की मांग कोर्ट से की कोर्ट ने माना कि आवेदिका के पिता अनुसूचित जनजाति वर्ग से है। वहीं मां अनुसूचित जाति वर्ग के ही सदस्य हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी को जाति को लेकर किसी को आपत्ति हो, तो वे अपना दावा कास्ट स्क्रूटनी कमेटी के समक्ष पेश कर सकता है। कोर्ट ने आवेदिका के अर्जी को खारिज करते हुए जाति दावा कास्ट स्क्रूटनी कमेटी में रखने का छूट दिया ।