समझिये क्यों फूलने से पहले ही फूट गया नीतीश का गुब्बारा: अब विपक्षी एकता की बैठक होने की संभावना नहीं, बुरी तरह फेल हुए नीतीश

समझिये क्यों फूलने से पहले ही फूट गया नीतीश का गुब्बारा: अब विपक्षी एकता की बैठक होने की संभावना नहीं, बुरी तरह फेल हुए नीतीश

PATNA: चार दिन पहले तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बॉडी लैंग्वेज यानि हाव भाव ऐसा था मानो उन्होंने देश पर फतह कर लिया हो. चेहरे पर तैरती मुस्कुराहट, चलने का तरीका भी जुदा. लेकिन पिछले शुक्रवार से चेहरे का रंग उड़ा और रौनक गायब हो गयी. शुक्रवार यानि 2 जून से पहले नीतीश कुमार इस फीलगुड में थे कि 12 जून को वे देश भर में छा जाने वाले हैं. भाजपा विरोधी तमाम पार्टियों के नेता उनके सजाये मंडप में बैठ कर साथ-साथ जीने मरने की कसमें खायेंगे और नीतीश कुमार विपक्षी एकता के महानायक बन जायेंगे. लेकिन 2 जून को कांग्रेस ने नीतीश के ख्याली गुब्बारे में पिन चुभोया और तीन दिनों में पूरी हवा निकल गयी.


दरअसल 2 जून को ही कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने बयान दिया कि विपक्षी एकता की बैठक में पार्टी का कोई नेता जायेगा. लेकिन कौन नेता जायेगा ये तय नहीं है. इसका मतलब साफ था कि राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे बैठक में शामिल नहीं होंगे. 3 जून को पटना में बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने साफ साफ कह दिया कि राहुल औऱ खरगे में से कोई बैठक में नहीं आयेगा. जबकि जेडीयू और राजद के नेता कह रहे थे कि राहुल गांधी से पूछ कर ही तो 12 जून को बैठक रखी गयी थी. राहुल गांधी ने खुद कहा था कि वे 10 जून को विदेश दौरे से भारत लौट आयेंगे और 12 जून को पटना आय़ेंगे. 


आखिरकार आज नीतीश कुमार ने 12 जून को होने वाली विपक्षी एकता बैठक के रद्द होने की आधिकारिक जानकारी दे दी है. वैसे नीतीश कुमार कह रहे हैं कि बाद में बैठक की तिथि तय की जायेगी. लेकिन हम आपको पूरी जानकारी दे रहे हैं कि विपक्षी एकता पर बैठक होने की अब कोई संभावना नहीं दिख रही है. विपक्षी एकता के सुर-ताल के पीछे नीतीश कुमार से लेकर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के इरादों को समझ रही कांग्रेस सतर्क हो गयी है. कांग्रेस अब ऐसी किसी मुहिम का हिस्सा बनेगी इसके आसार लगभग खत्म हो गये हैं.


कांग्रेस के कारण टली बैठक

12 जून की बैठक क्यों टली, इसका कारण आज खुद नीतीश कुमार ने बताया. उन्होंने मीडिया के सामने कहा-हमने जो बैठक बुलायी थी उसमें तमाम विपक्षी दलों के प्रमुख आ रहे थे लेकिन कांग्रेस के प्रमुख नहीं आ रहे थे. ऐसे में दूसरी पार्टियों के नेताओं ने कहना शुरू किया कि जब कांग्रेस के प्रमुख ही बैठक में नहीं आ रहे हैं तो फिर हमारे आने का क्या मतलब है. इसके बाद मैंने कांग्रेस को बता दिया कि फिलहाल बैठक टाल रहे हैं. अब आगे जब आप आने को तैयार होइयेगा तो बैठक की तारीख तय की जायेगी.


अब बैठक की संभावना खत्म

नीतीश कुमार का ही बयान बता रहा है कि अब विपक्षी एकता पर कोई बैठक होने की संभावना खत्म हो गयी है. नीतीश कुमार ने रविवार को जब कांग्रेस को ये जानकारी दी कि बैठक रद्द कर दिया गया है तो कांग्रेस की ओर से कोई आश्वासन नहीं मिला. कांग्रेस ने ये नहीं कहा कि राहुल गांधी या मल्लिकार्जुन खरगे आगे किसी बैठक में आने की स्वीकृति देंगे. नीतीश खुद कह रहे हैं कि जब कांग्रेस स्वीकृति देगी तब बैठक की नयी तिथि तय की जायेगी. कांग्रेस कोई स्वीकृति देने को तैयार नहीं है. 


कांग्रेस ने क्यों दिया झटका?

दरअसल कांग्रेस विपक्षी एकता के बहाने हो रहे खेल को समझ रही है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब कांग्रेस के पास विपक्षी एकता का फार्मूला लेकर गये थे तो उन्होंने ये भरोसा दिलाया था कि वे ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, नवीन पटनायक जैसे नेताओं को इस बात के लिए राजी कर लेंगे कि वे अपने प्रभाव वाले राज्य में कांग्रेस से समझौता करें और उसे सम्माजनक सीटें दें. लेकिन ऐसा कोई मैसेज नहीं आया. नवीन पटनायक बात करने तक को तैयार नहीं हुए।


ममता बनर्जी ने 12 जून की बैठक से पहले बंगाल में कांग्रेस के एकमात्र विधायक को तोड़ कर अपनी पार्टी में मिला लिया. जब उनसे पूछा गया कि विपक्षी एकता की कोशिशों के बीच उन्होंने ऐसा क्यों किया तो ममता ने कहा कि बंगाल में उनकी मजबूरी है. वे राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के साथ रहेंगी. यानि ममता बनर्जी बंगाल में कांग्रेस को डैमेज करेंगी और उन राज्यों में समर्थन करेंगी जहां उनका कोई आधार नहीं है.


कांग्रेस के एक बड़े नेता ने बताया कि ममता बनर्जी ने ही राहुल गांधी और पार्टी के दूसरे प्रमुख नेताओं की आंखें खोली. कांग्रेस को लगा कि खेल क्या हो रहा है. उधर अरविंद केजरीवाल को लेकर कांग्रेस में भारी घमासान छिड़ा था. पंजाब, दिल्ली से लेकर गुजरात औऱ गोवा जैसे राज्यों की कांग्रेस इकाईयों ने आलाकमान को साफ कह दिया था कि अरविंद केजरीवाल से कोई समझौता नहीं किया जाये. पंजाब कांग्रेस ने तो अरविंद केजरीवाल को प्लेग जैसा खतरनाक महामारी करार दिया था. इन राज्यों के कांग्रेसी नेताओं ने अपने आलाकमान को बता दिया था कि अगर अरविंद केजरीवाल से समझौता किया तो फिर पार्टी पूरी तरह से साफ हो जायेगी.


कांग्रेस को 250 सीटों पर लड़ने का ऑफर था

नीतीश कुमार समेत विपक्षी एकता की मुहिम में शामिल ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल का प्लान था कि कांग्रेस को देश में सिर्फ 250 लोकसभा सीटों पर लड़ने के लिए कहा जाये. बाकी सीटें वह क्षेत्रीय पार्टियों के लिए छोड़ दे. जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में देश में ऐसी तकरीबन साढ़े तीन सौ सीटें थीं, जहां कांग्रेस पहले या दूसरे नंबर पर थी. कांग्रेस देश भर में साढे तीन सौ सीटों से कम पर लड़ने को हरगिज तैयार नहीं है. 


कांग्रेस के एक औऱ नेता ने बताया कि पार्टी आलाकमान को ये समझ में आया है कि विपक्षी एकता की ये मुहिम उसे कई राज्यों से पूरी तरह आउट करने की कवायद है. अगर कांग्रेस बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में एक-दो सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो उस राज्य से उसका साफ हो जाना तय है. ये वो राज्य हैं जहां कांग्रेस कई दशकों तक राज करती आयी है. कांग्रेस का मकसद अपने पुराने वोट बैंक को हासिल करने का है, न कि किसी क्षेत्रीय पार्टी के लिए अपना जनाधार कुर्बान कर देने का है. लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस के जनाधार पर फसल काटेंगी और फिर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का ही साथ छोड़ देगी. कांग्रेस ऐसी कुर्बानी देने को कतई तैयार नहीं है.


वैसे पहले से ही कांग्रेस का कई क्षेत्रीय दलों के साथ समझौता है. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे औऱ शरद पवार की पार्टी के साथ गठबंधन है तो तमिलनाडु में डीएमके के साथ. कांग्रेस इन राज्यों में गठबंधन के साथ चुनाव लड़ेगी. पश्चिम बंगाल में वह वामपंथी पार्टियों के साथ गठजोड़ कर सकती है. वहीं, बिहार में राजद-जेडीयू के साथ उसका गठबंधन जारी रहेगा. इसके अलावा किसी नये गठजो की संभावना नहीं है.