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1st Bihar Published by: FIRST BIHAR EXCLUSIVE Updated Mon, 03 Jul 2023 08:53:04 PM IST
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PATNA: शिक्षक नियुक्ति नियमावली में बदलाव कर पूरे बिहार के युवाओं का आक्रोश झेल रहे नीतीश सरकार इशारों में इसका दोष लालू प्रसाद यादव पर मढ़ रही है. शिक्षक नियुक्ति नियमावली पर सफाई देने के लिए आज बिहार के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने प्रेस कांफ्रेंस कर सफाई दी. इस प्रेस कांफ्रेंस में बड़े सलीके से लालू-राबड़ी राज में हुई नियुक्तियां और उस दौर में बनी नियमावली का हवाला दे दिया. मुख्य सचिव बोले-जैसे उस समय नियुक्ति हुई थी, वैसे ही अब हो रही है. आमिर सुबहानी ने कहा कि इस बार जब नियमावली बन रही थी तो उस समय भूल हुई थी, जिसे बाद में सुधार लिया गया।
लालू यादव पर ऐसे मढ़ा दोष
बिहार के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा- “अभी जो बीपीएससी से शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है उससे पहले बीपीएससी द्वारा तीन बार शिक्षक नियुक्ति के लिए परीक्षा ली गयी हैं. 1994 में, 1999 में और 2000 में बीपीएससी ने शिक्षक भर्ती के लिए परीक्षा ली थी और तब भी यही नियम था कि देश के किसी भी भाग के नागरिक परीक्षा में भाग ले सकता है और चयनित हो सकता है. इसी आधार पर पहले चयन हुआ है. 1991 में ही शिक्षक नियुक्ति की नियमावली बनी थी, उसमें स्थानीय निवासी के ही आवेदन करने का प्रावधान नहीं था. इस कारण से इस बार भी जो बीपीएससी से परीक्षा होगी उसमें बिहार का निवासी होने का प्रावधान नहीं रखा जा सकता है.”
बता दें कि मुख्य सचिव ने 1991 में नियमावली बनने की बात कही. उस वक्त लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे. 1994 में पहली बहाली हुई उस वक्त भी लालू ही सीएम थे. 1999 और 2000 की बहाली के समय राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री थीं. इशारों में नीतीश कुमार की सरकार ने बता दिया कि दोष किसका है.
वैसे बिहार के मुख्य सचिव ने आज संविधान का हवाला दे दिया. उन्होंने कहा कि इस बार जब शिक्षक नियुक्ति की नियमावली बन रही थी तो उस समय ये बिंदु ध्यान में नहीं रहा होगा कि संविधान में बाध्यता है कि नौकरी देने में किसी राज्य के निवासी होने के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है. मुख्य सचिव बोले- भारत के संविधान में भी काफी सारे संशोधन हुए हैं, हमने भी शिक्षक नियुक्ति नियमावली में फेरबदल किया है.
मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने कहा कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 16 स्पष्ट है कि राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूल वंश, जाति लिंग उद्भाव जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा औऱ न उससे विभेद किया जायेगा. भारत का संविधान ये कहता है कि जन्म स्थान और निवास के आधार पर आप किसी उम्मीदवार को अपात्र नहीं कर सकते हैं. ये नहीं कह सकते कि बिहार से बाहर के व्यक्ति को चयन प्रक्रिया में शामिल होने लायक नहीं है. अगर कोई प्रक्रिया चलेगी तो वह गैर कानूनी और असंवैधानिक होगी. ये संविधान कहता है कि पूरे देश के लोग परीक्षा में शामिल होने के लिए पात्र हैं.
मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने सफाई दी कि बिहार की कैबिनेट ने शिक्षक नियुक्ति को लेकर जो सबसे पहले नियमावली बनायी थी वह संविधान के मुताबिक नहीं थी. वह कानूनन सही नहीं था. लिहाजा उसमें बदलाव कर दिया. वैसे भी अगर देश के दूसरे राज्य भी ऐसा ही नियम बनाने लगेंगे तो बिहार के लोगों को घाटा होगा. अगर सभी राज्यों ने ऐसा करना शुरू किया तो बिहार के युवा वहां नियुक्ति के लिए आवेदन नहीं कर पायेंगे. ये बात भी शिक्षा विभाग ने पता कर ली है कि अन्य राज्यों में भी ऐसा कोई नियम नहीं है. उसी राज्य के व्यक्ति पात्र हो ऐसा नहीं है. बिहार के निवासी वहां आवेदन कर सकते हैं.
मुख्य सचिव ने दावा किया कि अगर पूरे देश के लोगों से आवेदन लिया जाये तो बिहार के बाहर के अभ्यर्थियों के अधिक संख्या में चयनित होने की संभावना बहुत कम है. 2012 में जब बिहार सरकार ने शिक्षक नियुक्ति की थी तो उसमें एक लाख 68 हजार रिक्ति में सिर्फ 3 हजार बिहार के बाहर के थे और बाकी सभी बिहार के थे.
मुख्य सचिव ने कहा कि बिहार में सरकारी नौकरी में 50 प्रतिशत रिक्तियां आरक्षित रहती हैं, आरक्षण का नियम ये है कि आरक्षण का लाभ केवल और केवल राज्य के निवासी को मिलेगा. आरक्षण के नियमों के मुताबिक शिक्षक बहाली में 50 प्रतिशत लोग तो बिहार के लोग ही रहेंगे. स्थानीय निवासियों को इससे कोई नुकसान नहीं होगा. सरकार ने बहुत सोच विचार करके, कानूनी पहलु को ध्यान में रखकर ये नियम बनाया है. संभावना यही है कि बहुत कम संख्या में बाहर के लोग चयनित होंगे.