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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Tue, 06 May 2025 08:43:32 AM IST
बिहार विधानसभा में 1986 से लागू है नियम प्रश्न पूछकर वापस लेने पर रोक - फ़ोटो Google
Bihar Assembly question rule : राजस्थान के विधायक जयकृष्ण पटेल की 20 लाख रुपये रिश्वत लेते हुए गिरफ्तारी ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। आरोप है कि उन्होंने विधानसभा में पूछे गए प्रश्न को वापस लेने के एवज में यह राशि ली थी। लेकिन बिहार में इस तरह की भ्रष्ट परंपरा को 39 साल पहले ही खत्म कर दिया गया था।
बिहार विधानसभा में 1986 में तत्कालीन अध्यक्ष शिवचंद्र झा के कार्यकाल में यह नियम बना कि एक बार यदि कोई प्रश्न स्वीकृत हो गया तो उसे वापस नहीं लिया जा सकता। यह फैसला इसलिए लिया गया था क्योंकि उस समय भी शिकायतें सामने आई थीं कि कुछ विधायक प्रश्न पूछने के बाद संबंधित पक्षों से धन लेकर प्रश्न को वापस ले लेते थे।
बिहार में सवाल पूछकर उसे वापस लेने की व्यवस्था बहुत पहले ही खत्म कर दी गई थी। अब जब कोई सवाल विधानसभा में मंजूर हो जाता है, तो उसे हटाया नहीं जा सकता। इस प्रक्रिया से जुड़े सभी जवाब स्वतः ऑनलाइन विधानसभा की वेबसाइट पर अपलोड हो जाते हैं, जिन्हें कोई भी देख सकता है।
इस नियम का एक फायदा यह है कि अगर सवाल पूछने वाला विधायक उस दिन सदन में मौजूद नहीं होता, तो उसके सवाल पर कोई पूरक (Follow-up) सवाल नहीं पूछा जाता। आमतौर पर पूरक सवालों से सरकार की कमजोरियाँ सामने आती हैं। अगर किसी अधिकारी को बचाने के लिए गोलमोल जवाब दिया गया हो, तो पूरक सवालों के जरिए उसे बेनकाब किया जा सकता है। इन्हीं पूरक सवालों के आधार पर कभी-कभी किसी अधिकारी या संस्था के खिलाफ विधानसभा जांच समिति भी बना देती है और सरकार कार्रवाई की घोषणा करती है। हालाँकि, अगर विधायक सदन में नहीं आ पाते तो वे किसी अन्य विधायक को अधिकृत कर सकते हैं कि वह उनका सवाल पूछे।
जानिए अब क्या है बिहार विधानसभा में प्रक्रिया?
बिहार विधानसभा के प्रश्नों के नियम के अनुसार अगर कोई प्रश्न स्वीकृत हो गया है तो विधायक उसे वापस नहीं ले सकते।
प्रश्नकाल हर दिन सुबह 11 से 12 बजे तक होता है।
12 बजे के बाद सभी लिखित उत्तर विधानसभा पोर्टल पर स्वत: पब्लिक डोमेन में अपलोड हो जाते हैं, जिसे कोई भी नागरिक देख सकता है।
यदि विधायक अनुपस्थित रहते हैं तो मंत्री उत्तर नहीं देते, लेकिन प्रश्न सदन के पटल पर रखा जाता है।
विधायक चाहें तो अपने स्थान पर किसी अन्य सदस्य को प्रश्न पूछने का अधिकार दे सकते हैं।
बता दे कि बिहार का यह नियम न केवल राजनीतिक जवाबदेही को मजबूत करता है बल्कि लोकतंत्र में पारदर्शिता भी पेश करता है। राजस्थान की घटना ने एक बार फिर दिखाया कि बिहार विधानसभा की सख्त प्रणाली कैसे भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में सहायक हो सकता है।