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Bihar News: बिहार में नहीं होगा तीन चरणों का चुनाव, जानिए कब होगा तारीखों का ऐलान

Bihar News: बिहार की राजनीति में अब चुनावी हलचल तेज हो गई है। सभी राजनीतिक पार्टियां सक्रिय दिख रही है। अब चुनाव के तारिख के ऐलान पर सारा माजरा टिका हुआ है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 21 Sep 2025 07:26:56 AM IST

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बिहार न्यूज - फ़ोटो GOOGLE

Bihar News: बिहार की राजनीति में अब चुनावी हलचल तेज हो गई है। सभी राजनीतिक पार्टियां सक्रिय दिख रही है। अब चुनाव के तारिख के ऐलान पर सारा माजरा टिका हुआ है। माना जा रहा है कि चुनाव आयोग अक्टूबर के पहले या दूसरे सप्ताह में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है। विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, विधानसभा चुनाव दो चरणों में नवंबर 2025 में कराए जा सकते हैं, और मतगणना 15 से 20 नवंबर के बीच संभव है। यह चुनाव एनडीए गठबंधन और विपक्षी इंडिया (INDIA) गठबंधन के बीच एक बड़ा राजनीतिक मुकाबला साबित होने जा रहा है।


मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो पिछले बीस वर्षों से राज्य की राजनीति में एक अहम चेहरा बने हुए हैं, एक बार फिर जनता का भरोसा जीतने की कोशिश करेंगे। वहीं विपक्ष बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और "वोट चोरी" जैसे मुद्दों को लेकर आक्रामक है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी राज्यव्यापी यात्रा में बार-बार "वोट चोरी" का आरोप लगा रहे हैं, जबकि आरजेडी नेता तेजस्वी यादव बेरोजगारी और कथित भ्रष्टाचार को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाकर जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं।


इस बार का चुनाव इसलिए भी खास माना जा रहा है क्योंकि यह 2023 में नीतीश सरकार द्वारा कराए गए जातीय सर्वेक्षण के बाद बिहार की पहली बड़ी राजनीतिक जंग होगी। इस सर्वेक्षण ने बिहार की सामाजिक संरचना को नए सिरे से उजागर किया, जिसके अनुसार पिछड़ा वर्ग (OBC) और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) मिलाकर राज्य की 63% आबादी हैं। इनमें यादव समुदाय 14% और ईबीसी 36% हैं। अनुसूचित जातियां (SC) 19%, सवर्ण वर्ग लगभग 15%, और मुस्लिम समुदाय की भागीदारी 17% है। मुस्लिम समुदाय की कई जातियाँ ओबीसी श्रेणी में आती हैं, लेकिन वे आमतौर पर धार्मिक आधार पर वोट करते हैं।


इस जातीय सर्वेक्षण के बाद नीतीश सरकार ने नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण को 50% से बढ़ाकर 65% करने का फैसला किया, साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% आरक्षण भी बरकरार रखा। हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने इस फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है, फिर भी इस निर्णय ने नीतीश कुमार की ओबीसी नेता वाली छवि को और मजबूत किया है।


अप्रैल 2025 में केंद्र सरकार ने भी राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना के प्रस्ताव को मंजूरी दी, जो राजनीतिक दृष्टिकोण से एक बड़ा मोड़ साबित हुआ। भाजपा, जो पहले इस मांग से दूर रही थी, अब इसे स्वीकार करके विपक्ष के जातिगत राजनीति के हथियार को कुंद करने की रणनीति अपना रही है। विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम भाजपा को हिंदू एकजुटता और ओबीसी वर्ग में अपनी पकड़ मजबूत करने का दोहरा अवसर देगा।


एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों ही अब सीट बंटवारे को लेकर तैयारियों के अंतिम दौर में हैं। रिपोर्टों के अनुसार एनडीए में जेडीयू को 102–103, भाजपा को 101–102 सीटें दी जा सकती हैं, और शेष सीटें एलजेपी (रामविलास), हम (सेक्युलर), और रालोसपा जैसे सहयोगियों के लिए छोड़ी जाएंगी। वहीं महागठबंधन (इंडिया गठबंधन) के दलों कांग्रेस, आरजेडी, वामपंथी पार्टियों के बीच सीटों का फॉर्मूला लगभग तय हो चुका है और जल्दी ही औपचारिक घोषणा हो सकती है।


एनडीए के लिए सबसे बड़ी ताकत नीतीश कुमार की अनुभवशील और "विकास पुरुष" वाली छवि है। भाजपा और जेडीयू मिलकर "विकास, स्थिरता और सुशासन" का संदेश देकर मतदाताओं को लुभाना चाहते हैं। भाजपा ने राज्य में 'चुनावी वार रूम' स्थापित कर दिया है और बूथ स्तर तक संगठन को सक्रिय किया जा रहा है। वहीं, विपक्ष बेरोजगारी, पलायन, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दे रहा है। राहुल गांधी जहां “लोकतंत्र बचाओ यात्रा” में वोट चोरी का मुद्दा जोर-शोर से उठा रहे हैं, वहीं तेजस्वी यादव अपनी जनसभाओं में यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि युवाओं के लिए रोजगार और शिक्षा उनकी प्राथमिकता है।


इस चुनाव में एक नई चुनौती “जन सुराज” जैसे नए राजनीतिक दलों के रूप में उभर रही है, जो खासकर सवर्ण और शहरी वोट बैंक को प्रभावित कर सकते हैं। यदि एनडीए इस वर्ग को अपने पक्ष में एकजुट नहीं रख पाया, तो सीटों पर नुकसान हो सकता है