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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 07 Jun 2025 09:34:46 AM IST
आज पूरे देश में बकरीद यानी ईद-उल-अजहा 2025 का पर्व - फ़ोटो google
Eid ul-Adha 2025:आज पूरे देश में बकरीद यानी ईद-उल-अजहा 2025 का पर्व बेहद श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। इस्लामिक समुदाय के लिए यह त्योहार त्याग, भक्ति और मानवता का प्रतीक माना जाता है। इसे ईद-उल-जुहा, ईद-उल-बकरा, या Festival of Sacrifice (कुर्बानी का त्योहार) के नाम से भी जाना जाता है।
इस्लामिक पंचांग के अनुसार, बकरीद जिल-हिज्जा की 10वीं तारीख को मनाई जाती है, जो रमज़ान के 70 दिन बाद आती है। इस साल यह पर्व 7 जून 2025 को पूरे भारत में मनाया जा रहा है। ईद-उल-अजहा का सीधा संबंध हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की उस महान परीक्षा से है, जिसमें उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने पुत्र हजरत इस्माईल को कुर्बान करने का संकल्प लिया था।
अल्लाह ने उनकी नीयत देखकर उनके बेटे की जगह एक जानवर भेज दिया। तभी से इस दिन बकरी, भेड़, ऊंट या बैल की कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई। कुर्बानी के पीछे संदेश है कि इंसान को अल्लाह की राह में अपनी सबसे प्रिय वस्तु तक कुर्बान करने को तैयार रहना चाहिए।
इस्लाम धर्म में कुर्बानी उन्हीं जानवरों की जायज मानी जाती है जो स्वस्थ और निर्दोष हों। बीमार, अपंग या कमजोर जानवरों की कुर्बानी को अल्लाह कबूल नहीं करता। कुर्बानी के तीन हिस्से किए जाते हैं, जिसमें पहला हिस्सा गरीबों और ज़रूरतमंदों के लिए होता है, तो दूसरा हिस्सा दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए होता है। वहीं, तीसरा हिस्सा अपने घर के लिए रखा जाता है। यह बंटवारा सहयोग, सद्भाव और मानव सेवा का प्रतीक है।
भारत समेत कई देशों में बकरीद की शुरुआत सुबह की ईद की नमाज़ से होती है। लोग नए कपड़े पहनते हैं, एक-दूसरे को "ईद मुबारक" कहते हैं, मिठाइयाँ और तोहफे बाँटते हैं। त्योहार का सबसे बड़ा उद्देश्य गरीबों, रिश्तेदारों और समुदाय के बीच सौहार्द और सहयोग की भावना को बढ़ावा देना है। इस अवसर पर बड़ी मात्रा में दान और खैरात भी की जाती है।
भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और मलेशिया में बकरीद सऊदी अरब से एक दिन बाद मनाई जाती है। वहीं, सऊदी अरब, यूएई, कतर और अन्य खाड़ी देशों में पर्व एक दिन पहले मनाया गया। इस्लामी समाज में यह पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समर्पण, सेवा और इंसानियत का महान संदेश भी है।
बकरीद 2025 एक ऐसा पर्व है जो हमें ईमान, बलिदान, और सामाजिक सेवा का पाठ पढ़ाता है। इस पर्व की सार्थकता तभी है जब हम कुर्बानी के मूल उद्देश्य को समझें और अपने समाज में जरूरतमंदों की मदद को प्राथमिकता दें।