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Sawan Special: भगवान शिव का अंतिम ज्योतिर्लिंग है खास, जानिए... घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा

Sawan Special: सावन मास का समापन बस कुछ ही दिनों में होने वाला है और यह पूरा महीना भगवान शिव के भक्तों के लिए अत्यंत विशेष और पावन माना जाता है। इस माह में लाखों श्रद्धालु व्रत, उपवास और शिवलिंग की पूजा करते हैं।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 07 Aug 2025 03:04:23 PM IST

Sawan Special

सावन का पावन महिना - फ़ोटो GOOGLE

Sawan Special: सावन मास का समापन बस कुछ ही दिनों में होने वाला है और यह पूरा महीना भगवान शिव के भक्तों के लिए अत्यंत विशेष और पावन माना जाता है। इस माह में लाखों श्रद्धालु व्रत, उपवास और शिवलिंग की पूजा करते हैं, विशेष रूप से भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का संकल्प लेते हैं। इस माह में लाखों श्रद्धालु व्रत, उपवास और शिवलिंग की पूजा करते हैं, विशेष रूप से भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का संकल्प लेते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रातःकाल इन ज्योतिर्लिंगों की वंदना करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।


इसी श्रृंखला में हम आपको बता रहे हैं महाराष्ट्र के औरंगाबाद (अब छत्रपति संभाजी नगर) में स्थित भगवान शिव के अंतिम और द्वादश ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में, जिसकी पौराणिक कथा, धार्मिक महत्त्व और यात्रा की जानकारी हर श्रद्धालु के लिए उपयोगी है।


घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास और धार्मिक महत्त्व

घृष्णेश्वर मंदिर को "घुश्मेश्वर" नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर न केवल भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में अंतिम है, बल्कि इसके पीछे छिपी कथा भी उतनी ही प्रेरणादायक है। यह स्थान कभी नाग आदिवासियों का निवास स्थल था और अब यह देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल बन चुका है। मंदिर की वास्तुकला मराठा शैली में बनी हुई है और इसका पुनर्निर्माण 18वीं सदी में रानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था, जिन्होंने कई अन्य ज्योतिर्लिंगों का भी पुनर्निर्माण कराया।


पौराणिक कथा 

शिवपुराण के अनुसार, दक्षिण भारत में देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहते थे। संतान न होने के कारण सुदेहा ने अपने पति से अपनी छोटी बहन घुश्मा से विवाह करने का आग्रह किया। घुश्मा भगवान शिव की परम भक्त थी और प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजन करती थी। भगवान शिव की कृपा से उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई।


समय के साथ सुदेहा के मन में ईर्ष्या और द्वेष उत्पन्न हुआ और उसने एक रात घुश्मा के पुत्र की हत्या कर दी। लेकिन घुश्मा ने अपने पुत्र की मृत्यु पर भी अपनी शिवभक्ति नहीं छोड़ी और पूजा जारी रखी। पूजा के बाद जब वह तालाब से लौट रही थीं, तब उनका पुत्र जीवित अवस्था में लौट आया। यह देख भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए और घुश्मा को वरदान मांगने को कहा। उन्होंने सुदेहा को क्षमा करने की भी प्रार्थना की।


घुश्मा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने सुदेहा को क्षमा कर दिया और वहीं ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए, जिसे आज हम घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में जानते हैं। यह ज्योतिर्लिंग आत्म-शुद्धि और क्षमा का प्रतीक है। इसकी कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति किसी भी दुख को सहन करने की शक्ति देती है। सावन के महीने में यहां दर्शन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।


घृष्णेश्वर मंदिर कैसे पहुंचें?  यात्रा गाइड

यदि आप दिल्ली से यात्रा कर रहे हैं तो सबसे पहले आपको छत्रपति संभाजी नगर (औरंगाबाद) एयरपोर्ट पहुंचना होगा। यह हवाई अड्डा देश के प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, पुणे आदि से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी लगभग 30 किलोमीटर है, जिसे आप टैक्सी या कैब द्वारा आसानी से तय कर सकते हैं।


मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन औरंगाबाद रेलवे स्टेशन है। दिल्ली सहित कई बड़े शहरों से यहां के लिए सीधी ट्रेनें उपलब्ध हैं। स्टेशन से मंदिर तक पहुंचने के लिए टैक्सी, ऑटो या लोकल बसें ली जा सकती हैं। औरंगाबाद शहर से घृष्णेश्वर मंदिर तक पहुंचने के लिए लोकल बस सेवा और प्राइवेट टैक्सी आसानी से उपलब्ध होती हैं। यह मंदिर एलोरा की गुफाओं के पास स्थित है, जो इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी बनाता है।


मंदिर दर्शन का समय

सुबह: 5:30 बजे से

रात: 9:30 बजे तक

विशेष पूजा: सोमवार और शिवरात्रि पर विशेष भीड़


सावन और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर यहां बहुत भीड़ होती है, इसलिए पहले से होटल और यात्रा की योजना बना लें। मंदिर परिसर में मोबाइल और कैमरा प्रतिबंधित हो सकते हैं, इसलिए सुरक्षा निर्देशों का पालन करें। पूजा सामग्री मंदिर के पास आसानी से मिल जाती है, लेकिन श्रद्धालु चाहें तो उसे साथ भी ला सकते हैं।


घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुभव है, बल्कि यह जीवन को सकारात्मक ऊर्जा, क्षमा और भक्ति से भर देने वाला अनुभव भी है। सावन के इस पवित्र अवसर पर यहां आकर भगवान शिव के चरणों में शीश नवाएं और अपने जीवन में आध्यात्मिक शांति प्राप्त करें।