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Janmashtami 2025: आज मनाया जा रहा श्रीकृष्ण का 5252वां जन्मोत्सव, जानिए... क्यों लगाए जाते हैं आठ प्रहर में अलग-अलग भोग

Janmashtami 2025: देशभर में 2025 में श्रीकृष्ण का 5252वां जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। जानिए क्यों लगाए जाते हैं भगवान श्रीकृष्ण को आठ प्रहर में आठ अलग-अलग भोग और क्या है इसके पीछे धार्मिक महत्व।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 16 Aug 2025 12:56:43 PM IST

Janmashtami 2025

श्रीकृष्ण का 5252वां जन्मोत्सव - फ़ोटो GOOGLE

Janmashtami 2025:आज पूरे देशभर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। इस बार जन्माष्टमी का त्योहार और भी खास है क्योंकि वर्ष 2025 में भगवान श्रीकृष्ण का 5252वां जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। यह पर्व हर वर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो इस वर्ष विशेष योग (अष्टमी + रोहिणी नक्षत्र) के संयोग में पड़ रही है।


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को आठ प्रहरों में आठ बार भोग लगाया जाता है। खासतौर पर मथुरा और वृंदावन में यह परंपरा भव्य रूप से निभाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण के जीवन में "8" अंक का अत्यंत गहरा महत्व था। वे भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे, उनका जन्म भी अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। वे वसुदेव की आठवीं संतान थे और उनकी आठ पत्नियाँ थीं। यही नहीं, भगवान श्रीकृष्ण आठ प्रहर भोजन करते थे, जिसके चलते उन्हें आठ बार अलग-अलग भोग अर्पित करने की परंपरा प्रचलित हुई।


श्रीकृष्ण को लगाए जाने वाले 8 प्रमुख भोग में  खीर, सूजी का हलवा या लड्डू, सेवई, पुरणपोली, मालपुआ, केसर भात, मीठे फल (जैसे केला, अंगूर) और सफेद मिठाई (जैसे रबड़ी, पेड़ा) शामिल किया जाता है, जो बाल गोपाल की सबसे पसंदीदा भोग माना जाता है। इसके अलावा, भगवान को माखन-मिश्री, पंचामृत, नारियल, सूखे मेवे और धनिया पंजीरी का विशेष प्रसाद भी अर्पित किया जाता है। इन भोगों के पीछे धार्मिक मान्यता है कि ये सभी व्यंजन भगवान को प्रिय हैं और उन्हें भोग लगाकर सुख, समृद्धि और कृपा प्राप्त होती है।


अष्ट प्रहर पूजा, जिसे अष्टयाम सेवा कहा जाता है, वैष्णव परंपरा में बेहद महत्व रखती है। श्रीकृष्ण की 24 घंटे की सेवा को आठ प्रहरों में विभाजित किया गया है, जिनमें हर प्रहर में भिन्न-भिन्न प्रकार की पूजा, आरती और भोग की विधि होती है।


अष्टयाम सेवा के आठ 

मंगला प्रहर – प्रभु को जगाने और स्नान कराकर श्रृंगार करने का समय।

श्रृंगार प्रहर – वस्त्र और आभूषण पहनाए जाते हैं।

ग्वाल प्रहर – भगवान को गायों के साथ भेजने की लीलात्मक सेवा।

राजभोग प्रहर – मुख्य रूप से स्वादिष्ट भोजन का भोग लगाया जाता है।

उत्थापन प्रहर – भगवान को दोपहर बाद विश्राम हेतु ले जाया जाता है।

भोग प्रहर – दोबारा भोग लगाया जाता है।

संध्या आरती प्रहर – आरती और पूजा का समय।

शयन प्रहर – रात्रि विश्राम के लिए भगवान को शयन कराया जाता है।


देशभर के मंदिरों में विशेष सजावट, झांकी प्रदर्शन, दही हांडी कार्यक्रम, और रासलीला का आयोजन किया गया है। मथुरा, वृंदावन, द्वारका और इस्कॉन मंदिरों में लाखों श्रद्धालु एकत्रित होकर भजन-कीर्तन, अभिषेक और प्रभु दर्शन का लाभ ले रहे हैं। इस शुभ अवसर पर भक्त उपवास रखते हैं, कृष्ण नाम का संकीर्तन, भगवत कथा, और गुरु-सेवा करते हैं। यह दिन केवल एक पर्व नहीं बल्कि धर्म, भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा से जुड़ने का माध्यम है।