ब्रेकिंग न्यूज़

Bihar News: बिहार के 24 जिलों में बारिश का अलर्ट जारी, बाढ़ का संकट और भी गहराया.. सहरसा में रुई के गोदाम में लगी भीषण आग, दमकल की 4 गाड़ियों ने पाया काबू अरवल में इनोवा कार से 481 लीटर अंग्रेज़ी शराब बरामद, पटना का तस्कर गिरफ्तार Bihar Crime News: कारोबारी की चाकू मारकर हत्या, गले और चेहरे पर 15 से अधिक वार; पैसों के विवाद में हत्या की आशंका Bihar Crime News: कारोबारी की चाकू मारकर हत्या, गले और चेहरे पर 15 से अधिक वार; पैसों के विवाद में हत्या की आशंका Bihar Crime News: बिहार में पेशी के दौरान कोर्ट कैंपस से कैदी फरार, पुलिस ने घर से दबोचा Bihar Crime News: बिहार में पेशी के दौरान कोर्ट कैंपस से कैदी फरार, पुलिस ने घर से दबोचा Bihar Transfer Posting: नीतीश सरकार ने सात अनुमंडल के SDO को हटाया और बनाया डीटीओ, 54 अफसरों को किया गया है इधऱ से उधर Bihar News: नाबार्ड की मदद से बिहार की ग्रामीण सड़कों को मिली नई रफ्तार, गांवों से शहरों की दूरी हो रही कम Bihar News: नाबार्ड की मदद से बिहार की ग्रामीण सड़कों को मिली नई रफ्तार, गांवों से शहरों की दूरी हो रही कम

Mahabharata: पांडवों के मामा ने दिया कौरवों का साथ, फिर भी कैसे मिली जीत

महाभारत का कुरुक्षेत्र युद्ध धर्म और अधर्म की टकराहट का प्रतीक है, जहां रिश्तों और नैतिकता की कठिन परीक्षा हुई। इस युद्ध में पांडवों के मामा, मद्र नरेश शल्य, कौरवों की सेना में शामिल हुए।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 05 Jan 2025 07:00:20 AM IST

महाभारत

महाभारत - फ़ोटो महाभारत

Mahabharata: महाभारत का कुरुक्षेत्र युद्ध सिर्फ एक लड़ाई नहीं, बल्कि धर्म और अधर्म के बीच का संग्राम था। इस युद्ध में कई अद्भुत और अप्रत्याशित घटनाएं घटित हुईं। इन्हीं में से एक घटना पांडवों के मामा और मद्र नरेश शल्य से जुड़ी है। शल्य, जो पांडवों के मामा थे, कौरवों की सेना में शामिल हुए। यह निर्णय उन्होंने क्यों लिया और यह कैसे पांडवों के पक्ष में गया, यह एक अनोखी कहानी है।


कौन थे मद्र नरेश शल्य?

मद्र नरेश शल्य, राजा पांडु की दूसरी पत्नी माद्री के भाई थे। वे नकुल और सहदेव के सगे मामा और युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन के भी मामा थे। युद्ध से पहले वे पांडवों से मिलने और उनके पक्ष का समर्थन करने के इरादे से हस्तिनापुर जा रहे थे।


दुर्योधन का छल

दुर्योधन ने शल्य के आगमन की खबर सुन ली थी। उसने शल्य और उनकी सेना के लिए पूरे रास्ते में बेहतरीन आवभगत की व्यवस्था कराई। खाने-पीने और ठहरने की उत्तम व्यवस्थाओं से प्रभावित होकर शल्य ने पूछा कि यह सब किसने किया है। दुर्योधन ने यह कहते हुए सामने आकर दावा किया कि यह सब उसकी व्यवस्था है।


शल्य, दुर्योधन की इस कृपा से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने उसे एक वचन दे दिया:

"जो तुम मांगोगे, वह मैं दूंगा।"

दुर्योधन की मांग और शल्य की शर्त

दुर्योधन ने चालाकी से मांग रखी कि शल्य कौरवों की सेना में शामिल होकर उसका संचालन करें। शल्य वचन दे चुके थे, इसलिए इनकार नहीं कर पाए। लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी:

"मैं तुम्हारे पक्ष में रहूंगा, लेकिन मेरी वाणी पर मेरा ही अधिकार रहेगा।"

दुर्योधन ने यह शर्त स्वीकार कर ली।


शल्य की वाणी बनी पांडवों का हथियार

युद्ध के दौरान शल्य को कर्ण का सारथी बनाया गया। हालांकि, अपनी शर्त के तहत, उन्होंने कौरवों की सेना का मनोबल तोड़ने का कार्य किया। वे युद्ध के दौरान कर्ण और अन्य योद्धाओं को पांडवों की वीरता का गुणगान सुनाते रहे।

कर्ण को निराश किया: अर्जुन की शक्ति और कौशल का बखान करते हुए शल्य ने कर्ण को लगातार हतोत्साहित किया।

कौरवों का मनोबल तोड़ा: शाम को युद्ध के बाद भी कौरवों की कमजोरियां गिनाकर उनका मनोबल गिराते थे।


परिणाम

युद्ध में शल्य ने दुर्योधन के पक्ष में रहते हुए भी अपनी वाणी से पांडवों की सहायता की। उनकी चतुराई और कूटनीति कौरवों के लिए घातक साबित हुई। इस प्रकार, पांडवों के मामा ने अप्रत्यक्ष रूप से अपने भांजों की विजय में योगदान दिया। महाभारत का यह अध्याय दिखाता है कि सत्य और धर्म की विजय में सहयोग कई रूपों में हो सकता है। शल्य, जिन्होंने दुर्योधन का साथ दिया, फिर भी पांडवों के प्रति अपनी निष्ठा निभाने में सफल रहे। यह कहानी महाभारत के जटिल लेकिन प्रेरणादायक पात्रों की गहराई को दर्शाती है।