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Bihar News: विलियम डेलरिम्पल ने नालंदा विश्वविद्यालय के उत्खनन कार्य की कमी पर जताई चिंता, कहा सिर्फ 10% ही खुदाई हुई; कई पहलू छिपे है

Bihar News: मशहूर लेखक और इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने बीते दिन मंगलवार यानि 8 अप्रैल को नालंदा विश्वविद्यालय के उत्खनन कार्य की कमी पर चिंता जताई है...जानें

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 09 Apr 2025 04:12:52 PM IST

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नालंदा विश्वविद्यालय के उत्खनन कार्य - फ़ोटो GOOGLE

Bihar News: मशहूर लेखक और इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने बीते दिन मंगलवार यानि 8 अप्रैल को नालंदा विश्वविद्यालय के उत्खनन कार्य की कमी पर चिंता जताई है और कहा कि बिहार स्थित नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन अवशेषों का सिर्फ 10 फीसदी ही उत्खनन किया गया है, और बाकी 90 फीसदी हिस्सा अभी भी खोजा जाना बाकी है। उन्होंने नालंदा में एक भव्य संग्रहालय बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया, जो भारतीय सभ्यता का एक विशाल और महत्वपूर्ण स्मारक बने। डेलरिम्पल की यह टिप्पणी इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 'नालंदा: इसने दुनिया को कैसे बदला' विषय पर आयोजित एक परिचर्चा के दौरान आई है।


उन्होंने कहा, "यह चौंकाने वाला है कि 21वीं सदी में भी नालंदा स्थल के पुरातात्विक अवशेषों के उत्खनन कार्य में पर्याप्त धनराशि नहीं डाली गई है।" उनका मानना था कि नालंदा का अधिकतर हिस्सा अभी भी खोदने की जरूरत है, और इसके महत्व को समझते हुए सरकार को अधिक निवेश करना चाहिए।


नालंदा विश्वविद्यालय: प्राचीन भारतीय शिक्षा का केंद्र
नालंदा विश्वविद्यालय या नालंदा महाविहार के खंडहर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल हैं, जिसे 2016 में यह प्रतिष्ठित दर्जा मिला था। यह स्थल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 13वीं शताब्दी तक एक प्रमुख शैक्षणिक केंद्र था, जो भारतीय और विश्व इतिहास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नालंदा में स्तूप, मंदिर, विहार (आवासीय और शैक्षणिक भवन), और कई महत्वपूर्ण कलाकृतियां मिलती हैं जो प्राचीन भारतीय सभ्यता की महानता को दर्शाती हैं।


वहीं, डेलरिम्पल ने अपनी नई किताब "द गोल्डन रोड: हाउ एनशिएंट इंडिया ट्रांसफॉर्म्ड द वर्ल्ड" में इस प्राचीन भारतीय सभ्यता के योगदान को विस्तार से बताया है। उन्होंने कहा, "नालंदा विश्वविद्यालय का डिज़ाइन आज भी आधुनिक ऑक्सब्रिज कॉलेजों में देखा जा सकता है, जो इस बात का प्रमाण है कि उस समय यहां की शिक्षा प्रणाली कितनी उन्नत थी।"


सरकार से फंड की कमी पर जताई चिंता
डेलरिम्पल ने यह भी उल्लेख किया कि नालंदा विश्वविद्यालय के शैक्षणिक परिसर के उत्खनन और संरक्षण के लिए सरकार से उचित फंड की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, "यह भारत की सॉफ्ट पावर का सबसे बड़ा उदाहरण था, और एक ऐसा स्थल जो भारतीय सभ्यता का प्रतीक है, उसके उत्खनन के लिए पर्याप्त फंड नहीं दिए जा रहे हैं, यह काफी आश्चर्यजनक है।" उनका मानना था कि नालंदा के उत्खनन कार्य को लगातार जारी रखना चाहिए ताकि दुनिया को प्राचीन भारतीय ज्ञान के इस अनमोल खजाने का पूरा लाभ मिल सके।


नालंदा में संग्रहालय का निर्माण
वर्तमान में, नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों में एक साधारण संग्रहालय स्थित है, जो बिहार की राजधानी पटना से करीब 98 किलोमीटर दूर स्थित है। डेलरिम्पल ने सुझाव दिया कि इस स्थल पर एक बड़ा और भव्य संग्रहालय बनाना चाहिए, जो न केवल भारतीय बल्कि वैश्विक सभ्यता के विकास को दर्शाए। उन्होंने कहा कि नालंदा का इतिहास इतना समृद्ध और महत्वपूर्ण है कि यह एक विशाल और भव्य स्मारक के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।


नालंदा विश्वविद्यालय का वैश्विक महत्व
नालंदा विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा पूरी दुनिया में है। यह भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे पुराना और सबसे प्रमुख विश्वविद्यालय माना जाता है, जो 800 वर्षों तक ज्ञान के प्रसार में योगदान करता रहा। इसकी शैक्षणिक संरचना और शिक्षण पद्धतियाँ आज भी पूरे विश्व में प्रभावित करती हैं। इसके समृद्ध इतिहास को समझने के लिए और इसके महत्व को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने के लिए उत्खनन कार्य और संरक्षण बेहद महत्वपूर्ण हैं।


नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों का उत्खनन और संरक्षण भारतीय इतिहास और सभ्यता के अध्ययन के लिए अनिवार्य है। डेलरिम्पल की चिंता वाजिब है, और इसके लिए पर्याप्त धन और संसाधन आवंटित किए जाने चाहिए ताकि हम इस प्राचीन धरोहर को संरक्षित कर सकें और पूरी दुनिया को नालंदा की महानता से परिचित करा सकें।