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BIHAR NEWS: मोकामा में गंगा नदी फिर बनी मौत का कुंड : छठ पूजा का जल लेने गया किशोर डूबा, पिछले तीन साल में सौ से अधिक लोग गंवा चुके जान

मोकामा के मेकरा गांव में गंगा नदी में डूबने से 14 वर्षीय किशोर राकेश की मौत हो गई। वह छठ पूजा का जल लेने गया था। घाट पर सुरक्षा इंतजाम न होने से हादसा हुआ, गांव में मातम पसरा है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 27 Oct 2025 02:00:25 PM IST

BIHAR NEWS: मोकामा में गंगा नदी फिर बनी मौत का कुंड : छठ पूजा का जल लेने गया किशोर डूबा, पिछले तीन साल में सौ से अधिक लोग गंवा चुके जान

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BIHAR NEWS: मोकामा प्रखंड के मेकरा गांव में एक और दर्दनाक हादसा हुआ है। रविवार की शाम गंगा नदी में डूबने से 14 वर्षीय किशोर राकेश कुमार की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि राकेश अपने परिजनों के साथ छठ पूजा के लिए गंगा जल लेने गया था। पानी भरने के दौरान वह फिसलकर गहरे पानी में चला गया और देखते ही देखते गंगा की तेज धार में बह गया। स्थानीय गोताखोरों और ग्रामीणों की मदद से घंटों की मशक्कत के बाद उसका शव बरामद किया जा सका।


राकेश मेकरा गांव निवासी मदन राय का पुत्र था। परिवार में यह घटना किसी वज्रपात से कम नहीं है। छठ की तैयारी में जुटे परिवार का माहौल देखते ही देखते मातम में बदल गया। मां-बाप, भाई-बहनों और पूरे गांव में कोहराम मच गया। राकेश आठवीं कक्षा का छात्र था और पढ़ाई के साथ-साथ घर के कामों में हाथ बंटाता था।


स्थानीय लोगों ने बताया कि जिस स्थान पर हादसा हुआ, वह घाट बेहद खतरनाक माना जाता है। वहां न तो बैरिकेडिंग की व्यवस्था है और न ही किसी तरह का चेतावनी बोर्ड लगाया गया है। नदी के किनारे पर मिट्टी का कटाव तेजी से हो रहा है, जिसके कारण गहराई का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन हर साल हादसे के बाद जांच की बात करता है, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता।


स्थानीय निवासी रामप्रवेश यादव ने कहा, “हर साल गंगा में दर्जनों लोग डूबकर मर जाते हैं, लेकिन प्रशासन की नींद नहीं खुलती। अगर बैरिकेडिंग या सुरक्षा कर्मी तैनात होते तो आज राकेश हमारे बीच होता।”


मोकामा और आसपास के क्षेत्रों में गंगा नदी में डूबने की घटनाएं आम हो चुकी हैं। स्थानीय प्रशासन के रिकॉर्ड के अनुसार, बीते तीन वर्षों में इस इलाके में गंगा में डूबने से 100 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। इनमें ज्यादातर मामले त्योहारों या गर्मी के मौसम में नहाने के दौरान सामने आए हैं। छठ, गंगा दशहरा और अन्य धार्मिक अवसरों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ घाटों पर उमड़ती है, लेकिन सुरक्षा के नाम पर केवल खानापूर्ति होती है।


छठ पर्व बिहार का सबसे बड़ा लोकपर्व माना जाता है। इस दौरान हजारों श्रद्धालु गंगा, तालाब और नदियों के घाटों पर जाकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसी बीच हर साल ऐसी दुखद घटनाएं सामने आती हैं, जब श्रद्धालु गहराई या तेज धारा के कारण बह जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा के जलस्तर और धारा में लगातार बदलाव हो रहा है, जिससे बिना सुरक्षा इंतजाम घाट पर जाना बेहद जोखिम भरा है।


घटना के बाद ग्रामीणों में प्रशासन के खिलाफ आक्रोश देखने को मिला। लोगों ने आरोप लगाया कि छठ जैसे पर्व से पहले प्रशासन को घाटों की सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त करनी चाहिए थी। जगह-जगह बैरिकेडिंग, चेतावनी बोर्ड और गोताखोरों की टीम की तैनाती की मांग की गई थी, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।


स्थानीय मुखिया शशि कुमार राय ने कहा, “गंगा के किनारे लगातार कटाव हो रहा है। कई बार प्रशासन को लिखित सूचना दी गई, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। नतीजा यह है कि हर साल कोई न कोई परिवार अपना चिराग खो देता है।”


घटना की जानकारी मिलते ही मोकामा थाने की पुलिस मौके पर पहुंची। शव को पोस्टमॉर्टम के लिए मोकामा रेफरल अस्पताल भेजा गया। थानाध्यक्ष ने बताया कि यह एक दर्दनाक हादसा है। प्रशासनिक स्तर पर घाटों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए रिपोर्ट तैयार की जा रही है। उन्होंने कहा कि छठ पर्व के दौरान सभी घाटों पर एनडीआरएफ और गोताखोरों की टीम की तैनाती की जाएगी।



राकेश के पिता मदन राय ने बिलखते हुए कहा, “बेटा पूजा के लिए जल लेने गया था, हमें क्या पता था कि वही जल उसके जीवन की आखिरी याद बन जाएगा।” मां की हालत इतनी खराब है कि वह बार-बार बेहोश हो जा रही हैं। गांव के लोग परिवार को सांत्वना देने पहुंचे हैं।


स्थानीय लोगों ने एक स्वर में कहा कि अब वक्त आ गया है जब प्रशासन को गंभीरता दिखानी चाहिए। अगर घाटों पर बैरिकेडिंग, सुरक्षा कर्मी और गोताखोरों की तैनाती हो, तो ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है। उन्होंने मांग की है कि मृतक के परिवार को उचित मुआवजा और सहायता दी जाए।


गांव के बुजुर्गों का कहना है कि गंगा मां के दर्शन करना पुण्य का काम है, लेकिन प्रशासन की लापरवाही ने इसे भय का कारण बना दिया है। जब तक घाटों पर सुरक्षा नहीं बढ़ाई जाती, तब तक मोकामा की गंगा यूं ही किसी न किसी परिवार का चिराग बुझाती रहेगी।