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1st Bihar Published by: FIRST BIHAR Updated Mon, 16 Jun 2025 12:08:14 PM IST
प्रतिकात्मक - फ़ोटो google
Caste Census: देश को लंबे समय से जनगणना का इंतजार था, जो अब खत्म होता दिख रहा है। गृह मंत्रालय ने जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत जनगणना और जातीय जनगणना से संबंधित आधिकारिक गजट नोटिफिकेशन सोमवार को जारी कर दिया। इसके बाद विभिन्न संबंधित एजेंसियां सक्रिय हो गई हैं। अब स्टाफ की नियुक्ति, प्रशिक्षण, फॉर्मेट तैयार करना और फील्ड वर्क की योजना बनाना शुरू किया जाएगा।
दरअसल, इस बार की जनगणना खास होगी, क्योंकि देश में पहली बार जातीय जनगणना और सामान्य जनगणना एक साथ कराई जा रही है। भारत में हर 10 साल में जनगणना होती है, जिससे देश की आबादी, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और अन्य महत्वपूर्ण आंकड़ों को दर्ज किया जाता है। यह प्रक्रिया दुनिया के सबसे बड़े प्रशासनिक अभ्यासों में से एक मानी जाती है, जिसे गृह मंत्रालय के अधीन रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त की देखरेख में अंजाम दिया जाता है।
कोरोना महामारी के चलते वर्ष 2021 की जनगणना टाल दी गई थी, जिसे अब 2025 में शुरू किया जा रहा है। इस बार की जनगणना दो चरणों में पूरी की जाएगी। पहला चरण 1 फरवरी 2027 तक पूरा होगा जबकि दूसरा और अंतिम चरण फरवरी 2027 के अंत तक संपन्न होगा। 1 मार्च 2027 की मध्यरात्रि को रेफरेंस डेट माना जाएगा। इस समय की स्थिति को ही जनगणना रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा। वहीं, हिमालयी और कठिन भौगोलिक क्षेत्रों वाले राज्यों जैसे जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और उत्तराखंड में मौसम की कठिनाइयों को देखते हुए जनगणना अक्टूबर 2026 तक पहले ही पूरी कर ली जाएगी। इन राज्यों के लिए 1 अक्टूबर 2026 को रेफरेंस डेट माना जाएगा।
जनगणना प्रक्रिया मार्च 2027 तक पूरी हो जाएगी, यानी करीब 21 महीनों का समय इसमें लगेगा। शुरूआती आंकड़े मार्च 2027 में जारी हो सकते हैं, जबकि विस्तृत रिपोर्ट दिसंबर 2027 तक आने की संभावना है। इसके बाद लोकसभा और विधानसभा सीटों के परिसीमन की प्रक्रिया 2028 में शुरू हो सकती है। इस दौरान महिलाओं के लिए 33% आरक्षण लागू करने की दिशा में भी स्पष्टता आएगी। 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले आरक्षित सीटों की स्थिति स्पष्ट हो सकती है।
जनगणना के बाद परिसीमन आयोग का गठन किया जाएगा, ताकि नई जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों का पुनर्वितरण किया जा सके। इसको लेकर दक्षिण भारतीय राज्यों में चिंता देखी जा रही है, क्योंकि उनकी जनसंख्या वृद्धि दर उत्तर भारतीय राज्यों की तुलना में कम रही है। ऐसे में उन्हें लोकसभा में प्रतिनिधित्व घटने का डर सता रहा है। सरकार की ओर से आश्वासन दिया गया है कि परिसीमन की प्रक्रिया में दक्षिणी राज्यों की चिंताओं का पूरा ध्यान रखा जाएगा।