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1st Bihar Published by: Viveka Nand Updated Sun, 28 Sep 2025 07:10:10 AM IST
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Bihar News: सच कहा गया है कि सियासत में न तो कोई दोस्त होता है और न दुश्मन. समय और लाभ के हिसाब से दोस्त और दुश्मन बनाये जाते हैं. बिहार भाजपा के एक बड़े नेता (जिन्हें उनके संसदीय क्षेत्र में भीष्म पितामह कहा जाता है) ने भी ऐसा ही किया है. हाल के दिनों तक धूर विरोधी रहे, मिटाने को किसी भी स्तर तक जाने वाले नेताजी का हृदय परिवर्तन हुआ है. अचानक इस हृदय परिवर्तन पर सियासी चर्चा शुरू हो गई है. दल के लोग ही कह रहे, नेताजी को अचानक क्या हो गया है...वे अपने कट्टर विरोधी जिसे पार्टी की प्रदेश इकाई से भी जिसे चलता करा दिया था, जिला से पूरी तरह से अलग-थलग करा दिया था, उन्हें साथ लेकर घूम रहे. आखिर नेताजी की मजबूरी क्या है..? इस पर तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं. कोई चुनाव से जोड़ रहा तो कोई एक जाति के नेता को उसी जाति के नेता से काटने के तौर पर देख रहा.
कथित भीष्ण पितामह का हृदय परिवर्तन कैसे हुआ ?
बात बीजेपी के एक बड़े नेता की करेंगे. नेताजी पार्टी में हैसियत रखते हैं. कहा जाता है कि उनके संसदीय क्षेत्र में उन्हीं के हिसाब से सबकुछ होता है. प्रदेश नेतृत्व भी उनके संसदीय क्षेत्र के संगठन में हस्तक्षेप नहीं करता. लिहाजा वे अपने हिसाब से संगठन को हांकते हैं. जिसे मन किया, कुर्सी दिलवा दी, जिसे चाहा कुर्सी से उतरवा दिया. हालात ऐसे हैं कि अगर उस जिले के नेता ने उनकी बात को पूर्ण रूपेण नहीं माना तो जिला छोड़िए, प्रदेश संगठन से भी पत्ता साफ करा देते हैं. इसके कई उदाहरण हैं. पार्टी के कई लोग भुक्तभोगी हैं. आज एक ऐसे ही नेता की चर्चा करेंगे, जिन्हें भीष्म पितामह कहे जाने वाले नेताजी ने सियासी खात्मा की पूरी कोशिश की थी. पंगा हुआ तो प्रदेश इकाई से भी चलता करवा दिया था. इसके बाद उस नेता ने लोकसभा चुनाव-2024 से पहले कथित भीष्ण पितामह के खिलाफ ही बगावत का बिगूल फूंक दिया था.कथित भीष्ण पितामह के संसदीय क्षेत्र में रथ यात्रा निकाल कर खुली चुनौती दे दी थी. खैर.. मोदी लहर पर सवार होकर भीष्ण पितामह कहे जाने वाले नेताजी चुनावी वैतरणी पार कर गए. इसके बाद भी विरोध का स्वर जारी रहा.
रात के अंधेरे में हुई सेटिंग.....
अचानक खबर आई है कि कथित भीष्ण पितामह ने अपने धूर विरोधी व खुली चुनौती देने वाले नेता से हाथ मिला लिया है. यह सबकुछ गोपनीय हुआ. खबर है कि 2-3 सितंबर को कथित भीष्म पितामह ने अपने धूर विरोधी से सेटिंग की. इसके बाद दोनों पुरानी बात को भूलकर नए सिरे से राजनीति करने को तैयार हो गए, दोनों साथ आ गए. अब तो साथ-साथ चल रहे, तथाकथित भीष्ण पितामह पिछले महीने तक जिसे अपना कट्टर दुश्मन मान रहे थे, उन्हें अपनी गाड़ी में बिठाकर घूमा रहे,जिसे देख उनके अगल-बगल वाले नेता-समर्थक भी अवाक हैं.
चर्चा- कब किससे हाथ मिला लेंगे,कहा नहीं जा सकता
नेताजी की ऐसी कौन सी मजबूरी है, जिस वजह से अपने कट्टर सियासी विरोधी से हाथ मिला लिया, इस पर चर्चा जारी है. सभी अपने-अपने हिसाब से अर्थ लगा रहे हैं. हालांकि सभी लोग एक निष्कर्ष पर पहुंच रहे कि कथित भीष्ण पितामह बिना लाभ के ऐसा करते नहीं. जरूर कोई लाभ दिख रहा होगा, तभी इतना प्रेम उमड़ा है. नेताजी के अगल-बगल के लोग भी भरत मिलाप से अचंभित हैं. वे कह रहे, नेता जी कब किससे हाथ मिला लेंगे, किसे गिरा देंगे, कहा नहीं जा सकता.
कथित भीष्म पितामह का फार्मूला- जाति को जाति से लड़ाइए..
हालांकि इस चर्चा में दम है कि कथित भीष्ण पितामह जाति के नेता को उसी जाति के नेता से काटने के फार्मूले पर काम करते हैं. सामने विधानसभा का चुनाव है, बताया जाता है कि भूमिहार जाति के नेता से कथित भीष्ण पितामह को खुली चुनौती मिल रही है, लिहाजा इन्होंने धूर विरोधी ही सही, लेकिन जवाब देने वाले नेता से हाथ मिला लिया है, ताकि उन सबों से निबटा जाय.
बता दें, हम जिस नेता जी (कथित भीष्म पितामह) की चर्चा कर रहे, वे प्रदेश इकाई में सबसे ऊंची कुर्सी संभाल चुके हैं. केंद्र में वजीर भी रह चुके हैं. एक उम्र को जी चुके हैंं, फिर भी अपने ससंदीय क्षेत्र में किसी दूसरे नेता का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करते. सब कुछ अपने हिसाब से तय करते हैं. दूसरे नेता जो धूर विरोधी थी, जिनसे हाल में ही नेताजी ने हाथ मिलाया है, वो उनके ही संसदीय क्षेत्र बापू की कर्मभूमि से ताल्लुक रखते हैं. ये भी जिला से लेकर प्रदेश इकाई में काम कर चुके हैं. पार्टीके एक प्रकोष्ठ में प्रदेश अध्यक्ष से लेकर प्रदेश प्रवक्ता व अन्य जिम्मेदारी संभाल चुके हैं.