Bihar Election 2025 : : बाहुबलियों वाली 15 सीटों पर कड़ा मुकाबला, आज किसका होगा परचम; जेल में बंद हैं अनंत और रीतलाल

बिहार चुनाव 2025 के नतीजे आज आने वाले हैं। 15 सीटें बाहुबली उम्मीदवारों की वजह से सबसे ज्यादा सुर्खियों में हैं। मोकामा, दानापुर, लालगंज, जोकीहाट समेत सभी सीटों पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 14 Nov 2025 07:14:39 AM IST

Bihar Election 2025 : : बाहुबलियों वाली 15 सीटों पर कड़ा मुकाबला, आज किसका होगा परचम; जेल में बंद हैं अनंत और रीतलाल

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Bihar Election 2025 :  बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे आज आएंगे। सुबह 8 बजे से वोटों की गिनती शुरू हो जाएगी। इस बार 243 में से 15 सीटें ऐसी हैं, जहां या तो बाहुबली नेता खुद या उनके परिवार का सदस्य चुनावी मैदान में है। इन 15 सीटों में 8 उम्मीदवार NDA से और 7 महागठबंधन से हैं। इन सीटों का राजनीतिक और सामाजिक समीकरण हमेशा से चर्चा में रहता है, इसलिए इनका परिणाम भी बेहद अहम माना जा रहा है।


इनमें सबसे ज्यादा सुर्खियों में मोकामा सीट है, जहां एक तरफ बाहुबली अनंत सिंह JDU के टिकट से मैदान में हैं, वहीं उनके सामने RJD ने सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी को उतारा है। दुलारचंद यादव की हत्या के बाद मोकामा की राजनीति और भी तनावपूर्ण हो गई। अनंत सिंह जेल में हैं, लेकिन इलाके में उनकी ‘रॉबिनहुड’ छवि और भूमिहारों का संगठित वोट उन्हें मजबूत बनाता है। हालांकि अगर पिछड़ों के साथ वीणा देवी को कुछ अगड़ा वोट भी मिले, तो मुकाबला बेहद कड़ा हो सकता है।


दानापुर सीट पर भी हाई-प्रोफाइल जंग देखने को मिली। यहां बाहुबली रीतलाल यादव RJD के टिकट से मैदान में हैं, जबकि उनके सामने BJP के वरिष्ठ नेता रामकृपाल यादव हैं। रीतलाल की छवि गांवों में मजबूत है, लेकिन शहरी क्षेत्र में उनकी इमेज कमजोर मानी जाती है। फिरौती केस में जेल में होने की वजह से उनकी बेटी को प्रचार मैदान में उतरना पड़ा, जिससे सिमपैथी वोट बढ़े। लालू प्रसाद यादव ने खुद यहां रोड शो किया, जिससे यादव-मुस्लिम वोटर एकजुट हुए हैं। दानापुर में कुल लगभग पौने चार लाख मतदाता हैं, जिनमें 80 हजार यादव, 60 हजार सवर्ण, 85 हजार EBC, 40 हजार मुस्लिम और 55 हजार दलित वोटर हैं। यह मिश्रित जनसंख्या सीट को बेहद प्रतिस्पर्धी बनाती है।


इसी तरह लालगंज सीट पर भी मुकाबला बाहुबली परिवारों के प्रभाव में रहा। यहां RJD ने मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला को टिकट दिया, जबकि BJP की ओर से मौजूदा विधायक संजय सिंह मैदान में हैं। संजय सिंह की छवि साफ-सुथरी है और स्थानीय स्तर पर उन्होंने विकास कार्यों को आगे बढ़ाया है। उनके पास राजपूत, कोइरी और EBC का मजबूत वोटबैंक है। शिवानी को परंपरागत भूमिहार वोट मिल सकता है, लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि समुदाय का वोट दो फाड़ हो रहा है। कांग्रेस का टिकट पहले आदित्य राजा को दिया गया था, बाद में उनके नाम वापसी करने से कांग्रेस समर्थक नाराज़ बताए जा रहे हैं।


जोकीहाट सीट पर तस्लीमुद्दीन परिवार के दो भाइयों की लड़ाई ने चुनाव को रोमांचक बना दिया। यहां RJD ने शाहनवाज आलम को टिकट दिया है, जबकि उनके बड़े भाई सरफराज आलम जन सुराज से मैदान में हैं। 2020 में सरफराज RJD के टिकट से चुनाव लड़े थे, मगर शाहनवाज AIMIM से जीत गए थे। इस बार शाहनवाज RJD में आ गए हैं। AIMIM के मुर्शीद आलम पांच बार मुखिया रह चुके हैं और सरफराज के वोटों में सेंध लगा सकते हैं। वहीं JDU उम्मीदवार मंजर आलम जन सुराज को नुकसान पहुंचाएंगे। RJD-कांग्रेस गठबंधन के कारण शाहनवाज का पिछला वोटबैंक काफी हद तक एकजुट माना जा रहा है।


बाढ़ विधानसभा सीट, जिसे मिनी चित्तौड़गढ़ भी कहा जाता है, हमेशा राजपूत बहुल इलाका माना गया है। 1980 के बाद यहां ज्यादातर राजपूत उम्मीदवार ही जीतते रहे हैं। इस बार BJP ने चार बार के विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू का टिकट काटकर डॉ. सियाराम सिंह को मैदान में उतारा है। उनके सामने RJD ने विवादित छवि वाले कर्णवीर सिंह को टिकट दिया। कर्णवीर सिंह की इमेज खराब मानी जाती है और उन पर धानुक समाज के वरुण कुमार से मारपीट का केस भी दर्ज हुआ है। राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और बनिया का बड़ा वोट NDA की तरफ जाता दिख रहा है, जबकि कर्णवीर केवल यादव वोट पर निर्भर हैं।


वारिसलीगंज सीट पर बाहुबली अशोक महतो की पत्नी अनीता देवी मैदान में हैं। यहां BJP की उम्मीदवार अरुणा देवी चार बार की विधायक हैं और 90 के दशक के बाहुबली अखिलेश सिंह की पत्नी हैं। अरुणा को एंटी-इनकम्बेंसी का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस उम्मीदवार के नाम वापस लेने से अनीता को सीधे तौर पर फायदा होते दिख रहा है। यह सीट परंपरागत रूप से अगड़ा बनाम पिछड़ा की लड़ाई वाली मानी जाती है।


शिवहर में JDU ने बाहुबली आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद को टिकट दिया है। चेतन पहले RJD में थे, लेकिन नीतीश कुमार के NDA में आने के बाद वे JDU में शामिल हो गए। यह राजपूत बहुल इलाका है और चेतन का परिवार यहां काफी प्रभावशाली माना जाता है। उनकी मां लवली आनंद भी इस सीट से दो बार जीत चुकी हैं। शुरुआती तौर पर पार्टी के बागी नेता वीरेंद्र सिंह परेशानी खड़ी कर रहे थे, लेकिन भाजपा-जदयू मिलकर उन्हें शांत करने में सफल हुए। यादव वोटरों की नाराज़गी से RJD को चुनौती दिख रही है।


तरारी सीट पर BJP ने बाहुबली सुनील पांडे के बेटे विशाल प्रशांत को उम्मीदवार बनाया है, जबकि महागठबंधन की तरफ से CPI-ML के मदन चंद्रवंशी मैदान में हैं। पिछले उपचुनाव में विशाल प्रशांत जीत चुके हैं। भूमिहार बहुल इस क्षेत्र में विशाल प्रशांत ने 900 करोड़ की योजनाओं को मंजूरी दिलाई है, जिससे उनकी लोकप्रियता बढ़ी है। माले के खिलाफ अगड़ी जातियों का वोट उनके पक्ष में संगठित दिख रहा है।


नवादा सीट पर दो बाहुबली परिवार फिर आमने-सामने हैं। यहां JDU की ओर से राजबल्लभ यादव की पत्नी विभा देवी और RJD की ओर से कौशल यादव मैदान में हैं। पिछले चार चुनाव से नवादा की जनता हर बार किसी नई पार्टी को मौका देती रही है। विभा देवी की महिलाओं में अच्छी पकड़ है, लेकिन जन सुराज प्रत्याशी डॉ. अनुज के सामने आने से भूमिहार वोट बंट रहा है, जिससे उन्हें नुकसान हो सकता है। इस सीट पर अनुसूचित जाति के 21.38% और मुस्लिम 14.8% वोटर हैं। ग्रामीण आबादी 73.38% है, जिससे स्थानीय समीकरण यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


सीवान की रघुनाथपुर सीट पर शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब मैदान में हैं। उनके सामने JDU ने जीशू सिंह को टिकट दिया है। ओसामा को सहानुभूति वोट मिल रहे हैं, और शीर्ष BJP नेताओं द्वारा किए गए हमलों से मुस्लिम और यादव वोटर उनके पक्ष में संगठित हो गए हैं।


रुपौली सीट पर बीमा भारती और शंकर सिंह के बीच 20 साल पुरानी टक्कर एक बार फिर देखने को मिली। बीमा भारती पांच बार जीत चुकी हैं। यहां गंगोता, मुस्लिम और यादव मिलकर लगभग 45% हैं, जो उनका मुख्य वोटबैंक है। शंकर सिंह को राजपूत, कुर्मी और कुशवाहा का समर्थन मिल रहा है।


मांझी सीट पर JDU ने प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर सिंह को उतारा है, जबकि महागठबंधन ने CPM के सत्येंद्र यादव को पुनः मैदान में उतारा है। राजपूत और कुर्मी वोटरों का बड़ा वर्ग रणधीर के साथ है, जबकि यादव-मुस्लिम वोट सत्येंद्र यादव को मजबूती देते हैं।


इन 15 सीटों का राजनीतिक महत्व केवल बाहुबलियों की उपस्थिति के कारण नहीं, बल्कि इनके सामाजिक समीकरणों, जातीय ध्रुवीकरण, स्थानीय मुद्दों और कैंडिडेट की व्यक्तिगत छवि के कारण भी बढ़ गया है। आज आने वाले परिणाम तय करेंगे कि बिहार की यह ‘बाहुबली बेल्ट’ किस दिशा में राजनीतिक संदेश भेजती है।